मटर के कीट एवं रोग प्रबंधन
पर्ण सुरंगक (लीफ माइनर)
पहचान एवं क्षति के लक्षण:- प्रौढ़ मक्खी चमकीली, गहरे, हरे रंग या काली होती है। इसका वक्ष काले रंग का होता है तथा किनारों पर पीले निशान होते है। अगले पंख पारदर्शक होते है। पिछले पंख हाल्टियर्स में बदल जाते है। तथा पीले होते है। इस कीट की आंखे बड़ी तथा उन्नत होती है। इल्लियाँ गोलाकार यंत्र द्वारा पश्रियों पर असंख्य छेद बनाती है। अधिक छेद होने के कारण छोटे कोमल पौधे मुरझाकर सूख जाते है तथा बड़े पौधों की पत्तियाँ सूख जाती है। इस कीट की इल्ली पश्री की दोनों परतों के बीच में घुसकर हरे पदार्थ तथा मीजोफिल को खाती हैं। इस कारण पत्तियों में सफेद रंग की आड़ी-तिरछी सुरंगे बन जाती है। प्रकोप अधिक होने पर फूल तथा फली लगना काफी कम हो जाता है।
मटर फली भेदक (इटियेला जिन्केनेला)
पहचान एवं क्षति के लक्षण:- प्रौढ़ कीट हल्के भूरे रंग का तथा अगले पंखों में क्षेत्र के बीज के समान एक-एक काला धब्बा रहता है। इस कीट की इल्लियों के रंगों में विविधता पायी जाती है। इल्ली फलियों में घुसकर दानों को खाती है जिस कारण फलियों खाने योग्य नहीं रहता है।
माहू (एफिड)
पहचान एवं क्षति के लक्षण:- ये कीट छोटे-छोटे पीलापन लिए हुए हरें रंग के जंू की तरह होते है। इनकी आंखें लाल होती हंै। वयस्क कीट पंखदार एवं पंखरहित दोनों प्रकार के होते है। माहू कीट के शिशु एवं प्रौढ़ टहनियों, पत्तियों शाखाओं एवं फल्लियों में समूह में चिपके रहते है।
इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही पौधों की टहनियों, पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते है। रस चूसने के कारण फूल मुरझा जाते है। एवं लगती है। क्षतिग्रस्त फलियां आकार में छोटी रह जाती हैं तथा अपूर्ण रूप से भरी हुई रहती है।
थ्रिप्स (तेला)
पहचान एवं क्षति के लक्षण:- ये कीट काफी छोटे (0.5 से 1.0 फसलों में कीट में कीट-रोग प्रबंधन मि.मी. लम्बे) और सक्रिय होते है। इनके पंख झालरदार होते है। शिशु एवं प्रौढ़ काले रंग के होते है। शिशु एवं प्रौढ़ पत्तियों एवं फूलों में रस चूसते है। इस कारण पत्तियां जगह-जगह पीली एवं धब्बेदार हो जाती है। प्रकोपित पौधों में फलियां कम लगती है।
रोकथाम:- मटर की फसल को कीट प्रकोप से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए।
- इस फसल को समय से बोना चाहिए। उचित समय पर बोई गई फसल पर (अक्टूबर-नवंबर) कीट प्रकोप अपेक्षाकृत कम होता है।
- पर्ण सुरंगक कीट का प्रकोप सूखी भूमि पर अधिक होता है। अत: आवश्यकतानुसार समय पर पानी देना चाहिए।
- क्षतिग्रस्त पत्तियों तथा फलियों को तोड़कर कीटों सहित नष्ट कर देना चाहिए। ऐसा करने से सुरंगक तथा फली भेदक कीटों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
- फसल कटाई के बाद खेद की जुताई अच्छी तरह से करना चाहिए। जिससे भूमि में छिपी इल्लियां तथा कोष (फली भेदक कीट) उपर आकर धूप से नष्ट हो जाते है या पक्षियों का आहार बन जाते है।
- परभक्षी मित्र कीट जैसे कॉक्सीनेला, सिरफिड आदि हानिकारक कीटों की अवस्थाओं को खाकर अपना जीवन निर्वाह करते है। इसलिए इनका संरक्षण करना चाहिए।
- फेरोमेन प्रंपच का प्रयोग 8-10 प्रपंच/हेक्टेयर लगाकर चना इल्ली के नर वयस्क को पकड़े जिससे मादाएं बिना नर के साथ संभोग के अण्डे नहीं दे सकेंगी, जिस कारण कीट संख्या में अप्रत्याशित कमी की जा सकती है।
- एच.ए.एन.सी. का प्रयोग भी चना इल्ली के लिए कर सकते है। इसका प्रयोग 250 इल्ली समतुल्य मात्रा प्रयोग की जाती है अथवा इसको खेतों में वायरस से भरी हुई इल्लियों को इक_ा कर उनका घोल बनाकर छिड़काव कर सकते है।
- ‘टी’ आकार की खंूटियां खेतों में अवश्य लगावें जिससे उन पर पक्षी आकर बैठे और विभिन्न प्रकार की इल्लियों को अपना भोजन बना सकें।
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