भारत में बायोमास पेलेट्स का बिजली उत्पादन में योगदान
- सचिन गजेंद्र, वरिष्ठ शोध अध्येता
- संदीप गांगिल, प्रधान वैज्ञानिक
भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल - प्रकाश चन्द्र जेना, वरिष्ठ वैज्ञानिक
भा.कृअनु.प.-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक (ओडिशा)
13 अप्रैल 2023, भारत में बायोमास पेलेट्स का बिजली उत्पादन में योगदान – बायोमास एक नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। इसके अंतर्गत फसल अवशेष, वन अवशेष, जलीय पादप जैसे- जलकुम्भी तथा अपशिष्ट पदार्थों जैसे-खाद, कूड़ा, करकट इत्यादि ऊर्जा प्राप्ति के स्रोत है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत के रूप में, बायोमास का उपयोग आमतौर पर पेलेट्स, ब्रिकेट्स, बायोगैस, बायोएथेनॉल आदि के उत्पादन किया जाता है। बायोमास पेलेट एक प्रकार का जैव ठोस ईंधन है जो बहुत लोकप्रिय है। इन पेलेट्स को ज्यादातर कृषि बायोमास, लकड़ी के कचरे, वानिकी के अवशेषों आदि से बनाया जाता है। बायोमास पेलेट्स का व्यास 6-10 मिली मीटर एवं इसकी लम्बाई 25-30 मिली मीटर होती है। बायोमास पेलेट्स की मशीन (60 किलोग्राम प्रति घंटा) का मूल्य 2.5-3 लाख रुपए तक होता है। बायोमास पेलेट्स का मूल्य 10-15 रुपए प्रति किलोग्राम होता है। बायोमास पेलेट्स का उपयोग विद्युत एवं ताप उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में विद्युत उत्पादन में जैव ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका है। देश में बायोमास पेलेट्स की उपलब्धता 2020-21 में 245 मिलियन टन थी और यह 2025-26 में 253 मिलियन टन तक बढऩे की उम्मीद है । भारत में बायोमास पेलेट्स से 2020-21 में विद्युत उत्पादन 229 टेरा वाट ऑवर था जो 2025-26 में 236 टेरा वाट ऑवर तक बढऩे की उम्मीद है।
मुख्य शब्द: बायोमास, फसल अवशेष, पेलेट्स, विद्युत उत्पादन, अक्षय ऊर्जा
दुनिया में कृषि अवशेष का प्रबंधन करना चुनौतीपूर्ण है। जानकारी यह है कि, दुनिया भर में अनाज फसलों से लगभग 1.5 गीगा टन पुआल सालाना उत्पादन होता है (डोंगहुई एवं साथी 2014)। व्यवहरिक तौर पर फसल अवशेष से ठोस एवं तरल ईंधन बनाया जाता है। ठोस ईंधन के अंतर्गत पेलेट्स एवं ब्रिकेट्स एक अच्छा विकल्प है और यह फसल अवशेष की परिवहन एवं भण्डारण के लिए सहूलियत प्रदान करता है। पेलेट्स के प्रयोग से हम पर्यावरण को प्रदूषण से बचा सकते हंै और किसानों को उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं। अनाज के भूसे और डंठल (गेहूं, चावल और जौ आदि), भूसी, मकई के दाने, और डंठल, गन्ने के टॉप जैसे कृषि अवशेष आमतौर पर पेलेट्स के उत्पादन में उपयोग किए जाते हैं।
पेलेट्स के फायदे और नुकसान
बायोमास पेलेटिंग के कुछ महत्वपूर्ण लाभ
- नवीनीकरण ऊर्जा के रूप में पेलेट्स का उपयोग करने से यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है (नून्स एवं साथी, 2016)।
- पेलेट्स की दक्षता उच्च होती है और इसका उत्सर्जन न्यूनतम होता है।
- यह पर्यावयण को नुकसान नहीं पहुँचाता है।
- इससे भण्डारण और परिवहन आसानी से हो जाता है।
- पेलेट्स हमें लकड़ी का विकल्प प्रदान करता है जिससे हम वनों की कटाई को रोक सकते हैं।
बायोमास पेलेटिंग के मुख्य नुकसान
- निम्न गुणवत्ता वाले ठोस जैव ईंधन से जो उत्सर्जन होता है वह दहन संयंत्रों को नुकसान पहुंचा सकता है और अवांछित प्रभाव पैदा कर सकता है (लेहटिकांगस 2001)।
