गरीबों का भोजन बन रहा है अमीरों की थालियों की शान
- मधुकर पवार
25 दिसम्बर 2022, भोपाल । गरीबों का भोजन बन रहा है अमीरों की थालियों की शान – भारत में कुछ दशक पहले निम्न आय और निर्धन लोगों के खाने में उपयोग में लाये जाने वाले मोटे अनाज अब अमीरों की थाली की शान बन गये हैं। भारत सहित विश्व के अनेक देशों में मोटे अनाजों को लेकर काफी उत्सुकता बढ़ गई है और इनका भोजन में उपयोग करने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक लाभकारी है। इसी के मद्देनजर भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोटे अनाजों खासतौर से बाजरा को वर्ष 2023 के लिये ‘मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया है। इससे मोटे अनाजों का महत्व और बढ़ गया है। मोटे अनाजों में बाजरा के साथ ज्वार, जौ, रागी, कोदो, कुटकी आदि आते हैं। विश्व में बाजरा का 20 प्रतिशत और एशिया का 80 प्रतिशत उत्पादन भारत में ही होता है। वैसे बाजरा का विश्व के सवा सौ से अधिक देशों में उत्पादन होता है लेकिन बाजरा के वैश्विक उत्पादन का 55 प्रतिशत केवल भारत, चीन और नाइजीरिया में ही होता है। विश्व में बाजरा करीब 60 करोड़ लोगों का पारम्परिक भोजन भी है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2023 को ‘मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किये जाने पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने के मोर्चे पर जुटा भारत इस फैसले से सम्मानित महसूस कर रहा है। इससे न सिर्फ खाद्य सुरक्षा और किसानों के कल्याण को बल मिलता है, बल्कि यह कृषि वैज्ञानिकों और स्टार्ट-अप समुदाय के लिए शोध और नवोन्मेष के द्वार भी खोलता है। श्री मोदी ने कहा कि मोटे अनाज को उपभोक्ता, उत्पादक एवं जलवायु के लिए अच्छा माना जाता है। ये पौष्टिक होने के साथ कम पानी वाले सिंचाई क्षेत्रों में भी उगाए जा सकते हैं। वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सराहना करते हुये प्रधानमंत्री मोदी ने मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए मोटा अनाज वर्ष के आयोजन का भारत का प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए विश्व समुदाय को धन्यवाद भी दिया। श्री मोदी ने आकाशवाणी से प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में भी मोटे अनाजों के महत्व की चर्चा करते हुये कहा था- ‘कुपोषण से लडऩे में मोटे अनाज के प्रति जागरूकता लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता की दौड़ में न सिर्फ जीवनशैली बदली, बल्कि हमारा खान-पान भी पूरी तरह से बदल गया है। पांच दशक पहले हमारे खाने की आदतें पूरी तरह से अलग थीं। मोटे अनाज हमारे आहार का मुख्य घटक थे। हरित क्रांति के दौरान गेहूं और धान की खेती को सबसे अधिक महत्व दिया गया और इसके परिणामस्वरूप हमने गेहूं और चावल को अपनी भोजन की थाली में सजा लिया तथा मोटे अनाज को खाद्य श्रृंखला से बाहर कर दिया। जिन अनाज को हमारी कई पीढिय़ां खाती आ रही थीं, उनसे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज के महत्व को समझते हुए उसकी ओर वापस लौट रही है।’
पिछले कुछ वर्षों से भारत में भी जैविक के साथ मिलेट यानी मोटे अनाजों के बारे में लोगों में जागरूकता आई है और इनका उपयोग करना भी शुरू कर दिया है। कुछ दशक पहले जब गेहूं का उत्पादन कम होता था तब बहुत बड़ी आबादी ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी जैसे अनाजों पर ही निर्भर हुआ करती थी। गेहूं और चावल तो तीज-त्यौहारों और मेहमानों के आने पर ही उपयोग किये जाते थे। उस समय मोटे अनाजों से मिलने वाली स्वास्थ्य सुरक्षा की जानकारी शायद बहुत कम ही रही होगी और यही वजह है कि धीरे-धीरे मोटे अनाजों का रकबा कम होते गया और इसके स्थान पर अन्य फसलों जैसे मक्का, सोयाबीन और तिलहन व दलहन फसलों ने ले लिया। भारत में हरित क्रांति के बाद कृषि में रासायनिक खाद, दवाई और उन्नत बीजों के साथ कृषि में मशीनीकरण और उन्नत तकनीक के चलते खाद्यान्न के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
