कम पानी में सरसों की वैज्ञानिक खेती
लेखक: डॉ. मुकेष सिंह, डॉ.एस.एस.धाकड़, डॉ.गायत्री वर्मा, एवं डॉ.जी. आर. अंबावतिया कृषि विज्ञान केन्द्र, षाजापुर, म.प्र. राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विष्वविद्यालय,ग्वालियर (म.प्र)
15 अक्टूबर 2022, शाजापुर: भारत में मध्यप्रदेश तिलहनी फसल उत्पादन करने वाला महत्वपूर्ण प्रदेश है । जिसमें रबी में सरसों का मुख्य स्थान है, प्रदेश में तोरिया सरसों का लगभग 6.97 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है जिसका दो तिहाई उत्तरी अंचल मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर जिलों में है। जिसकी सर्वाधिक उत्पादकता 1359 किलो प्रति हे. है। जबकि राज्य की उत्पादकता मात्र 1190 कि./हे. है। राई सरसों उत्तरी मध्यप्रदेश की प्रमुख रबी फसल है। जो लगभग 39 प्रतिशत क्षेत्र मेें बोई जाती है। वर्तमान में मालवा क्षेत्र में भी सरसों का रकबा बडा है। कृषक भाई वैज्ञानिक ढंग से सरसों की खेती करते है तो अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
सारणी:-1 सरसों का पौषण मान प्रति 100 ग्रा.
क्र. | पौषक तत्व | सरसों का दाना | सरसों की पत्ती |
1 | नमी | 8.5 ग्रा. | 89.8 |
2 | प्रोटीन | 20.0 ग्रा. | 4 |
3 | वसा | 39.7 ग्रा. | 0.6 |
4 | खनिज | 4.2 ग्रा. | 1.6 |
5 | रेषा | 1.8 ग्रा. | 0.8 |
6 | कार्बोहाइड्रेट | 23.8 ग्रा. | 3.2 |
7 | उर्जा | 541 कि.कै. | 34 कि.कै. |
8 | कैल्षियम | 490 मि.ग्रा. | 155 मि.ग्रा. |
9 | फास्फोरस | 700 मि.ग्रा. | 26 मि.ग्रा. |
10 | लोहा | 7.9 मि.ग्रा. | 16.3 मि.ग्रा. |
जलवायु:- सरसों की फसल के लिए शुष्क एवं ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में कोहरा एवं ठण्ड अधिक पडती है। वहा पर सरसों की फसल को नुकसान होता है। ऐसे क्षेत्रों के लिए सरसों की बुवाई समय पर किया जाना आवश्यक है।
भूमि एवं भूमि की तैयारी:- सरसों की पैदावार दोमट, बलुई-दोमट, से चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है। बोनी के पूर्व खेत की 4-5 बार अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी की भुरभुरा बना ले भूमि की तैयारी के समय नमी संरक्षण का विशेष ध्यान रखे इसके लिए खेत की जुताई के साथ पाटा लगाना भी आवश्यक है। भूमि को सममतल करने के उपरान्त बीज को कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी. तथा पौधे से पौधेकी दूरी 10 सेमी. एवं बीज को 2.5 सेमी गहराई पर बुवाई करें।
बुवाई का समय:- सरसों की फसल के लिए सितम्बर के अंतिम सप्ताह एवं 15 अक्टूबर (औसत तापमान 26 से 280 से. पर ) तक बुवाई कर लेना आवश्यक है। देर से बुवाई करने पर फसल देर से पकेगी और कीट व्याधियों का प्रकोप अधिक होगा ।
बीज एवं उपचारः- सरसों की फसल के लिए अच्छी गुणवत्ता वाला 5 कि. ग्रा. बीज /हे. की आवश्यकता होती है। बीज को बोने से पूर्व बीज जनित रोगों से बचाव के लिए थीरम 2.5 ग्रा. /किग्रा. बीज की दर से या कार्बेन्डाजिम 2.5 गा्रम प्रति कि.गा्र बीज की दर से उपचारित करे जहां पर पाउडरी मिल्डयू या सफेद गेरूई रोग आने की संभावना हो तो मेटालेक्सिल 1.5 ग्राम/किग्रा. बीज में मिला कर उपचारित कर बुवाई करें।
भूमि उपचार:- फसल को भूमिगत कीटों से बचाव हेतु फोरेट 10 जी कि 20 किलो प्रति हे. या क्लोरोपायरीफास 20 कि.ग्रा या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलायें।
उन्नतशील जातियां
सारणी:-2 म.प्र. हेतु उन्नत किस्में:- सरसों
क्रमांक | किस्म का नाम | पकने की अवधि | उपज (कि0ग्रा0/हे0) |
1 | आर.वी.एम-2 | 125-130 | 2000 |
2 | आर.वी.एम-1 | 98-121 | 1400-2000 |
3 | जे0एम0-1 | 125-130 | 1800-2100 |
4 | प्ूासा बोल्ड | 125-135 | 1500-2200 |
5 | रोहिणी | 125-130 | 1300-1800 |
6 | जगन्नाथ | 125-130 | 1800 |
7 | आर्शीवाद | 125-130 | 1500 |
8 | जवाहर सरसों-2 | 112 | 2400 |
9 | वरूणा | 125-140 | 1500-2000 |
10 | क्रांति | 125-130 | 1500-1800 |
