समस्या – समाधान (Farming Solution)

वर्मी कम्पोस्ट खेती के लिए उपयोगी

जैविक खादों का महत्व : जैविक खादों के प्रयोग से  मृदा का जैविक स्तर एवं जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और मृदा की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। भूमि की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के लिये कार्बनिक/प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट व हरी खाद प्रमुख हैं जो पौधों के लिये आवश्यक खनिज प्रदान कराते है और जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है। इसके प्रयोग से हयूमसी बढ़ोत्तरी होती है एवं मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है। पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों की प्राप्ति हो जाती है। कीट, बीमारियों तथा खरपतवारों का नियंत्रण भी जैव उत्पादों द्वारा किया जा सकता है। जैविक खाद सडऩे पर कार्बनिक  अम्ल देकर मृदा का पी.एच. 7 से कम कर देती है। जिससे पोषक तत्व पौधों को काफी समय तक मिलाते रहते हैं तथा दूसरी फसलों को भी लाभ मिलता रहता है।
जैविक खादों के प्रकार: जैविक खादों में फार्मयार्ड खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद व वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप खाद इसके अलावा मूंगफली, केक, इत्यादि मुख्य रूप से है। कम्पोस्ट खाद बनाने के लिये केचुएं का प्रयोग किया जाता है। इस विधि को वलर्मी कम्पोस्टिंग या केंचुए द्वारा कम्पोस्ट बनाना कहा जाता है तथा तैयार कम्पोस्ट को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।
कम्पोस्ट बनाने के लिये केंचुए का चयन: भूमि में मुख्यत: तीन प्रकार के केंचुए उपयोग में लाये जाते हैं।

  • एपीजेइक (ऊपरी सतह पर)
  • एनीसिक (ऊपरी सतह के नीचे)
  • इन्डोजेइक (गहरी सतह पर)
    ऐसिनिया फीटिडा एवं एंसिनियाहोरटन्सिस प्रजातियां मुख्य है। इनमें से ऐसिनिया फीटिडा को लाल केचुआं भी कहा जाता है का उपयोग अत्यधिक होता है ये 0 डिग्री सेंटीग्रेड से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान को सहन कर सकते हैं। ये केचुएं एक समय से अधिक कम्पोस्ट बनाते हैं तथा इनकी प्रजनन क्षमता भी ज्यादा होती है। ऐसिनिया होरटन्सिस का आकार ऐसिनिया फीटिडा से बड़ा होता है। परंतु इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है तथा कम्पोस्ट बनाने की क्षमता कम होती है।

केंचुओं के मुख्य गुण :

  • केंचुए सडऩे, गलने व तोडऩे की प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
  • मृदा में वायु संचार के प्रवाह को बढ़ाने में सहायक है।
  • जैव क्षतिशील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों का विखंडन व विघटन कर उन्हें कम्पोस्ट में बदल देते है।

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि : वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिये छायाकार ऊंचे स्थान पर जमीन की सतह से ऊपर मिट्टी डालकर बैड बनाते हैं। जिससे सूर्य की किरणें, गर्मी व बरसात से बचा जा सके। बैड में सबसे नीचे एक-दो इंच बालू/रेतीली मिट्टी बिछाते हैं। इसके ऊपर पर सोया, गेहूं के भूसे की परत व पानी छिड़क कर नम कर देते हैं। इसके बाद 8-10 इंच कार्बनिक पदार्थ जैसे गोबर की परत पत्तों, बची हुई साग सब्जियां आदि की परत लगाते हैं। इसके बाद एक हजार केंचुए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छोड़ देते हैं। बैड के ऊपर ताजा गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ताजा गोबर का तापमान अधिक होने के कारण केंचुए मर सकते हैं। बैड में नमी बनाने के लिये प्रतिदिन पानी का छिड़काव करना चाहिए। गर्मी में 2-3 दिन बाद एवं सर्दी में 1 बार करना चाहिए। बैंड  को बोरी/पत्तों से ढंककर रखना चाहिए क्योंकि केंचुए अंधेरे में काम करते हैं। केंचुए ऊपर से खाते हुए नीचे की तरफ जाते हैं और खाद में परिवर्तित कर देते हैं।
2-3 महीने में वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है। इससे एक हजार केंचुए प्रतिदिन एक कि.ग्रा.वर्मी कम्पोस्ट तैयार करते हैं। वर्मी कम्पोस्ट की खाद बनने के बाद इसमें पानी छिड़कना बंद कर देते हैं और कम्पोस्ट को एकत्रित कर लेते हैं। केंचुए नमी में रहना पसंद करते है। इसलिये जब कम्पोस्ट सूखती है तो केंचुए नीचे की नम सतह पर चले जाते हंै और जब कम्पोस्टिंग पदार्थ खा जाता है तो केंचुए ऊपर आकर अपना काम प्रारंभ कर देते हैं।

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