फसल की खेती (Crop Cultivation)

धान की उन्नत बीज उत्पादन तकनीक

बीज की विशेषताएं :

  • अनुवांशिक रूप से शुद्ध होता है।
  • भौतिक रूप से शुद्ध होता है।
  • बीज का आकार, आकृति व रंग में समानता होती है।
  • निर्धारित मानकों के अनुरूप अंकुरण क्षमता व नमी का होना।
  • यह बीज जनित रोग व कीट प्रकोप से मुक्त होता है।

बीज एवं अनाज में अंतर

अनाज के लिए उगाई जाने वाली फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करना ही प्रमुख लक्ष्य होता है। इसमें बोनी हेतु उपयुक्त बीज के गुणों के संबंध में कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं की जाती है जबकि बीज उत्पादन के लिए किसी स्वीकृत या मान्य से आधार (फाउंडेशन), प्रमाणित या प्रजनक बीज प्राप्त किया जाता है साथ ही फसल को उगाने और कटाई के बाद संसाधन व भण्डारण आदि क्रियाओं के दौरान मिलावट के सभी संभव ोतों और कारणों को यथा संभव दूर रखने का प्रयत्न किया जाता है।
हाईक्वालिटी बीज की श्रेणी
प्रजनक बीज – यह न्यूक्लियस बीज की संतति है, जो शत-प्रतिशत अनुवांशिक शुद्धता वाला होता है इसका उत्पादन फसल प्रजनक की सीधी देखरेख में होता है।
आधार बीज – यह प्रजनक बीज की संतति है, जो प्रमाणीकरण संस्था द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप शासकीय संस्था का दूधिया- हरे रंग का लेबल तथा बीज प्रमाणीकरण संस्था का सफेद रंग का टैग लगा रहता है।
प्रमाणित बीज – यह आधार बीज की संतति है, जो प्रमाणीकरण संस्था द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप शासकीय एवं पंजीकृत बीज उत्पादक संस्थाओं एवं उपरोक्त संस्थाओं के माध्यम से बीज उत्पादक कृषकों के प्रक्षेत्रों पर उगाया जाता है तथा प्रमाणित किया जाता है।
धान बीज के लिए खास बातें :
बीज स्त्रोत– बीज फसल के लिए आधार बीज उत्पादन के लिए प्रजनक या आधार बीज और प्रमाणिक बीज या स्वयं के उपयोग हेतु बीज उत्पादन के लिए आधार बीज किसी प्रमाणीकरण संस्था द्वारा मान्य या किसी विश्वस्त ोत से प्राप्त किया जा सकता है। बोने से पहले बीज थैलों पर लगे लेबल से उसकी सत्यता की जांच कर लेनी चाहिए और लेबल संभालकर रख लेना चाहिए।
खेत का चयन -खेत का चयन करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि खेत में पिछले मौसम में धान की फसल न ली गई हो, अन्यथा स्वैच्छिक उगे पौधों से सन्दूषण का भय रहता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में ऐसे खेत चुने जा सकते हैं जिसमें वही किस्म बोई गई थी और वह प्रमाणीकरण मानकों के अनुरूप थी।
बुवाई-धान की बीज फसल के लिए बुवाई दो तरीकों से की जा सकती है।
सीधी बुवाई– इस विधि में खेत तैयार करके बीज सीधे बोए जा सकते हैं। यह भी दो प्रकार से बोई जाती है।
बिना लेव लगाए– जब सिंचाई और श्रमिकों की पर्याप्त सुविधा नहीं होती तो सीधी बुवाई की जाती है। इस विधि में खेत की 3-4 जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लिया जाता है। इसके बाद बीज छिटककर (100 कि.ग्रा. प्रति हे.) या 20 से.मी. दूर पर कतारों में (75 कि.ग्रा./हे.) हल या सीडड्रिल से बोया जाता है।
रोपाई विधि– धान के बीज फसल से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए तथा वर्षा के पानी का समुचित उपयोग करने के लिए मानसून प्रारंभ होने के पूर्व उसकी पौध तैयार कर ली जाती है और मानसून शुरू होने पर (15 जुलाई से पूर्व) उसकी खेत में रोपाई की जाती है इसमें बीज 25 से 30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर लगता है। रोपाई के लिए खेत को 3-4 कर देशी हल या केजव्हील युक्त ट्रैक्टर चलित कल्टीवेटर से मचाई के बाद खूंटीदार पटेला या पडलर चलाकर लेवयुक्त बनाया जाता है। रोपा लगाने से पहले अनुसंशित उर्वरकों की मात्रा भली-भांति भूमि में मिला दी जाती है। पौध की रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. तथा अधिकतम गहराई 3 से.मी. रखी जाती है। एक स्थान पर 2 स्वस्थ पौधे लगाए जाते हैं। पौधे गिरे नहीं इसलिए इसे ऊपर से थोड़ा काट लिया जाता है।
उर्वरक
नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश की मात्रा बौनी जातियों के लिए 120, 60, 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा देशी जातियों के लिए 60, 40, 30 कि.ग्रा. प्रति हे. दें। फास्फोरस व पोटाश पूरी तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई अथवा रोपाई के समय देें। शेष नत्रजन कल्ले फूटने व पुष्पन अवस्था पर आधी-आधी दी जाती है। यदि भूमि में जस्ते की कमी हो तो 20 कि.ग्रा. प्रति हे. जिन्क सल्फेट दें।
सिंचाई
धान का खेत कभी सूखने नहीं दें। रोपाई के अगले दिन खेत में 25-5 से.मी. पानी भर दें और जल स्तर फसल पकने तक बनाए रखें। इससे खरपतवारों की रोकथाम भी स्वत: हो जाती है।

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