11 | पूसा जय किसान | 125-135 | 2000-2500 |
12 | आर.एच.-725 | 120-125 | 2000-2500 |
सरसों:-
जे.एम.-1 (जवाहर सरसों-1) मुरैना द्वारा विकसित इस प्रजाति के पौधों की उचाई 170 से 185 सेमी. है। यह प्रजाति श्वेत किट्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी है । तथा 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है और उत्पादन 18-22 क्विंटल/हेक्टर प्राप्त किया जा सकता है।
जे.एम.-2 यह प्रजाति 130 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा उत्पादन क्षमता 15-30 क्विंटल/हेक्टेयर तक पाई गई है। इस प्रजाति में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत पाया जाता है। और हजार दानों का वजन 4.5 ग्राम से 5.2 ग्राम तक होता है।
रोहिणी:- इस जाति की उचाई 150-155 सेमी. होती है। इसकी फलिया टहनी से चिपकी हुई, तेल की मात्रा 42 प्रतिशत एवं उत्पादन 20-22 क्वि./हे. है।
वरूणा:- यह सरसों की बहुत पुरानी एवं प्रचलित किस्म है। जो कि 135-140 दिन में पककर तैयार होती है, तेल की मात्रा 42 प्रतिशत, उत्पादन 20-22 क्विंटल/हे. प्राप्त किया जा सकता है।
पूसा बोल्ड:- यह 125-135 दिनों में पक जाती है तथा 15-22 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया जा सकत है।
पूसा जय किसान:- 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है इसमें 42 प्रतिशत तेल पाया जाता है । इसकी उत्पादकता 25-30 क्विंटल/हेक्टर हैं।
सारणी:-3 तोरिया की प्रजातियां
प्रजाति | पकने की अवधि | उपज क्विंटल/हेक्टेयर |
आर.वी.टी-1 | 90-105 | 16-18 |
आर.वी.टी-2 | 105-109 | 17-24 |
आर.वी.टी-3 | 93-99 | 13-14 |
जवाहर तोरिया-1 | 85-90 | 17 |
टाइप-9 | 95-100 | 16-18 |
भवानी | 85-90 | Dec-15 |
सारणी:-4 सरसों अनुसंधान निदेषालय (डी.आर.एम.आर.) भरतपुर राजस्थान द्वारा विकसित किस्में
क्रमांक | किस्म का नाम | विशेषता |
1 | एन.आर.सी.डी.आर.-02 | उच्च उपज क्षमता, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं राजस्थान क्षेत्र के लिये अनुषंसित |
2 | एन.आर.सी.एच.बी.-101 | भारतीय सरसों किस्म देर से बुवाई हेतु उपयुक्त, सिंचित स्थिति में, उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , राजस्थान के कुछ क्षेत्रों के लिए अनुषंसित |
2 | एन.आर.सी.एच.बी.-506 | भारत की पहली सरसों संकर किस्म, उच्च उपज क्षमता राजस्थान एवं उत्तर प्रदेष के लिये अनुसंषित |
3 | एन.आर.सी.डी.आर.आई.जे.-31 | भारतीय सरसों किस्म समय पर बुवाई हेतु, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं राजस्थान के लिये उपयुक्त |
4 | एन.आर.सी.डी.आर. -601 | भारतीय सरसों किस्म समय पर बुवाई हेतु, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली एवं राजस्थान के लिये उपयुक्त |
5 | एन.आर.सी.वाय.एस.-05-02 | पीली सरसों भारत के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
पाला सहनशील किस्में:- | ||
1 | आर.एच.-781 | सूखा एवं पाला सहनशील, गेहूॅ के साथ अन्तः फसल के लिये उपयुक्त, हरियाणा पूर्व भारत के लिये उपयुक्त |
2 | आर.जी.एन.-48 | सूखा सहनशील, पंजाब, हरियाणा के लिये अनुषंसित |
3 | स्वर्ण ज्योति (आर.एच.9801) | पाला सहनशील, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, एवं राजस्थान के लिए उपयुक्त |
4 | आर.जी.एन.-13 | पाला के प्रति उच्च सहनशील, अधिक तापमान के प्रति सहनशील, राजस्थान के लिए अनुषंसित |
उपरोक्त प्रजातियों का प्रयोग कर कृषक भाई सरसों-तोरिया की अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
खाद एवं उर्वरक:- सरसों की फसल के लिए सिंचित क्षेत्रों में अच्छा सडा हुआ गोबर का देशी खाद 100 क्वि./हे. बुवाई के एक माह पूर्व खेत में मिलाये रासायनिक उर्वरक कृषक भाई मिट्टी परीक्षण के उपरान्त प्रयोग करें जिससे फसल को अधिक लाभ होता है। सरसों की फसल के लिए उपरोक्त खाद के अलावा निम्न उर्वरकों का उपयोग करें ।
सारणी:-5 नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर का अनुपात(किग्रा)/हे
