Editorial (संपादकीय)

किसान आंदोलन अब राजनीतिक दुष्चक्र में

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किसान आंदोलन अब राजनीतिक दुष्चक्र में

– श्रीकांत काबरा
अत्यंत दुखद दुर्भाग्यपूर्ण घटना ।
उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी गांव में आंदोलन कर रहे किसानों के ऊपर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के लड़के ने अपनी चारपहिया गाड़ी चढ़ा दी।इसमें 6 किसानों की कुचलने से मृत्यु हो गई कई घायल हो गए।घटना को कई घंटे बीत चुके हैं लेकिन किसी के विरुद्ध पुलिस रिपोर्ट अभी तक दर्ज नहीं हुई है और ना ही सरकार की ओर से कोई अधिकारिक बयान भी जारी नहीं हुआ है।
घोषणा वीर राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार दोनों ही किसानों को सब्ज बाग दिखा रही हैं।इनके फेर में पड़ कर किसान लुट रहा है।किसान कल्याण की बात केवल दिखावा है। सरकार की गलत नीतियों के कारण पूरा कृषि तंत्र चौपट होने की कगार पर है।चाहे कृषि शिक्षा की बात हो ,कृषि अनुसंधान की बात हो या कृषि प्रसार की,कृषि आदानों पर अनुदान की बात हो या कृषि उत्पाद के उचित दाम मिलने की बात हो सभी व्यवस्थाएं गड़बड़ा रही हैं और नेतागण दिनरात अपनी उपलब्धियों का ढोल पीट रहे हैं।किसान अपनी दुर्दशा को खुल कर कह भी नहीं सकता।उसकी छवि शासन ने आमजन की निगाह में मुफ्तखोर कामचोर की बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

किसान आंदोलन अब राजनैतिक दुष्चक्र में फंस गया है। मोदी सरकार ने इन कानूनों को मूर्त रूप देने की ठान ली है।किसानों की बात सुनने समझने को वह तैयार नहीं है और विरोधी दल किसानों को भड़का कर इसका राजनैतिक लाभ लेने में जुट गए हैं। इन कानूनों के चलते कृषि उपज मंडियां भविष्य में भारी घाटे के चलते बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगी।मध्यप्रदेश में 49 मंडियां इस हालत में आ चुकी हैं।

एक जिला एक उत्पाद की योजना किसानों के लिए लाभ की बजाय घाटे का कारण बनेगी।फसल विविधीकरण के अभाव में कालांतर में बढ़ते कीट व्याधि प्रकोप के कारण उपज काम होगी तथा लागत बढ़ेगी वहीं बाजार पर व्यवसायिक कंपनियों ,व्यापारियों के एकाधिकार के चलते किसानों को उनकी उपज के आकर्षक दाम नहीं मिलेंगे।

वर्ष 2005 में लगभग 11 बोरे गेहूं में 10 ग्राम सोना आता था और अब वर्ष 2021 में लगभग 24 बोरे में 10 ग्राम सोना मिलता है ।अब किसान भाई स्वयं तय कर लें कि राजनेता किसानों के कितने हितेषी है।पार्टी कोई सी भी हो किसानों को ठगने में कोई भी काम नहीं है।किसान की आमदनी दुगनी करने का कोई उपाय वे इसलिए भी नहीं जानते क्योंकि उन लोगों ने कभी खेती की ही नहीं है।हिंदी में एक कहावत है

करे ना खेती पड़े ना फंद
जे क्या जाने मूसरचंद !

(ये लेखक के निज विचार हैं )

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