- पेलेट्स की महीन कण सामग्री, जो उनके यांत्रिक स्थायित्व और भंडारण की स्थिति से प्रभावित होती है, स्वचालित हीटिंग सिस्टम के नियंत्रण को बाधित कर सकती है या दहन संयंत्रों में ठोस जैव ईंधन के साथ स्वचालित आपूर्ति में रुकावट पैदा कर सकती है (गार्सिया-मारावर एवं साथी 2011)।
बायोमास पेलेटिंग प्रक्रिया
बायोमास पेलेटिंग प्रक्रिया में कच्चे माल के पूर्व-उपचार, और पेलेटिंग पोस्ट-ट्रीटमेंट सहित कई चरण होते हैं। इस प्रक्रिया में पहला कदम बायोमास फीडस्टॉक की तैयारी है, जिसमें इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त बायोमास का चयन करना और इसके निस्पंदन, भंडारण और सुरक्षा शामिल है। उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल में चूरा, लकड़ी का कचरा, कृषि और वानिकी के अवशेष आदि हैं। कंकड़, धातु, आदि जैसे अवांछित पदार्थों को हटाने के लिए निस्पंदन किया जाता है। बायोमास में अशुद्धियाँ और नमी कम हो। बायोमास में नमी की मात्रा काफी अधिक हो सकती है, और इसलिए इसे 10 से 15 प्रतिशत तक कम करने की आवश्यकता है (मणि एवं साथी, 2006) । इसके बाद बायोमास को पिसाई करने के लिए पिसाई मशीन में डाल दिया जाता है। अगला और सबसे महत्वपूर्ण कदम पेलेटाइजेशन है जहां बायोमास को एक रोलर का उपयोग करके गर्म धातु की प्लेट (जिसे डाई के रूप में जाना जाता है) के खिलाफ संकुचित किया जाता है। डाई में निश्चित व्यास के छेद होते हैं जिसके माध्यम से बायोमास को उच्च दबाव में दबाया जाता है। उच्च दाब के कारण, घर्षण बल बढ़ जाते हैं, जिससे तापमान में काफी वृद्धि होती है। उच्च तापमान बायोमास में मौजूद लिग्निन और रेजिन को नरम करता है, जो बायोमास फाइबर के बीच एक बाध्यकारी एजेंट के रूप में कार्य करता है। इस तरह बायोमास कण मिलकर पेलेट्स का निर्माण करते हैं। बायोमास को पेलेटाइज करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की औसत मात्रा लगभग 16 से 49 किलो वाट घंटा प्रति टन (जफर एस., 2014) है।
भारत में बायोमास पेलेट्स के लिए बायोमास अवशेष
भारत के 328 मिलियन हेक्टेयर (एमएचए) के कुल भौगोलिक क्षेत्र में, शुद्ध फसल क्षेत्र लगभग 43 प्रतिशत है, और ऐसा प्रतीत होता है कि शुद्ध फसल क्षेत्र 1970 से लगभग 140 एमएचए पर स्थिर हो गया है (रवींद्रनाथ एवं साथी, 2005)। सकल फसल क्षेत्र जो 1950-51 में 132 मिलियन हेक्टेयर था वह 2020-21 में लगभग 196 मिलियन हेक्टेयर हो गया। चावल और गेहूं प्रमुख फसलें हैं, जो कुल फसल क्षेत्र का 41 प्रतिशत हिस्सा हैं, जबकि दलहन, तिलहन और अन्य वाणिज्यिक फसलें क्रमश: 13.8 प्रतिशत, 15.9 प्रतिशत और 10.2 प्रतिशत हैं। 2020-21 और 2030-31 में बायोमास पेलेट्स के लिए शुद्ध अवशेष उपलब्धता क्रमश: 141 मिलियन टन और 157 मिलियन टन अनुमानित है (पुरोहित, 2014)।
बायोमास पेलेट्स का अनुप्रयोग
औद्योगिक बॉयलर: बायोमास पेलेट्स का औद्योगिक बॉयलर में उपयोग करने से ऊर्जा लागत में कमी आती है।
बिजली संयंत्र: अपर्याप्त बिजली आपूर्ति की समस्या को हल करने के लिए बिजली संयंत्रों में बायोमास पेलेट्स का उपयोग किया जा सकता है।
पेलेट्स स्टोव: बायोमास पेलेट्स का ईंधन के रूप में उपयोग करके हम पेलेट्स स्टोव के द्वारा भोजन भी बना सकते है।
भारत में बायोमास पेलेट्स का विद्युत उत्पादन में योगदान