साठ और सत्तर के दशक में भारत जहां विदेशों से खाद्यान्न का आयात करता था, अब पूरी तरह आत्मनिर्भर होकर निर्यातक देश बन गया है। उम्मीद की जानी चाहिये कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2023 को ‘मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किये जाने और वर्ष 2023 के दौरान मोटे अनाजों को लोकप्रिय बनाने के लिये केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा राज्यों द्वारा किये जा रहे प्रयासों के माध्यम से मोटे अनाज अधिकांश देशवासियों की थालियों में दिखाई देने लगेगा। यह स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये भी एक क्रांतिकारी कदम सिद्ध हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2023 को मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किये जाने से बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों के निर्यात में भी आशातीत वृद्धि होने की प्रबल सम्भावना बन गई है।
मोटे अनाजों में बाजरा, ज्वार, रागी, कंगनी, समा, कोदो इत्यादि आते हैं। तीन-चार दशक पहले भारत में ये मोटे अनाज भोजन के प्रमुख खाद्यान्न थे। लेकिन समय के साथ भारतीयों के भोजन में भी परिवर्तन आया। शहरों में मोटे अनाजों को ग्रामीणों और गरीबों का भोजन माना जाने लगा जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी भोजन का स्वाद बदलने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि मोटे अनाजों के प्रति उत्पादक किसानों का भी रूझान कम होने लगा। हरित क्रांति के बाद खाद्यान्न के उत्पादन में भले ही उत्पादन में जबर्दस्त इजाफा हुआ हो लेकिन पोषक तत्वों की कमी के चलते जो बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, एनीमिया आदि पहले केवल शहरी क्षेत्रों में ही ज्यादा हुआ करती थीं, इन बीमारियों ने अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैर पसार लिये हैं। अनुसंधान केंद्रों में हुये शोधों से जब मोटे अनाजों से स्वास्थ्य सुरक्षा के बारे में ज्ञात हुआ, इसके बाद मोटे अनाजों के प्रति जागरूकता के चलते मोटे अनाज कृषि मेलों और प्रदर्शनियों में दिखाई देने लगे। देश में मोटे अनाज यानी मिलेट्स के उत्पादों के नये-नये उद्योग भी शुरू हो गये और ये आम अनाज से खास अनाज में तब्दील होकर आम व्यक्ति की थाली के साथ खास लोगों यानी अमीरों की थालियों की भी शोभा बढ़ाने लगे।
वास्तव में मोटे अनाजों में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं जिसके कारण इन्हें सुपरफूड भी कहा जाता है। मोटे अनाज पोषण और स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होते हैं। मोटे अनाजों का खाद्य के रूप में सेवन करने से वजन कम करने, शरीर में उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इनसे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे जानलेवा रोगों से भी बचाव होता है।
मोटे अनाजों के पोषक और स्वास्थ्य के महत्व को दृष्टिगत रखते हुये केंद्र सरकार ने भी वर्ष 2023 को मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष वृहद रूप से मनाने की तैयारियां शुरू कर दी है। पिछले दिनों ही केंद्रीय केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि नेतृत्व एवं वैश्विक पोषण सम्मेलन (एग्रीकल्चर लीडरशिप एंड ग्लोबल न्यूट्रिशन कान्क्लेव) में कहा कि अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष मनाए जाने से मिलेट्स (मोटे अनाजों) की घरेलू एवं वैश्विक खपत बढ़ेगी, जिससे रोजगार में भी वृद्धि होगी एवं अर्थव्यवस्था और मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा, संस्कृति, चलन, स्वाभाविक उत्पाद व प्रकृति द्वारा जो कुछ भी हमें दिया गया है, वह निश्चित रूप से किसी भी मनुष्य को स्वस्थ रखने में परिपूर्ण है। उन्होने कहा कि गेहूं और चावल के साथ मोटे अनाज का भी भोजन की थाली में पुन: सम्मानजनक स्थान होना चाहिए। कोविड महामारी ने हम सभी को स्वास्थ्य व पोषण सुरक्षा के महत्व का काफी अहसास कराया है। हमारी खाद्य वस्तुओं में पोषकता का समावेश होना अत्यंत आवश्यक है।
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