संपादकीय (Editorial)

कृषि उत्पादन के नये आयाम

भारत सरकार के कृषि सांख्यिकी विभाग ने वर्ष 2016-17 के कृषि फसलों के उत्पादन के तीसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान को 9 मई 2017 को जारी कर दिया। इस वर्ष लगभग सभी फसलों के अच्छे उत्पादन का अनुमान है, इसमें अच्छी वर्षा का भी योगदान रहा है। किसान द्वारा फसल उगाने में किये गये अच्छे प्रबंधन का प्रभाव इसका मुख्य कारण है। वर्ष 2015-16 में जहां खरीफ धान का उत्पादन 914.1 लाख टन हुआ था। इस वर्ष 2016-17 में यह बढ़कर 960.9 लाख टन होने का अनुमान है। धान के उत्पादन में 5.1 प्रतिशत रही है। खाद्यान्न की दूसरी प्रमुख फसल गेहूं का पिछले वर्ष 922.9 लाख टन उत्पादन के विपरीत इस वर्ष इसका 974.4 लाख टन का अनुमान है। पिछले वर्ष की तुलना में यह वृद्धि 5.57 प्रतिशत है। धान व गेहूं दोनों खाद्यान्न फसलों में एक ही वर्ष में 5 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि कोई साधारण वृद्धि नहीं है। इसके लिये देश के किसान बधाई के पात्र हैं। पिछले कुछ वर्षों में मक्का की फसल के प्रति किसान आकर्षित हो रहे हैं। पिछले वर्ष देश में मक्के का उत्पादन 225.7 लाख टन था। इस वर्ष 261.4 लाख टन होने का अनुमान है। एक ही वर्ष में मक्का उत्पादन  में 15.8 प्रतिशत वृद्धि आने वाले वर्षों में मक्के के रकबे को बढ़ाने में और सहायक होगी। मध्यप्रदेश में सोयाबीन के स्थान पर मक्के की फसल, एक विकल्प के रूप में किसान अपना सकते हैं। पिछले वर्ष दालों की कमी को देखते हुए किसानों ने दलहनी फसलें अधिक लेकर देश को इस संकट से उबारने का कार्य किया है। पिछले वर्ष अरहर का देश में उत्पादन मात्र 25.6 लाख टन हुआ था, इस वर्ष अरहर का अनुमानित उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 75 प्रतिशत अधिक (46.0 लाख टन) होने का अनुमान है। चना का उत्पादन भी 70.6 लाख टन, पिछले वर्ष की तुलना में 90.8 लाख टन होने का अनुमान है। यह वृद्धि भी पिछले वर्ष की तुलना में 28.6 प्रतिशत है। उर्द व मूंग का उत्पादन भी पिछले वर्ष की तुलना में क्रमश: 50 व 30 प्रतिशत अधिक होने का अनुमान है। दलहनी फसलों में मूंगफली का उत्पादन 673.3 लाख टन से 765.0 लाख टन व सरसों का उत्पादन 679.7 लाख टन से बढ़कर इस वर्ष 797.7 लाख टन होने की संभावना हैं। कपास का उत्पादन भी जो पिछले वर्ष 3000.5 लाख गांठें हुआ था इस वर्ष 2016-17 में 3257.6 लाख गांठें होने का अनुमान है। किसानों ने उत्पादन में सकारात्मक वृद्धि कर अपना दायित्व निभाया है। अब सरकारों का दायित्व बनता है कि किसान को कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिले, उसके द्वारा उत्पादित पदार्थों का उचित भंडारण हो व बिचौलियों का लाभांश किसानों से ज्यादा न हो।

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