पूसा डीकम्पोजर का उपयोग आप भी कर सकते हैं
कम्पोस्ट एक कार्बनिक या जैविक पदार्थ है जिसे कृषि अवशेषों को सड़ा गला कर बनाया जाता है तथा पौधों को बढऩे में उर्वरक की तरह सहायता करता है। फसल अवशेषों का कम्पोस्ट बनाना सबसे सरल विकल्प है। कम्पोस्ट बनाने के लिए फसल के बाद बचा कृषि व्यर्थ जैसे पुआल, फूल, पत्ते, घास, सब्जियां इत्यादि के अवशेष एवं पशु मल जैसे गाय, भैंस, मुर्गी तथा रसोई का हरा कचरा पर्याप्त होते हैं। धान के पुआल के अलावा किसान सब्जियों, मक्का, दलहन फसलों के अवशेष इत्यादि का भी उच्च गुणवत्ता का कम्पोस्ट बना सकते हैं। फसल अवशेषों का तीव्र गति से जैव विघटन अर्थात् रूपांतरण एवं परिपक्व खाद बनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के सूक्ष्मजीव विज्ञान संभाग द्वारा लिग्नोसेल्युलोलिटिक कवक संघ का एक कम्पोस्ट कल्चर पूसा डीकम्पोजर विकसित किया है। इस कम्पोस्ट कल्चर (टीका) की मदद से कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया तेज होती है और उच्च गुणवत्ता वाली कम्पोस्ट से मृदा में पोषक तत्वों का सुधार होता है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कम्पोस्ट को जैविक खाद की उपमा प्रदान की गयी है।
कम्पोस्ट बनाने की सरल पिट या गड्ढा विधि
सर्वप्रथम किसानों को गड्ढा पानी के स्रोत एवं पशु के बाड़े के पास बनाना चाहिए। गड्ढा जमीन की सतह से ऊपर होना चाहिए, जिससे बाहरी पानी गड्ढे के अंदर न आ सके। इसके अलावा गड्ढे के ऊपर टीन या खपरैल या एस्बेस्टस की छत का निर्माण करना चाहिए। छत से दो फायदे होते हैं- पहला वर्षा का पानी नहीं गिरता और दूसरा चील, कौए एवं अन्य पक्षी कोई भी अवांछित पदार्थ जैसे मरे हुए चूहे, छिपकली एवं हड्डियां इत्यादि नहीं फेंक सकते तथा पक्षियों की बीट (मल) उसके ऊपर नहीं गिरता जिससे अनचाहे पौधे नहीं उग पाते। गड्ढे पक्के बनाने से पानी एवं पोषक तत्वों का जमीन के अंदर रिसाव नहीं हो पाता। गड्ढे की गहराई 1.0 मीटर, चौड़ाई 2.0 मीटर तथा लम्बाई कम से कम 8.0 मीटर होनी चाहिए। गड्ढे को दो तरीकों से भरा जा सकता है, लेकिन जब भी गड्ढा भरना हो, उसे 24 घंटे में सम्पूर्ण कर देना चाहिए।
(क) परद दर परत – इसमें सबसे पहले धान के पुआल या सूखी पत्तियों की 1-2 परत फैलाई जाती है फिर उसमें गोबर, फार्म यार्ड मेन्योर, कुक्कुट बीट एवं पूसा डीकम्पोजर पुराना सड़ा-गला खाद, उर्वरक मिट्टी का घोल बनाकर एक सामान तरीके से छिड़काव किया जाता है। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक गड्ढा पूरा न भर जाये।
(ख) मिश्रण विधि- इस विधि में फसल के अवशेष, गोबर या कुक्कुट बीट, पुराना कम्पोस्ट एवं उर्वरक मृदा का अनुपात 8:1:0.5:0.5 (क्रमानुसार) रखा जाता है। सूखे पुआल के लिए कम से कम 90 प्रतिशत नमी रखनी चाहिए। पानी की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए, एक मुट्ठी में मिश्रण को दबा कर देखने से बूंद-बूंद पानी गिरना चाहिए, सारे मिश्रण को गड्ढे में पूसा कम्पोस्ट कल्चर (टीका) के साथ मिलाकर गलने के लिए छोड़ देना चाहिए। अधिक गर्मी या सर्दी होने पर सबसे ऊपर एक हल्की परत मिट्टी की डालनी चाहिए। इससे नमी की मात्रा कम नहीं होती है।
एक अच्छी गुणवत्ता वाले कम्पोस्ट खाद के लिए सामान्य मापदंड | ||
मापदंड | अच्छी गुणवत्ता | खराब गुणवत्ता |
रंग | काला भूरा | विभिन्न प्रकार के रंग |
गंध (दुर्गन्ध) | कोई दुर्गन्ध नहीं होनी चाहिए (मिट्टी या ह्यूमस जैसी गंध अच्छी हटी है) | बदबूदार |
पी.एच. | 6.5 से 7.5 | 6 से कम एवं 8 से ज्यादा |
कार्बन: नत्रजन | 20:1 या कम | 20:1 से ज्यादा |
नमी | 15.0 से 25 प्रतिशत | 30 प्रतिशत से ज्यादा |
15 दिनों के अंतराल पश्चात, गड्ढे के अंदर पलटाई की जाती है और इसी तरह अगले दिनों में 15 दिनों के अंतराल पर तीन पलटाइयां की जाती हैं। धान का पुआल 90 दिनों में, सूखी पत्तियां 60 दिनों में तथा हरी सब्जियों के अवशेष 45 दिनों में पूर्णतया विघटित हो जाते हैं और उत्तम गुणवत्ता युक्त कम्पोस्ट तैयार हो जाती है तैयार खाद गहरी भूरी, भुरभुरी एवं बदबू रहित होती है।
सम्पर्क : अध्यक्ष, सूक्ष्म जीव संभाग, भा.कृ.अनु.प.-भा.कृ.अ.सं., नई दिल्ली-110012, फोन : 011-25847649