संपादकीय (Editorial)

खुशहाल खेती का मंत्र : खेत एक, फसलें अनेक

  • पवन नागर

14 जून 2022, खुशहाल खेती का मंत्र : खेत एक, फसलें अनेक – रसायनिक खादों-दवाओं-कीटनाशकों की भरपूर मात्रा से विपुल पैदावार करने वाली ‘हरित क्रांति’ ने अब अपने पैदा किए खतरों को उजागर करना शुरु कर दिया है। एक जमाने में कभी-कभार होने वाली कैंसर जैसी बीमारी अब घर-घर का संकट बन गई है। ऐसे में क्या वापस पुरानी कृषि-पद्धतियों की तरफ लौटना मुनासिब नहीं होगा?

ओमीक्रॉन बहुत से देशों में तेजी से फैलता जा रहा है और वह भी तब, जब अधिकतर देशों में शत-प्रतिशत वैक्सीनेशन हो चुका है। तो क्या अब हम यह मानकर चलें कि इंसान के शरीर में इतनी ताकत नहीं रही कि वह किसी भी रोग से लड़ सके? क्या इंसानी शरीर पर आधुनिकता के दुष्प्रभाव दिखने लगे हैं? क्या हमारा भोजन पहले जैसा पौष्टिक और शुद्ध नहीं रहा? क्या हम पैसों के लालच में गुणवत्ता-युक्त खाद्य-सामग्री का उत्पादन करना भूल गए हैं? क्या हमें सिर्फ दवाईयों के दम पर ही जि़न्दा रहना पड़ेगा? क्या हम कोरोना जैसी महामारियों से बच पाएँगे? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर हम सबको खोजने ही पड़ेंगे, अन्यथा हम आगे आने वाली पीढ़ी को जवाब देने लायक नहीं रहेंगे। इसलिए जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी इन प्रश्नों के बारे में गंभीरता से सोचना शुरु करें। हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना पड़ेगा और इस आधुनिक जीवनशैली में बदलाव करना पड़ेगा, ताकि हमारा शरीर पहले जैसा मज़बूत हो सके, इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले जैसी हो सके।

हमारे शरीर की मजबूती और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ता है, हमारे द्वारा लिए जाने वाले आहार का। अन्न को यूँ ही ब्रह्म नहीं कहा गया है। हमारे अस्तित्व के सात तलों में से जो पहला तल है, यानी कि हमारा भौतिक शरीर, उसे योग की भाषा में ‘अन्नमय कोष’ कहते हैं। जो अन्न या आहार से बनता हो, वह होता है ‘अन्नमय कोष’, यानी कि हमारा भौतिक शरीर। हम समझ सकते हैं कि शुद्ध और पौष्टिक आहार की अपने शरीर को स्वस्थ व ऊर्जावान बनाए रखने में क्या अहमियत है।

सबसे पहले हमें इस बात पर विचार करना है कि हमारे परिवार को शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक भोजन कैसे प्राप्त हो। अभी समय के अभाव और आधुनिकता के कारण हम ‘फास्ट फूड’ अधिक ले रहे हैं जो कि हमारे शरीर के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है। वहीं दूसरी ओर हम जो फल, सब्ज़ी और अनाज खा रहे हैं उनको उगाने और पकाने में इतना केमीकल इस्तेमाल किया जा रहा है कि हमारा पूरा भोजन ही जहरयुक्त हो चुका है। इसको खाकर हम दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं और हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी कमजोर हो चुकी है कि हमारा शरीर किसी भी रोग से दो दिन भी नहीं लड़ पाता, हमें तुरंत ही डॉक्टर के पास भागना पड़ता है।

