फसल की खेती (Crop Cultivation)

सोयाबीन के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन

  • डॉ. शिखा शर्मा, डॉ. गौरव महाजन , डॉ. वी.के. पराडक़र ,डॉ. अशोक राय
    आंचलिक कृषि अनु. केन्द्र, चंदनगांव, छिंदवाड़ा
    जवाहरलाल नेहरू कृषि महाविद्यालय, जबलपुर

 

8 अगस्त 2022, सोयाबीन के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली सोयाबीन पर रोगव्याधि की समस्या अनुकूल मौसम के कारण अधिक होती है। सोयाबीन की फसल लगने से लेकर फसल पकने तक अनेक प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है इनमें से कुछ रोगों का प्रकोप सोयाबीन के उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला प्रमुख कारण सिद्ध हुआ है। सोयाबीन की प्रमुख गौण बीमरियों के नाम, उनके लक्षण, पौधों की अवस्था जिसमें आक्रमण होता है एवं रोकथाम निम्नानुसार है –

पद गलन (कॉलर रॉट)

यह बीमारी प्रारम्भिक अवस्था में स्केलेरोशियम शेल्फसाई आदि नामक फफूंद द्वारा होती है, अधिक तापमान एवं नमी इस रोग के लिये अनुकूल है यह मृदा जनित रोग है एवं प्राय: सभी जगह पाया जाता है।

पहचान व लक्षण:- तने का हिस्सा जो जमीन से लगा होता है यहाँ पर यह फफूंद हल्के रंग के धब्बे बनाती है, तने का यह हिस्सा फफूंद के कवकजाल से ढक जाता है व इस पर लाल भूरे रंग के सरसों के बीज के आकार के गोल स्केलेरोशिया बनते हैं, बाद में तने का यह हिस्सा सड़ जाता है जिससे पौधा मुरझाकर गिर जाता है।

रोकथाम
  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
  • खेत को साफ सुथरा व फफूंदनाशक दवा से उपचारित कर ही वुवाई करें।
  • रोग ग्रसित पौधों को उखाडक़र पन्नी में रखकर खेत से बाहर गड्ढे से नष्ट करें।
  • बाविस्टीन 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर रोग ग्रसित पौधों व स्वस्थ पौधों की जड़ों में डालें।
गेरूआ (रस्ट)

यह रोग केकोप्सोरा पैकीराईजी नामक फफूंद के द्वारा होता है गीली पत्ती बनी रहने एवं लगातार वर्षा होने से तापक्रम (18 से 28 डिग्री सेल्सियस) तथा अधिक नमी (अपेक्षित आद्र्रता 80 प्रतिशत के आसपास) होने की दशा में रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।

पहचान व लक्षण:- इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर निचली सतह में सुई की नोक के आकार के मटमैले भूरे व लाल धब्बे दिखाई देते हैं कुछ ही समय में यह धब्बे समूह में बढ़ जाते हैं व पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं इन पश्च्यूल से कत्थई रंग का पावडर निकलता है जो स्वस्थ पत्तियों पर गिरकर रोग की तीव्रता को बढ़ाता है।

रोकथाम
  •  गेरूआ प्रतिरोधी किस्मों पी.के. 1029, पी.के. 1024, इंदिरा सोयाबीन-9 आदि किस्मों का चयन करें।
  • रोग की प्रारम्भिक अवस्था पर हैक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ई.सी. (कन्टाफ) या प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. (टिल्ट) 750 मिली/हेक्टेयर 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ें।
माइरोथिसियम पत्ती धब्बा

myrothicium

यह रोग मायरोथिसियम रोडीरम नामक फफूंद से होता है रोगजनक बीज व ग्रसित पौधों के अवशेषों में जीवित रहता है यह रोग बुवाई के 30-35 दिन की फसल पर अधिक लगता है।

पहचान व लक्षण:– रोग ग्रसित पौधों की पत्तियों पर छोटे, गोले, हल्के से गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो कत्थई रंग के घेरे से घिरे रहते हैं धीरे-धीरे यह धब्बे आपस में मिलकर अनियमित आकार के हो जाते हैं।

रोकथाम एवं उपाय
  • स्वच्छ व प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
  • रोकथाम के लिये 2 ग्राम थायरम+1 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलो बीज के हिसाब से बीजोपचार करें।
  • रोग दिखते ही फसल पर कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाईल (0.05 से 0.1 प्रतिशत) घोल का छिडक़ाव करें।
पीला मोजेक रोग

सोयाबीन का मोजेक रोग एवं विषाणु जनित रोग है यह रोग मूत्र के पीले मोजेक विषाणु द्वारा होता है। यह बीमारी लगभग सोयाबीन उत्पादन करने वाले सभी क्षेत्रों में पायी जाती है। इसका प्रकोप सोयाबीन फसल पर 70 प्रतिशत तक देखा गया है। यह रोग बीज जनित नहीं है। सफेद मक्खी इस वायरस (विषाणु) के वाहक का कार्य करते हुये रोग को फसल पर फैलाती है।

नियंत्रण:
  • एकल फसल प्रणाली के स्थान पर फसल चक्र अपनायें।
  • शुरूआती अवस्था में ही पीला मोजेक रोग ग्रसित पौधों को उखाडक़र नष्ट कर दें।
  • शुरूआती अवस्था में कीट नियंत्रण के लिये सिन्थेटिक पाइरेथ्रॉइड (अल्फामेथ्रिन, साइपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, लेम्ब्डासाइहेलोथ्रिन) का उपयोग न करें।
  • सोयाबीन की फसल के आसपास, मूँग, उड़द, भिण्डी, बैंगन टमाटर की खेती न करें।
  • सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये थायोमिथॉक्सम 25 डब्ल्यू. जी. 125 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 125 मि.ली. या एसीटामिप्रिड 20 एस.पी. 200 ग्राम या इथोफेनप्रॉक्स 10 ई.सी. 1 लीटर/हेक्टेयर को पानी की 600 से 750 लीटर मात्रा में घोल बनाकर छिडक़ाव करें, आवश्यकता हो तो 10 दिन बाद दो बार छिडक़ाव करें।

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