संपादकीय (Editorial)

बीज की कवायद

  • सुनील गंगराड़े

4 जून 2022, बीज की कवायद – भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का एक प्रमुख स्थान है। बीते 70 वर्षों में खेती में उपयोग होने वाली कृषि भूमि का रकबा घटता चला गया है, परंतु कृषि उत्पादन में पांच गुना से भी अधिक वृद्धि हुई है परंतु उत्पादकता विभिन्न फसलों की ठिठकी हुई है। उत्पादकता वृद्धि की राह में अनेक बाधाएं हंै। विपुल उत्पादन देने वाली किस्मों का किसानों तक ना पहुँच पाना, कृषि आदान की बढ़ती लागत के कारण किसानों की अरुचि, भूमि की घटती उर्वरता, मौसम, सरकार की ढुलमुल नीतियां आदि बाधाएं किसानों की आमदनी दूनी करने की राह में खड़ी है।

फसलों की उत्पादकता, उत्पादन में बीज एक प्रमुख आधार है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए क्वालिटी बीज, सर्टिफाइड नितांत अनिवार्य है, जिसके बिना उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई जैसे अन्य आदानों का निवेश व्यर्थ है। केवल क्वालिटी बीज के उपयोग से उपज में 15-20 प्रतिशत और श्रेष्ठ व्यवस्थापन के साथ 45 प्रतिशत तक उपज में बढ़ौत्री हो सकती है। अप्रत्याशित बारिश, बाढ़, सूखा आदि जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के संदर्भ में कृषि क्षेत्र में बीज पर मंथन अनिवार्य है। इन स्थितियों में बीज एक मूल आदान है और समय पर विभिन्न फसलों की उपयुक्त किस्मों की उपलब्धता महत्वपूर्ण है। इसके लिए देश में विभिन्न राज्यों के कृषि विभागों द्वारा बीज की आवश्यकता का अनुमान लगाने की कवायद निरंतर होती है। बीज उपलब्धता में निजी क्षेत्र का भी लगभग 50 प्रतिशत योगदान रहता है।

बीते वर्षों में किसानों ने नकली अमानक बीजों के कारण उत्पादन में नुकसान उठाया। महंगा बीज खरीदा गया, पर अंकुरण ना होने से उर्वरक, श्रम आदि का नुकसान हुआ। प्रायवेट सेक्टर की कतिपय बीज कंपनियां अनाज मंडी से खरीद कर आकर्षक पैकिंग बनाकर बीज के नाम पर धड़ल्ले से बेच रही है। कृषि विभाग की सेम्पलिंग भी नाममात्र की है। कृषि विभाग को इस दिशा में नियमित मॉनीटरिंग करने की आवश्यकता है।

गत वर्ष प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन एवं कुपोषण की समस्याओं का समाधान करने वाली 35 फसल किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया। इन 35 किस्मों सहित गत वर्ष 254 किस्मों को अधिसूचित किया गया और व्यवसायिक खेती के लिए जारी किया गया। आंकड़ों के आइने में देखें तो वर्तमान में कुल 190 विभिन्न फसलों की 9066 अधिसूचित किस्में देश में प्रचलन में हैं और इन फसलों में अनाज, तिलहन, दलहन, चारा फसलें, रेशा फसलें, गन्ना और अन्य संभावित फसलें शामिल हैं। और इन किस्मों के बीजों को किसानों तक पहुंचाने के लिए लगभग 1 लाख 50 हजार बीज विके्रता हैं। पर बुवाई से पहले बीज के बवंडर उठने लगते हैं जिन पर नियंत्रण जरूरी है। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा बीज ग्राम कार्यक्रम, पंचायत स्तर पर बीज प्रसंस्करण, बीज भंडार, गोदाम बनाने, राष्ट्रीय बीज रिजर्व, निजी क्षेत्र में बीज उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए बीज और पौध रोपण सामग्री पर उप मिशन बनाया गया। केन्द्र सरकार सब काम मिशन मोड में करती है। ये मिशन बना 2014 में, वास्तविक रूप से फील्ड में 2017 से काम शुरू हुआ। वर्ष 2017-18 में 19 राज्यों में पंचायत स्तर पर 517 बीज प्रोसेसिंग एवं बीज भंडारण गोदाम निर्माण के लिए 310 करोड़ जारी किए गए थे।

कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र उ.प्र. एवं अन्य राज्यों में अभी केवल 50 प्रतिशत ही काम हुआ है। वहीं मध्यप्रदेश को केन्द्र सरकार ने ‘नो प्रोग्रेस’ की कैटेगरी में डाला है। देश की खाद्यान्न सुरक्षा की निरंतरता और अर्थव्यवस्था की कृषि पर निर्विवाद निर्भरता के लिए यह सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है कि किसानों को विपुल उत्पादन देने फसलों के क्वालिटी बीज उपलब्ध हो, उचित दाम पर उनको बीज मिले, और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि समय पर बीज मिले। किसानों की आमदनी में बढ़ौत्री हो और उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ कृषक जगत का यह बीज विशेषांक समर्पित है।

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