धूप से मिलने वाला विटामिन-डी
धूप से बिल्कुल दूर रहना, सनस्क्रीन लगाए रखना, दूध नहीं पीना या फिर केवल शाकाहारी आहार लेने वालों को विटामिन -डी की कमी होने की आशंका होती है। धूप के संपर्क में आने पर शरीर में विटामिन डी का निर्माण होता है, इसीलिए यह सनशाइन विटामिन के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक रूप से यह खाने की कुछ चीजों में भी मौजूद होता है, जैसे मछली, अंडे का पीला भाग, डेयरी उत्पाद आदि, लेकिन केवल इनसे इसकी आपूर्ति नहीं होती है।
क्यों जरूरी है विटामिन -डी?
शरीर के विकास, हड्डियों के विकास और स्वास्थ्य के लिये बहुत जरूरी है। धूप के संपर्क में आने पर त्वचा इसका निर्माण करने लगती है। हालांकि यह विटामिन खाने की कुछ चीजों से भी प्राप्त होता है, लेकिन इनमें यह बहुत ही कम मात्रा में होता है। केवल इनसे विटामिन डी की जरूरत पूरी नहीं हो जाती है। यह हड्डियों को मजबूत बनाता है, क्योंकि इसकी मौजूदगी में शरीर कैल्शियम का उपयोग बेहतर ढंग से कर पाता है। पारंपरिक रूप से विटामिन -डी की कमी को रिकेट्स नामक बीमारी से जोड़ा जाता है। इस बीमारी में हड्डियों में कैल्शियम ठीक से जमा नहीं हो पाता, जिससे यह नर्म और कमजोर हो जाती हैं। रिके ट्स के मरीजों को फ्रैक्चर आसानी से हो सकता है। नए अध्ययन बताते हैं कि विटामिन-डी न केवल हड्डियों को मजबूत बनाती हैं, बल्कि यह कई बीमारियों से भी बचाता है।
कमी होने पर- विटामिन – डी आवश्यक मात्रा से थोड़ा कम होने पर कोई गंभीर समस्या नहीं होती, हो सकता है कि व्यक्ति में इसकी कमी के कोई लक्षण भी दिखाई न दें। लक्षण हों तो भी यह काफी साधारण ही होते हैं, जैसे हल्का दर्द होना। विटामिन -डी बहुत ही कम होने पर गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं, जिसमें ओस्टियोमेलेशिया और रिकेट्स शामिल हैं। रिकेट्स बच्चों में पाई जाती है और इससे मिलती-जुलती बीमारी होती है ओस्टियोमेलेशिया, जो वयस्कों को प्रभावित करती है।
इलाज – विटामिन -डी की कमी के शुरूआती लक्षण बहुत मामूली होते हैं। यह भी संभव है कि शुरूआत में कोई लक्षण दिखाई ही न दें। इसीलिये आमतौर पर शुरूआत में इसका इलाज नहीं हो पाता है। गंभीर परेशानियां होने तक लोगों को इसकी कमी का पता ही नहीं चल पाता। आहार, सप्लिमेंट्स और धूप में अधिक समय बिताना इसके इलाज में शामिल है।