राजस्थान किसानों की बदली किस्मत! हर साल 150-180 टन खजूर का हो रहा उत्पादन, जानिए कैसे करें शुरूआत
09 जनवरी 2024, बाड़मेर: राजस्थान किसानों की बदली किस्मत! हर साल 150-180 टन खजूर का हो रहा उत्पादन, जानिए कैसे करें शुरूआत – खजूर की खेती आमतौर पर अरब देशों में ज़्यादा की जाती है क्योंकि वहां का शुष्क वातावरण इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है। खजूर को फीनिक्स डैक्टिलिफेरा एल के नाम से भी जाना जाता हैं। यह एक बारह मासी फल का पेड़ हैं। यह शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण फल फसलों में से एक है। इसको पूरे मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण साहेल, पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका के क्षेत्रों, यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में वितरित किया जाता हैं।
बाड़मेर के लिए वरदान खजूर की खेती
राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र में पर्याप्त ताप इकाइयाँ हैं और सौभाग्य से यह भारत का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ खजूर की मेडजूल किस्म को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है और पिंड पेड़ों पर पकता है। पश्चिमी राजस्थान में खजूर के फल खाड़ी देशों की तुलना में एक महीने पहले पक जाते हैं, जिनका अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपना फायदा है। इस जिले में उपलब्ध खारे पानी को खजूर सहन कर सकता है, जहां कोई अन्य फसल नहीं उगाई जा सकती है।
पौष्टिकता से भरपूर खजूर
खजूर के दुनिया भर में 150 मिलियन पेड़ हैं। खजूर मुख्य रुप से 70% कार्बोहाइड्रेट युक्त पोषण का एक बहुत अच्छा स्रोत है। 1 किलो खजूर के फल 3,000 किलो कैलोरी देते हैं। यह विटामिन-ए, बी-2, बी-7, पोटेशियम, कैल्शियम, कॉपर, मैंगनीज, क्लोरीन, फॉस्फोरस, सल्फर और आयरन आदि का भी अच्छा स्रोत है।
भारत 38 फीसदी खजूर करता हैं आयात
भारत विश्व बाज़ार का करीब 38 प्रतिशत खजूर विदेशों से आयात करता है, क्योंकि हमारे देश में इसका अधिक उत्पादन नहीं होता। हालांकि, खजूर की कुछ स्थानीय किस्मों का उत्पादन गुजरात के कच्छ-भुज इलाके में होता है, मगर इसकी क्वालिटी विदेशी खजूर जितनी अच्छी नहीं होती।
यह फल उच्च उत्पादकता के लिए भी उगाया जाता है और मरुस्थलीय इलाके में इसकी खेती से पर्यावरण को भी फ़ायदा होता है। इसके अलावा , इसकी खेती रोजगार के अवसर पैदा करने और ग्रामीण इलाकों में किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने में खजूर की खेती मददगार है।
कैसे उगाया जाता है खजूर?
खजूर को बीज से भी लगाया जा सकता है या फिर अलैंगिक रूप से कटिंग्स यानी शाखा से भी उगाया जाता हैं। जब बीज से इसे उगाया जाता है तो मादा पौधे होने की संभावना सिर्फ़ 50 प्रतिशत होती है, जबकि शाखा से उगाने पर आमतौर पर पौधों में उसी पेड़ के गुण आते हैं, जिसकी वह शाखा है। हालांकि, ऐसे पौधों के जीवित रहने की संभावना हमारे देश में कम रहती है। इसलिए खजूर की खेती में टिशू कल्चर मेथड अपनाया गया। इस तकनीक से खजूर की खेती में पौधें स्थिर रहते हैं और गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
खजूर के पौधों की किस्में
पौधों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत खजूर के पौधों की किस्मों – बरही, खुनीज़ी, खलास और मेडजूल को टिश्यू कल्चर तकनीक से प्राप्त किया गया और वर्ष 2010-11 में बाड़मेर के किसानों को दिया गया।
पौधों पर सब्सिडी के साथ, रखरखाव हेतु मिलेगी वित्तीय सहायता
कृषि विज्ञान केंद्र ने खजूर के किसानों को तकनीकी जानकारी देते हुए बताया कि लगभग 156 खजूर के पौधे पंक्ति-से-पंक्ति की दूरी पर और पौधे-से-पौधे 8 मीटर 1 हेक्टेयर क्षेत्र में लगाए गए। खजूर के पौधे पर सब्सिडी के साथ-साथ बागवानी विभाग ने 2 साल के लिए पौधों की खेती और रखरखाव के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान की है। इसके अलावा ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रावधान किया गया हैं।
98 हेक्टेयर में खजूर फार्म व उत्कृष्टता केंद्र
बाड़मेर में खजूर की खेती को बढ़ावा देने के लिए, राजस्थान सरकार के बागवानी विभाग ने 98.00 हेक्टेयर क्षेत्र में सरकारी खजूर फार्म और खजूर के लिए उत्कृष्टता केंद्र भी स्थापित किया है। वही सरकारी मशीनीकृत फार्म के तहत खजूर फार्म, खारा, बीकानेर में 38.00 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित किया गया है।
खजूर का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 156 हेक्टेयर पहुंचा
बाड़मेर में शुरुआत में 11 किसानों ने 22 हेक्टेयर में खजूर की फसल लगाई और 2014 में पहली फसल प्राप्त की। बाजार में खजूर के अच्छे दाम मिलने पर किसानों की आय में वृध्दि हुई और वह इसकी खेती के लिए प्रेरित हुए। किसानों ने जहां 2010-11 में सिर्फ 22 हेक्टेयर में खजूर की खेती की, वह 2020-21 में बढ़कर 156 हेक्टेयर तक पहुंच गई। 2010-11 में जहां सिर्फ़ 22 हेक्टेयर में खजूर की खेती की गई, वहीं 2020-21 में यह बढ़कर 156 हेक्टेयर तक पहुंच गई। हर साल बाड़मेर में लगभग 150 से 180 टन खजूर का उत्पादन हो रहा है।
सफल खेती से आयात निर्भरता हुई कम
खजूर की सफल खेती ने बाड़मेर के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया हैं। साथ ही इससे बाजार में खजूर आसानी से उपलब्ध होने लगा और आयात पर निर्भरता भी कम हो गई, जिससे विदेशी मुद्रा को बचाने में मदद मिली है।
खजूर की खेती ने फसल पैटर्न को बदल दिया है और मरुस्थलीकरण को कम करने में मदद की है। शुरुआती 4 वर्षों में, किसान खजूर के बाग में आसानी से हरे चने, मोठ और तिल की इंटरक्रॉप कर सकते थे।
आने वाले वर्षों में राजस्थान के जालोर, जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर सहित आसपास के जिलों में खजूर के रकबे को बढ़ाया जाएगा।
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