भारत में कोयला सीमित मात्रा में उपलब्ध है इसलिए हमें इसके विकल्प के बारे में ध्यान देना होगा। बायोमास पेलेट्स विद्युत् उत्पादन में कोयले का एक अच्छा विकल्प है। साथ ही भारत में बायोमास की उपलब्धता भी अधिक है इसलिए हमें बायोमास का इस्तेमाल करके पेलेट्स बनाना चाहिए एवं इसका विद्युत उत्पादन में उपयोग करें। देश में, 2030-31 तक कुल बिजली उत्पादन 4000 टेरा वाट ऑवर होने की उम्मीद है,उसमे से 244 टेरा वाट ऑवर बिजली उत्पादन बायोमास पेलेट्स से होने की उम्मीद है अर्थात 2030-31 तक देश में 6.1 प्रतिशत बिजली उत्पादन बायोमास पेलेट्स से हो सकता है । (पुरोहित, 2018)। वर्तमान में, भारत में जो बिजली उत्पादन होती है उसमे से 51.7 प्रतिशत बिजली उत्पादन उत्पादन कोयले से होता है जिसमे लगभग 700 मिलियन टन कोयले का उपयोग होता है, यदि हम बायोमास पेलेट्स का 5 प्रतिशत कोयले में मिश्रण करे तो हम लगभग 35 मिलियन टन कोयला बचा सकते है। बिजली मंत्रालय ने 8 अक्टूबर 2021 में अधिसूचना जारी की जिसमे उन्होंने सभी कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को कम से कम 5 प्रतिशत बायोमास पेलेट्स का मिश्रण (कोयले के साथ) के रूप में उपयोग करना अनिवार्य कर दिया। बिजली पैदा करने के लिए बायोमास पेलेट्स का उपयोग अभी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के आसपास हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर, 180 से अधिक कोयले से चलने वाले (25 मेगावाट या उससे अधिक क्षमता) संयंत्रों में से केवल 40 ने बिजली उत्पादन के लिए बायोमास पेलेट्स का उपयोग करना शुरू कर दिया है। हाल ही में एनटीपीसी ने को-फायरिंग के लिए 9.3 लाख टन बायोमास पेलेट्स का ऑर्डर दिया है। वर्तमान में देश में 59,000 मैट्रिक टन बायोमास पेलेट्स का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है, उसमे से उत्तर प्रदेश में एनटीपीसी दादरी ने बिजली उत्पादन के लिए 19,504 मैट्रिक टन बायोमास पेलेट्स का उपयोग किया है एवं महाराष्ट्र में एनटीपीसी मौदा ने बिजली उत्पादन के लिए 18,223 मैट्रिक टन बायोमास पेलेट्स का उपयोग किया है।
जैव शक्ति में भारत की स्थिति
कुल जैव विद्युत उत्पादन 2020 में लगभग 6.4 प्रतिशत बढक़र लगभग 602 टेरावाट-घंटे (टी डब्ल्लू एच) हो गया, जो 2019 में 566 (टी डब्ल्लू एच) था। चीन 2020 में जैव शक्ति का अग्रणी उत्पादक था, उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, ब्राजील, भारत, यूनाइटेड किंगडम और जापान का स्थान था। इस दौरान जैव शक्ति उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में पांचवा था और जैव-विद्युत क्षमता बढक़र 10.5 गीगावाट हो गई (अक्षय ऊर्जा वैश्विक स्थिति रिपोर्ट, 2021)।
निष्कर्ष
भारत में गैर अक्षय ऊर्जा सीमित मात्रा में उपलब्ध है इसलिए हमें नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग अधिक करें। बायोमास पेलेट्स एक अच्छा जैव ईंधन का विकल्प है जिसका उपयोग हम विद्युत् उत्पादन और तापीय अनुप्रयोग के लिए उपयोग कर सकते है। देश में 2030-31 तक 244 टेरा वाट ऑवर बिजली उत्पादन बायोमास पेलेट्स से होने की उम्मीद है। एनटीपीसी ने को-फायरिंग के लिए 9.3 लाख टन बायोमास पेलेट्स का ऑर्डर दिया है जिसका उपयोग करके एनटीपीसी बायोमास पेलेट्स से बिजली उत्पादन करेगी। अभी भारत में, फसल अवशेष के जलने से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है अत: हम फसल अवशेष से बायोमास पेलेट्स बनाकर पर्यावरण से प्रदूषण को कम कर सकते हंै जिससे भारत ने 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसे हम प्राप्त कर सकते हैं।
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