फसल का नाम | नत्रजन (किग्रा) | फास्फोरस (किग्रा) | पोटाश (किग्रा) | सल्फर (किग्रा) |
सरसों सिंचित | 80 | 40 | 20 | 40 |
सरसों असिंचित | 40 | 20 | 10 | 20 |
तोरिया | 60 | 30 | 20 | 20 |
निराई-गुडाई एवं बिरलीकरण:- बुवाई के 15-20 दिन बाद बिरलीकरण का कार्य किया जाना चाहिए। जिसमें घने पौधों को अलग करें तोरिया में पौध से पौध की दूरी 7-8 सेमी. सरसों में 10-15 सेमी. करना आवश्यक है जिससे पौधों की पैदावार अच्छी होती है।
रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण:- बुवाई के 20-25 दिन बाद निंदाई गुडाई करना आवयक है। साथ ही घने पौधों को निकालकर अलग करें। सरसों की फसल का प्याजी प्रमुख खरपतवार है। इसके नियंत्रण के लिए बासालीन 1 कि. ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. बुवाई से पूर्व खेत में मिलावें अथवा आइसोप्रोटूरान 750 ग्रा. या पेन्डिमिथलीन की एक कि.ग्रा. मात्रा बोनी के तुरंत बाद एवं अंकुरण से पूर्व खेत में मिलावें ।
सिंचाई:- सरसों की पहली सिंचाई फूल आने से पूर्व 30-35 दिन पर दूसरी सिंचाई जब फली में दाना भरने लगे अवश्य करनी चाहिए इससे कृषकों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
फसल सुरक्षा
रोग:-
झुलसा रोग:- इस रोग में पŸिायों एवं फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते है इसके उपचार के लिए, फसल बोने के 50 दिन बाद रिडोमिल (0.25 प्रतिशत) का छिडकाव करें।
तना सड़न:- इस रोग से तोरिया एवं सरसों के तनों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है एवं ग्रसित पौधे अंदर से पोले हो जाते है। किसान इस रोग को पोला रोग के नाम से जानते है। इस रोग के नियंत्रण हेतु बीज को बावीस्टीन 3 ग्रा./किलों बीज की दर से बीज उपचार कर बुवाई करें,।
कीट:-
आरा मक्खी:- यह अक्टूबर से दिसम्बर तक फसल को हानि पहुचाती है इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. 1 ली./हे. या मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 एम.एल. मात्रा /हे. 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
माहू:- यह सरसों का प्रमुख हानिकारक कीट है जो पौधों की पŸिायों, फूल एवं फलियों से रस-चूसकर हानि पहुचाता है ओर जब आसमान में बादल छाये रहते है। तब इस की संख्या तेजी से बढकर मौसम साफ होने पर फसल को नुकसान पहुचाते है। इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई.सी. (1 ली./हें.) इमिडाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल (125 मि.ली./हे.) दवा को 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई:- सरसों की पŸिायां एवं फलियां पीली पड़ जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। सूखने के उपरान्त सरसों के फसल की गहाई करनी चाहिए। जिससे बीज में नमी 10 प्रतिशत तक कम हो जाए और सरसों के बीज में कीड़े एवं फफूंद न लग सकें और वैज्ञानिक तरीके से बीज को भंडारित करें ।
सारणी:-6 सरसों की खेती से अनुमानित आय व्यय का लेखा जोखा
क्रमांक | कार्य का विवरण | इकाई प्रति हे. | रूपये दर प्रति इकाई | व्यय प्रति हे. रूपये में |
1 | खेत की तैयारी | 8 घन्टे | 400/ | 3200 |
2 | खाद/उर्वरक | 5 टन | 800/ | 4000 |
नत्रजन | 80 कि.ग्रा. | – | 800 | |
फास्फोरस | 40 कि.ग्रा. | – | 1200 | |
पोटाष | 30 कि.ग्रा. | – | 812 | |
सल्फर | 20 कि.ग्रा. | 400 | 400 | |
3 | बीज | 5 कि.ग्रा. | 100/ | 500 |
4 | बुआई | 2 घन्टे | 500/ | 1000 |
6 | सिंचाई | 2 सिंचाई | 600/ | 1200 |
7 | निंदाई गुडाई | 20 श्रमिक | 150/ | 3000 |
8 | पौध संरक्षण | दवा, श्रमिक, यंत्र | – | 1000 |
9 | कटाई/गहाई | 25 श्रमिक | 150/ | 3750 |
10 | अन्य व्यय | – | – | 1000 |
कुल व्यय | 21662 |
कुल अनुमानित उत्पादन = 20 क्वि./हे.
दर = 4000/क्वि.
कुल आय = 4000×20=80000
शुद्व आय = 80000-21662= 58338
बी.सी.रेसियो(लागत अनुपात) = 3.69
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