Editorial (संपादकीय)

कृषि निर्यात पर सकारात्मक असर

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यूक्रेन-रशिया युद्ध

  • सुनील गंगराड़े

21 मार्च 2022,  कृषि निर्यात पर सकारात्मक असर – यूक्रेन-रूस का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये भविष्य के गर्भ में है, परंतु निश्चित ही इस लड़ाई ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, कूटनीति के साथ-साथ अर्थशास्त्र भी विश्व का बदल दिया है। यूक्रेन-रशिया युद्ध ने दुनिया के देशों में मिश्रित भाव उत्पन्न कर दिये है। कहीं खुशी-कहीं गम का माहौल है। युद्ध के कारण भारत में आयात होने वाली वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ रहे है उपलब्धता भी नहीं है जिसमें अखबारी कागज भी शामिल है। अखबारों के प्रकाशक हैरान है, कृषक जगत भी अछूता नहीं है। वहीं खुशखबरी ये है कि भारत के किसानों को मंडियों में गेहूं के दाम अच्छे मिलने लगे है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गेहूं का भाव 2500 प्रति क्विंटल चल रहा है। इस प्रकार किसानों को मंडियों में समर्थन मूल्य से ऊपर गेहूं के दाम मिल रहे है। वहीं गेहूं का समर्थन मूल्य 2015 रु. प्रति क्विंटल है। केन्द्रीय खाद्य मंत्रालय के मुताबिक इस सीजन में 70 लाख टन से अधिक गेहूं एक्सपोर्ट हो सकता है। कृषक वर्ग सरकारी खरीद के लिए पंजीयन में रुचि नहीं ले रहे है। आने वाले खरीद सीजन में मंडियों में किसानों को बेहतर दाम मिलने की उम्मीद है। यदि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात की तेजी की संभावना होगी और गेहूं के भावों में भी बढ़त रही तो किसान एमएसपी पर गेहूं देने सरकारी केन्द्रों पर नहीं आएगा और सरकारी खजाने पर भी एमएसपी खरीद का बोझ कम रहने के आसार है।

युद्ध मानव जाति के लिए प्रत्यक्ष अभिशाप है, परंतु भारत के किसानों के लिए गेहूं के चढ़ते मंडी दामों के कारण परोक्ष रूप से वरदान सा हो गया है। हालांकि परपीड़ा में अपना सुख खोजने की बात उचित प्रतीत नहीं होती परंतु वर्तमान स्थिति यही है।

इसी प्रकार वैश्विक मंडी में भारतीय शक्कर निर्यात की हिस्सेदारी की बढ़ौत्री की खबर देश के गन्ना किसानों के चेहरे पर मुस्कराहट ला रही है। शक्कर निर्यात में ढाई गुना तक इजाफा हुआ है। वर्ष 2021-22 में केवल 17.75 लाख टन शक्कर निर्यात हुई थी। इस वर्ष ये आंकड़ा 75 लाख टन ‘टच’ कर सकता है। 25 दिन से चल रहे यूके्रन-रशिया के युद्ध के कारण उपजी अंतर्राष्ट्रीय आपदा में वैश्विक बाजारों में शक्कर सप्लाई ठप्प हो गई है और एक्सपोर्ट डिमांड बढ़ गई है। अचानक बढ़ी इस मांग के मूल में, गन्ना बाहुल्य देशों में गन्ने से एथनॉल उत्पादन बढ़ाना है, क्योंकि पेट्रोल पदार्थों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अधिकांश देशों ने रूस की इस बिना वजह की लड़ाई के कारण रूस पर अनेक आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए है, जिस कारण रूस का निर्यात बाजार ठप्प है। पुरानी मित्रता के कारण भारत को रूस से सस्ते दामों पर तेल भी मिल रहा है, जिस कारण भारत में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ौत्री के आसार अभी कम हैं।

वैसे मूलत: किसान भाई- ‘कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वह भी मना’ की स्थिति याने हर हाल में खुश रहते हैं। लेकिन उम्मीद है कि इस वर्ष गेहूं के दामों की तेजी, उनके चेहरे पर मुस्कराहट का प्रयोजन बनेगी।

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