प्रो. सेन जिंदगी भर गरीबों और हाशिये के हिमायती रहे
- डॉ. रमेश चंद,
सदस्य, नीति आयोग
6 सितम्बर 2022, भोपाल । प्रो. सेन जिंदगी भर गरीबों और हाशिये के हिमायती रहे – प्रो. अभिजित सेन ऐसे प्रतिभाशाली अर्थशास्त्री थे, जिन्होंने ज्यादातर ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था पर काम किया। उन्होंने नीति निर्माण करने वाले देश के कई शोध स्तरीय निकायों में कार्य किया। यह कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन और पूरे 10 साल तक योजना आयोग के पूर्णकालिक सदस्य (कृषि) रहे।
प्रो. सेन 14वें वित्त आयोग के भी सदस्य थे। इसके अलावा उन्होंने कई उच्च स्तरीय और महत्वपूर्ण समितियों की अध्यक्षता की, जैसे खाद्यान्न पर दीर्घकालिक नीति के संबंध में उच्च स्तरीय समिति, वायदा कारोबार पर समिति आदि। उन्होंने कृषि की लागत के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए किसानों की आय का अनुमान तैयार किया और अपने कार्यों को एमएस भाटिया के साथ एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया।
मुझे 11वीं (2007-2012) और 12वीं (2012-2017) पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यकारी समूहों और संचालन समितियों में 10 साल से अधिक समय तक प्रो. सेन के साथ नजदीक से काम करने का मौका मिला था।
प्रो. सेन को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) तैयार करने के लिए भी राज्यों द्वारा याद किया जाता है, जिसने शायद पहली बार राज्यों को केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के अंतर्गत दिया गया धन खर्च करने के लिए सुगमता प्रदान की थी।
मैं यहां एक दिलचस्प प्रसंग का उल्लेख करना चाहूंगा। जब मैं 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर रहा था, तब मैंने एक ब्लाइड पर काम किया था, जिसमें दिखाया गया था कि जब कृषि के मामले में व्यापार की शर्तों (टीओटी) में इजाफा हुआ, तो भारत में कृषि विकास में तेजी आई और टीओटी में कमी आने पर गिरावट आई। इसका मतलब यह था कि कीमतें कृषि में विकास का संचालन कर रही थीं और इनका इस क्षेत्र की समृद्धि से सीधा संबंध था। प्रो. सेन ने अपने अनोखे तरीके से चुटकी ली थी कि ‘आपका अनुमान बहुत खतरनाक है, लेकिन मैं इसका खंडन नहीं कर सकता।’ प्रो. सेन खाद्य नीति और मूल्य समर्थन प्रणालियों में सार्वजनिक हस्तक्षेप के प्रबल समर्थक थे।
एक और घटना जो मुझे याद है, वह है प्रो. सेन द्वारा कृषि में ‘टेक्नोलॉजी फटीग’ शब्द गढऩा। उन्होंने मुझे कृषि में ‘प्रौद्योगिकी का सूचकांक तैयार करने के लिए कहा था, ताकि कृषि विकास के साथ इसके संबंधों का विश्लेषण किया जा सके। हमने यह पाया था वर्ष 1997 और वर्ष 2004 के बीच, जब कृषि विकास धीमा हो गया था, उपज क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाला ‘प्रौद्योगिकी का सूचकांक’ सपाट रहा। इस अध्ययन के आधार पर प्रो. सेन कृषि के संबंध में ‘टेक्नोलाजी फटीग’ शब्द लेकर आए। इस अध्ययन के निष्कर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ साझा किए गए थे।
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा पूरे किए जाने वाले लक्ष्यों के लिए निजी क्षेत्र को भूमिका के बारे में मैंने उन्हें हमेशा शंकालु पाया। सेन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और कई अन्य नीतियों के भी प्रबल समर्थक थे जिनका लक्ष्य गांवों के गरीबों, कृषि श्रमिकों तथा छोटे और सीमांत किसान थे।
प्रो. सेन राज्यों के अधिकारों के भी बड़े हिमायती थे और संघवाद में दृढ़ विश्वास रखते थे। यह उनके उस असहमति नोट से भी स्पष्ट होता है, जो उन्होंने 14वें वित्त आयोग को भेजी गई रिपोर्ट में लिखा था। वह चाहते थे कि राज्यों को और अधिक हस्तांतरण किया जाए। प्रो. सेन ने कृषि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में काम करने वाले कई युवा विद्वानों को इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रीकल्चर इकॉनामिस्ट्स के अध्यक्ष के रूप में भी पदोन्नत किया। उन्होंने अपनी सादगी और कई जटिल मसलों पर सीधे सरल दृष्टिकोण से सभी को प्रभावित किया।
कृषि अर्थशास्त्रीयों को जैसा उन्होंने समझा था, शायद कोई और नहीं समझा तथा यह जिंदगी भर गरीब, भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों तथा हाशिए वाले क्षेत्रों और समुदायों के हिमायती रहे।
(बिजनेस स्टैंडर्ड से साभार)
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