फसल की खेती (Crop Cultivation)

आम का उकठा रोग प्रबंधन

18 फरवरी 2023, भोपाल: आम का उकठा रोग प्रबंधन – उत्तरप्रदेश में आम का उकठा रोग एक गंभीर समस्या बन गया चुका हैं। रोग ग्रस्त पेड़ों के कमजोर पड़ने और उकठने से रू. 1,50,000/ प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष तक की क्षति संभव हैं। किसानों की आय को बढ़ाने के लिए इस रोग से आम की फसल को बचाने की जल्द से जल्द आवश्यकता हैं। 

उकठा रोग की स्थिति 

आम का उकठा रोग देश के 14 आम उत्पादक प्रदेशों में पाया गया हैं। अधिकतम प्रकोप उत्तर प्रदेश, बिहार, तिलंगाना, झारखण्ड और तमिलनाडु में पाया गया हैं। पिछले दो दशको के दौरान इस रोग का प्रकोप बढ़ता गया हैं। जिन बागों में इसका संक्रमण हुआ, प्रंबधन न करने की स्थिति में धीरे-धीरे 4 से 5 वर्ष में 20 से 50 प्रतिशत तक पेड़ों का उकठ कर मरना पाया गया है। 

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उकठा रोग के लक्षण 

संक्रमण से प्रभावित पेड़ों में तीन प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं। 

1. विशिष्ट उकठा रोगः जड़ों के माध्यम से मुख्य तने में संक्रमण ग्रस्त स्वस्थ दिख रहा पेड़ अचानक 10-15 से दिन के अंदर पूर्णतः सूख  जाता हैं। पेड़ पर सूखी पत्तियों का रंग हल्का कत्थई रहता हैं और यह पत्तियां लंबे समय तक पेड़ पर लटकी रहती हैं। अधिकांश मामलों में सूखने से पहले पेड़ के तने और निचली शाखाओं पर अनेक स्थानों से गोंद का श्राव होता हैं। घुन की उपस्थिति होने पर इसके द्वारा बनाए गए महीन छेदों से भी गोंद का श्राव होता हैं। संक्रमित लकड़ी का रंग स्लेटी-भूरा, गहरा भूरा या काला हो जाता हैं।

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2. डाली उकठाः जब जड़ या मुख्य तने से न होकर डाली में सीधा संक्रमण होता हैं, तो प्रभावित पूरी डाल सूख जाती हैं। इस दशा में सभी लक्षण विशिष्ट उकठा जैसे ही होते हैं। यह लक्षण प्रारंभ में एक-दो डालियों तक ही सीमित होता हैं तथा इनके उकठने के बाद दूसरी डालियों में भी फैल सकता हैं। 

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3. क्षय रोगः कभी-कभी पेड़ में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं, हरी या पीली पत्तियां धीरे-धीरे झड़ने लगती हैं और 2 से 4 वर्ष में पूर्ण रूप से मृत हो जाता हैं। उक्त लक्षण जड़ों में संक्रमण के कारण होते हैं। बाग में रख-रखाव एंव जड़ों में संक्रमण के स्तर के अनुरूप पत्तियों के गिरने का क्रम तेज या धीमा हो सकता हैं। इस प्रकार के पेड़ों पर कम या अधिक नयी वृध्दि एंव फलों का उत्पादन होता रहता हैं। इस प्रकार का लक्षण मुख्य रूप से चौसा प्रजाति के बागों में देखा जाता हैं लेकिन आम की अन्य प्रजातियों पर भी उक्त लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। 

उकठा रोग का कारक और संक्रमण का फैलाव

इस रोग का मूलभूत कारक एक फफूँद, सिरेटोसिष्टिस फ्रिंबियाटा हैं। यह फफूँद मुख्य रूप से भूमि में पाया जाता हैं और जड़ों में संक्रमण करता हैं। जड़ों के माध्यम से यह फफूँद तने और शाखाओं तक पहुँच जाता हैं। 

संक्रमित पौधे से उत्पन्न विशेष गंध से आकर्षित होकर स्कोलीटिड बीटिल तने और शाखाओं पर पंहुचकर उनमें प्रवेश कर जाता हैं। इस कीट की उपस्थिति होने पर आटे जैसा महीन बुरादा दिखायी देता हैं। इस बुरादे में फफूँदी बीजाणु अपस्थित रहते हैं, जो कि बुरादे के साथ-साथ हवा-पानी आदि के साथ इधर-उधर फैल जाते हैं। रोग और कीट ग्रस्त पेड़ तेज गोंद श्राव के साथ उकठ जाता हैं। बुरादे या घुन के माध्यम से इस रोग का संक्रमण सीधे स्वस्थ पेड़ों के तने या शाखाओं में भी हो जाता हैं। 

उकठा रोग को प्रभावित करने वाले कारक 

नये क्षेत्रों में रोग का फैलाव मुख्यतः कलमी पौधो और मिट्टी के माध्यम से होता हैं। बीजाणु युक्त बुरादे के माध्यम से भी रोग का फैलाव आस-पास के बागों में हो सकता हैं। गहरी जुताई और गुड़ाई से जड़ों को हुई क्षति से जड़ों मे संक्रमण की संभावना अधिक होती हैं।

आम के उकठा रोग के लिए समेकित प्रबंधन कार्यक्रम

1.    गहरी जुताई से जड़ों को क्षति से बचाने के लिए आम के बागों में कम से कम और उथली जुताई करना चाहिए । नये बागों में पेड़ों के छत्र से बाहर ही अन्तः फसले उगाई जानी चाहिए। 

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2.    संक्रमण प्रभावित और उनके आस-पास के पेड़ों के जड़ क्षेत्र की मृदा में पेड़ की उम्र के अनुसार 50-150 ग्राम थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्लूपी का घोल डालकर सिंचाई करना चाहिए। 

3.    संकर्मित टहनियों को काटने के उपरांत कटे भाग पर कॉपर सल्फेट या आक्सीक्लोराइड 50 ग्राम प्रति ली. पानी के घोल से पुताई की जानी चाहिए।

4.    प्रभावित पेड़ों पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी या प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। 

5.    बाग में स्कोलीटिड बीटिल की उपस्थिति होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी के 0.2 से 0.3 प्रतिशत के घोल का 15 दिनों के अन्तर पर छिड़काव करके नियन्त्रण किया जाना चाहिए। 

6.    सिंचाई हेतु पेड़ों की कतारो के मध्य नाली बनाकर हर पेड़ की थाला बनाकर अलग-अलग सिंचाई करना चाहिए। 

7.    बागों में संस्तुत मात्रा में खाद एंव उर्वरकों की आपूर्ति और सिंचाई करनी चाहिए । 

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