संपादकीय (Editorial)

कृषि भूमि से भूक्षरण प्रक्रिया और रोकने के उपाय

लेखक: दीपक हरि रानडे, मनोज कुरील, सतीश शर्मा, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय, परिसर कृषि महाविद्यालय, खंडवा, dhranade1961@gmail.com

17 सितम्बर 2024, भोपाल: कृषि भूमि से भूक्षरण प्रक्रिया और रोकने के उपाय –

कम सघनता वाली फसलों से जल अपवाह और भू-क्षरण

वैसे तो कहा जाता है कि शुद्ध, जल रंगहीन होता है। परन्तुृ कृषि महाविद्यालय खंडवा के कृषि परिसर में खेतों में एकत्रित होने के उपरांत बह रहे जल अपवाह का रंग मटमैला देखा गया। वास्तविक रूप से कृषि भूमि से बहने वाले जल अपवाह में मिट्टी के कण घुल कर जल को मटमैला बना देते हैं। अर्थात् वर्षा जल बरसते समय तो रंगहीन रहता है, परन्तु जैसे ही भूमि पर गिर कर बहता है तो मिट्टी के कणों के साथ बहने और जल में कणों के घुलने सें वह रंगीन हो जाता है। जल के साथ मिट्टी के कणों के बहने की यह प्रक्रिया भू-क्षरण कहलाती हैं। दरअसल 03/09/2024 खंडवा में एक घंटे में 70 मिली मीटर वर्षा हुई थी। वर्षा जल की मात्रा और तीव्रता अधिक होने के कारण और पूर्व में हुई वर्षा के कारण या भूमि में अधिक नमी या उसके (संतृप्ती) होने के कारण गिरने वाली वर्षा की हर बूंद या तो भूमि पर संग्रहीत हो रही थी और भूमि से जल अपवाह के रूप में खेतों से बाहर निकल रही थीं। वैसे तो यह एक दिखने में सामान्य प्रक्रिया होती है, परन्तु यह भूमि के उपजाऊ कणों को बहा कर भूमि की उर्वरता को कम करते हैं। वैसे एक अवधारणा है कि जुलाई व अगस्त माह में वर्षा जल की मात्रा और तीव्रता से जल अपवाह से भू-क्षरण ज्यादा हो रहा है, परन्तु मानसून तो मनमौजी होता है। सितम्बर माह की शुरूआत से ही लगातार वर्षा जल की मात्रा और तीव्रता अधिक होने के कारण भू-क्षरण की प्रक्रिया सितम्बर माह में भी चलती रही।

कम सघनता वाली फसलों से जल अपवाह और भू-क्षरण

अगर वर्षा की मात्रा सामान्य होती परन्तु वर्षा की तीव्रता कम होती तो भू-क्षरण और जल अपवाह की मात्रा काफी कम हो जाती। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि 3 सितम्बर को एक घंटे में होने वाली 70 मिली मीटर बारिश यदि 10 से 12 घंटों में होती तो वर्षा जल की प्रति घंटे होने वाली मात्रा भूमि के रिसाव दर के समान हो कर वर्षा जल को भूमि में अधिक रिसने का मौका होता और भूमि पर से बहने वाले जल की मात्रा को भी कम कर देती। इसी प्रकार यदि यह वर्षा काफी दिनों के अंतराल के बाद होती तो ज्यादातर वर्षा जल भूमि में रिस जाता और भूमि में संग्रहीत होकर नमी को बढ़ाता और जल अपवाह की मात्रा को कम कर देता। इसी प्रकार यदि भूमि चौड़े पत्ते वाली फसलों (मूंग, सोयाबीन) से आच्छादित होती तो जल अपवाह और भू-क्षरण की मात्रा काफी कम हो जाती क्योंकि वर्षा की बूदें पत्तियों से टकराकर अपनी शक्ति को खो देती हैं और भूमि पर से बहने वाले जल की गति कम होकर भूमि के कणों को कम मात्रा में बहाकर ले जाती हैं। वहीं कम सघनता वाली फसलों (मक्का, कपास और अरहर) वाले खेतों से चौड़े पत्ते वाली फसलों वाले खेतों की तुलना में, जल अपवाह की मात्रा और भू-क्षरण की मात्रा अधिक होती है।

ढलान के लम्बवत जल निकास नालियों से जल अपवाह की गति को कम कर उसे सुरक्षित तरीके से खेतों से बाहर निकालना

कृषि महाविद्यालय खंडवा में लगभग और सभी खेतों का ढलान लगभग एक प्रतिशत से कम है, इसके कारण जल अपवाह ओर भू-क्षरण की मात्रा काफी कम है। वहीं अगर खेत ढलाऊ दार होते तो जल रिसाव और भू-क्षरण की मात्रा और अधिक होती। इसी प्रकार, लगभग समतल खेतों से जल भुसतह पर एकत्रित हो जल अपवाह और भू-क्षरण की मात्रा अत्यधिक कम हो जाती है। इन विभिन्न भूसतहों पर जल के रंग से जल अपवाह और भू-क्षरण की कम ज्यादा मात्रा मे अंतर का प्रमाण स्पष्ट देखा जा सकता है। परिसर के खेत मध्यम गहराई की श्रेणी में आते हैं, इस कारण अधिक गहराई वाली भूमि की तुलना में जल अपवाह और भू-क्षरण अधिक होता है अत: वर्षा काल के दौरान कृषि भूमि से होने वाला जल अपवाह और भू-क्षरण एक सामान्यत प्रक्रिया है। जिसे उचित कृषि पद्धतियों, तकनीकियों जैसे जैविक खेती, समन्वित खेती, जल प्रबंधन, समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन, संरक्षण खेती द्वारा कम किया जा सकता है। खेत व ढलान की लंबाई कम करने हेतु खेतों मे ढलान के लम्बवत जल निकास नलियों से जल अपवाह की गति को कम कर उसे सुरक्षित तरीके से खेतों से बाहर निकाल कर निचले खेतों में जल अपवाह की मात्रा व गति कम कर भू-क्षरण को कम किय़ा जाता है। इनको अपनाकर इस बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा को संरक्षित रख सकते हैं ओर इससे आने वाली पीढ़ी को एक उज्ज्वल भविष्य प्रदान किया जा सकता है।

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