मध्यप्रदेश में कृषि पर्यटन की जरूरत
वर्तमान परिस्थितियों में जहां कई परम्पराएं संग्रहालयों में सिमटी दिखाई देती हैं वहीं कृषि से जुड़े कई रीति-रिवाज भी अब यदा- कदा ही दिखाई देते हैं। गोबर से लिपा आंगन, मेमने का दूध पीने वाला तरीका कई आधुनिक और शहरी युवाओं ने नहीं देखा होगा। भैंस और बैलगाड़ी की सवारी से कई शहरी बच्चे वंचित है। यह सभी तथ्य अब केवल बुजुर्गों से बतौर कहानी ही सुने जाते हैं। जिनका गांव से कोई संपर्क नहीं है उनके लिए तो यह सब कहानी और किस्से ही हंै। यदि इन्हीं को कृषि पर्यटन के तौर पर विकसित किया जाए तो आमदनी रूपया और खर्च अठन्नी की स्थिति बन सकती है। महाराष्ट्र के वर्धा जिले में रहने वाले किसान सुनील मनकिकर ने खेती के अलावा कृषि पर्यटन से भी कमाई का जरिया तलाश लिया है। कृषि पर्यटन से उन्होंने लाखों रुपये कमाये। यह एक ऐसा उद्यम है, जिसके तहत किसान खेती-बाड़ी के साथ-साथ पर्यटन से भी अपनी आय बढ़ा रहे हैं। किसानों ने पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये अपने खेतों में कॉटेज (झोपड़ी) बनाई है, जहां पर्यटकों को ग्रामीण जीवन का लुत्फ उठाने का पूरा मौका मिलता है। उन्होंने अपने खेत में दो झोपडिय़ों का भी निर्माण किया है, जिसे प्रतिदिन प्रति व्यक्ति की दर से किराये पर देते हैं। इसमें खाने-पीने की सुविधा भी शामिल है। वह पर्यटकों को अपने खेतों में भी घुमाते हैं और किसानों के जीवन के बारे में बताते हैं। पर्यटकों को जो खाना वह मुहैया कराते हैं, वह सादगी भरा रहता है। कुछ किसान पर्यटकों को पर्वतारोहण और जंगल की यात्रा का लुत्फ लेने का मौका भी देते हैं। पर्यटकों को तैराकी के लिये गांवों की नदी और तालाब में भी ले जाया जाता है। ऐसे उद्यम प्रारंभ करने में ऊर्जा संसाधन संस्थान, महाराष्ट्र पर्यटन विकास बोर्ड और नाबार्ड किसानों की मदद करते हैं। महाराष्ट्र में करीब 90 ऐसे केंद्र हैं, जो पंजीकृत कराए गए हैं, जबकि बिना पंजीकरण के भी कई केंद्रों का परिचालन किया जा रहा है। एक कृषि पर्यटन केंद्र में एक खेत (फार्म) से लेकर 4 या 5 खेत (फार्म) तक शामिल होते हैं। महाराष्ट्र में हर माह 400 से 500 पर्यटक कृषि पर्यटन केंद्रों के भ्रमण पर आते हैं। छुट्टियों के दिनों में पर्यटकों की संख्या और भी ज्यादा होती है। आगामी छुट्टियों के लिये अभी से ही कुछ कृषि पर्यटन केंद्रों की बुकिंग हो चुकी है। हरियाणा, सिक्किम, पंजाब और राजस्थान में भी इस तरह के पर्यटन की सुविधा उपलब्ध है। सरकारी पर्यटन विभाग भी इन राज्यों में कृषि पर्यटन को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। नासिक के कुछ अंगूरों के बाग में बंगलों (विला) का भी निर्माण किया गया है, जहां पर्यटक अंगूरों के बाग में किस्म -किस्म की शराबों का भी लुत्फ ले सकते हैं। इतना सब कुछ महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे कई राज्यों में हो सकता है फिर मध्यप्रदेश में क्यों नहीं हो सकता है। बड़े पैमाने पर राज्य में संभावनाएं हैं। कृषि पर्यटन की मांग और जरूरत के चलते किसानों के लिये फायदे का सौदा है। ऐसे में जरूरी है कि इसे सरकारी स्तर पर बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की।