अब वक्त है संभल जाने का। बेहतर होगा कि जल्द-से-जल्द आप खेती के अपने वर्तमान तरीके को बदल लें और वापस अपने पूर्वजों के तौर-तरीकों को अपना लें, यानी कि फिर से बिना खर्चे की और बिना ज़हर वाली बहुफसली खेती अपना लें।
इसी बहुफसली प्रणाली में सभी समस्याओं का हल है। हमें एकल फसल प्रणाली और रसायनिक खेती से छुटकारा पाने के लिए लडऩा होगा, तभी हमारी समस्याओं का हल निकलेगा। अधिक-से-अधिक फसलें अपने खेत में लगाएँ और रसायनिक खादों व कीटनाशकों की जगह देशी खाद व प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग करें।

अभी रसायनिक खादों व कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आज गाँव-गाँव तक कैंसर जैसी बीमारी ने पैर पसार लिए हैं। वहीं दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन की एक नई समस्या से भी हमें दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। रसायनिक खेती के कारण हम सिर्फ उत्पादन के लालच में एक या दो फसलों तक ही सीमित हो गए हैं। और भारत में यह स्थिति है कि ‘एकल फसल प्रणाली’ के कारण किसान अपने परिवार की जरूरत का अनाज भी अपनी जमीन से पैदा नहीं कर पा रहा है, उसे अपने परिवार की खाद्य सामग्री के लिए भी बाजार जाना पड़ रहा है।

इसका हल यही है कि हमें ‘बहुफसली प्रणाली’ या मिश्रित खेती को अपनाना होगा, जिसमें पहले अपने परिवार की जरूरत की सभी फसलों का उत्पादन करना होगा। साथ ही रासायनिक खादों व कीटनाशकों का पूर्णत: बहिष्कार करना होगा। हमें फिर से अपने खेत में ज्वार, बाजरा, जौ, मक्का, रागी, अलसी, चना, मसूर, धनिया, मूंगफली एवं हर उस फसल का उत्पादन करना होगा जो हमारा परिवार इस्तेमाल करता है। हम सब को प्रकृति का सहायक बनना है, उसका दुश्मन नहीं। ‘एकल फसल प्रणाली’ से तौबा कर लें और प्रकृति की रक्षा करने वाली प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें। हमेशा याद रखें कि ‘खेत एक, फसलें अनेक’ से ही होगा, कृषि में परिवर्तन। सिर्फ एकल फसल से कृषि में परिवर्तन नहीं होने वाला, क्योंकि हम किसान होकर भी यदि अनाज के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं और खुद जहरयुक्त अनाज खा रहे हैं तो फिर हम पूरे विश्व को कैसे स्वस्थ रख पाएँगे। इसलिए हमें अभी से जहरमुक्त खेती की ओर कदम बढ़ाना होगा, प्राकृतिक खेती करनी होगी, क्योंकि ‘जब होगा जहरमुक्त अनाज हमारा, तब होगा जहरमुक्त समाज हमारा।’

अगर आप यह सोच रहे हैं कि इस तरह की खेती मुनाफा नहीं देगी तो आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं। अपना स्मार्टफोन उठाकर देखिए, इंटरनेट प्राकृतिक खेती करके बड़ा मुनाफा कमाने वालों की दास्तानों से भरा पड़ा है। आने वाले समय में भाँति-भाँति के और जहरमुक्त भोज्य पदार्थों की भारी माँग खड़ी होने वाली है। जो कोई अभी से खुद को इस माँग की आपूर्ति करने के लिए तैयार कर लेगा वह जमकर लाभ कमाएगा और जो इस बदलाव से अछूता रहेगा वह बाजार से बाहर हो जाएगा।

जल संकट, जलवायु परिवर्तन और आए दिन आने वाली नई बीमारियों से बचने, अपनी आने वाली पीढिय़ों को सलामत रखने और खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए बिना खर्चे की ‘प्राकृतिक खेती’ और ‘खेत एक, फसलें अनेक’ का मंत्र जपना जरूरी है। यही फिलहाल समय की मांग है और इसी में हम सबकी सभी समस्याओं और सभी प्रश्नों के हल छिपे हुए हैं।

(सप्रेस)

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