फसल की खेती (Crop Cultivation)

पोषण प्रबंधन द्वारा सोयाबीन की उपज बढ़ाएं

यूपीएल का वेबिनार संपन्‍न

07 अगस्त 2024, इंदौर: पोषण प्रबंधन द्वारासोयाबीन की उपज बढ़ाएं – राष्ट्रीय कृषि अखबार कृषक जगत और कृषि क्षेत्र की प्रसिद्ध कम्पनी यूपीएल के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों कृषक जगत किसान सत्र अंतर्गत ‘पोषण प्रबंधन द्वारा सोयाबीन की उपज बढ़ाएं विषय पर ऑनलाइन वेबिनार आयोजित किया गया, जिसके प्रमुख वक्ता श्री गौरव शर्मा, पोर्टफोलियो लीड, बायोसॉल्यूशंस एवं श्री विशाल शर्मा, क्रॉप मैनेजर, तिलहन एवं कपास, यूपीएल एसएएस लि. थे। दोनों वक्ताओं द्वारा किसानों को पोषण प्रबंधन द्वारा सोयाबीन की उपज बढ़ाने के तरीके बताए गए। इस वेबिनार में मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ के किसान भी शामिल हुए। प्रश्नोत्तरी में वक्ताओं द्वारा किसानों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया, वहीं कृषि ज्ञान प्रतियोगिता के दो विजेताओं को यूपीएल की ओर से पुरस्कार स्वरूप कम्पनी उत्पाद देने की घोषणा की गई। वेबिनार का संचालन कृषक जगत के संचालक श्री निमिष गंगराड़े ने किया।
जैविक और अजैविक तनाव से फसल प्रभावित

तकनीकी सत्र के आरम्भ में श्री विशाल शर्मा ने किसानों को आश्वस्त किया कि यूपीएल कम्पनी किसानों के हित में नई-नई तकनीक और उत्पाद लाने का प्रयास करेगी, ताकि किसानों को अच्छा उत्पादन मिले और उनकी आय में वृद्धि हो। दृश्य-श्रव्य माध्यम से अपनी बात रखते हुए श्री विशाल शर्मा ने कहा कि दलहनी-तिलहनी फसलों खासतौर से सोयाबीन फसल में जैविक और अजैविक तनाव से फसल प्रभावित होती है। कीट, बीमारी,खरपतवार आदि जो प्रत्यक्ष रूप से फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, वे जैविक तनाव के तहत आते हैं, जबकि वर्षा में विलम्ब, तापक्रम में वृद्धि, अधिक वर्षा, वर्षा अंतराल आदि से फसलों पर पडऩे वाले अदृश्य प्रभाव अजैविक तनाव कहलाते हैं। विश्व के कई विश्वविद्यालयों ने अपने शोध में पाया कि अजैविक तनाव से पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उत्पादन पर असर पड़ता है।

चौथा तत्व सल्फर भी आवश्यक

श्री विशाल शर्मा,
क्रॉप मैनेजर,
तिलहन एवं कपास

श्री विशाल ने पौधों के पोषण की चर्चा करते हुए कहा कि पौधों को कुल 17 पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है, जिनमें से तीन तत्व कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन प्रकृति से मुफ्त मिलते हैं, जबकि शेष 14 तत्वों की पौधों की अवस्था अनुसार अलग-अलग समय पर जरूरत पड़ती है। फसल में उर्वरक की अनुशंसा पर उन्होंने कहा कि फसल के लिए तीन मुख्य तत्व एनपीके तो ज़रूरी हैं ही, लेकिन चौथा तत्व सल्फर भी आवश्यक है। जो सोयाबीन में तेल की मात्रा और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाता है और फफूंदजनित रोगों को रोकता है। आपने मध्य भारत के लिए उर्वरक की मात्रा 25:60:40:20 किलो/हेक्टेयर तथा 56 किलो यूरिया, 375 किलो एसएसपी और 67 किलो एमओपी डालने की भी बात कही। जबकि दक्षिण भारत में 25:80:20:30 किलो /हे., उत्तरी भारत के लिए 25:75:25:37.5 किलो/हे. और पूर्वी भारत और नार्थ ईस्टर्न हिल के लिए 25:100:50:50 किलो/हेक्टेयर की अनुशंसा बताई। श्री शर्मा ने किसानों को स्पष्ट किया कि उल्लिखित मात्रा की अनुशंसा खाद में पाए जाने वाले अवयवों की है, खाद की नहीं।

अजैविक तनाव से उत्पादन का 65 प्रतिशत नुकसान

क्रॉप मैनेजर श्री शर्मा ने फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की चर्चा करते हुए बताया कि सोयाबीन की फसल को अलग -अलग अवस्थाओं में आइरन, जि़ंक, मैगनीज, कॉपर, बोरान आदि की जरूरत पड़ती है। इन तत्वों से अंकुरण, जड़ों और शाखाओं का अच्छा विकास होता है। इनके अभाव में फसल कमजोर पड़ जाती है। पौधों में फूल आने की अवस्था सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस अवस्था में विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। उचित पोषण नहीं मिलने पर फूल झड़ते हैं, फलियां कम बनती हंै और दाने भी कम भरते हैं। इससे उत्पादन प्रभावित होता है। आपने आवश्यक तत्वों एनपीके की उपयोगिता पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। आपने कहा कि दुनिया में की गई पड़ताल से पता चला कि फसलों पर अजैविक तनाव से 65 और जैविक तनाव से 11 प्रतिशत उत्पादन का नुकसान होता है।

मॅकेरीना के उपयोग से 6 लाभ

श्री गौरव शर्मा ने पोषक तत्वों के प्रकार और उनके महत्व की संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि सूक्ष्म पोषक तत्व का अधिक महत्व होता है। इनका समय पर उपयोग नहीं होने से पौधों में तत्वों की कमी और अजैविक तनाव बढ़ेगा। इस समस्या का एकमात्र समाधान कम्पनी का लोकप्रिय उत्पाद मॅकेरीना के इस्तेमाल से दोनों चीजें नियंत्रित होंगी। यह मैक टेक्नोलॉजी का उत्पाद है, जो पौधे की कोशिकाओं और कोशिका भित्ति को पार कर जहाँ पर सूक्ष्म तत्व की जरूरत है, वहां पहुँच जाएगा। मॅकेरीना के उपयोग से 6 लाभ होते हैं। जिसमें अजैविक तनाव से छुटकारा तो मिलता ही है, एंटी ऑक्सीडेंट का भी काम करता है। यह क्षारीय मिट्टी को अम्लीय बनाता है। पौधे की जीन क्षमता को भी बढ़ाता है। यह मिट्टी से उपज की बिक्री तक सहयोग करता है। सोयाबीन फसल में फूल और फली की अवस्था में ज़्यादा पोषण की आवश्यकता होती है। वर्षा के दौरान कई दिनों तक धूप नहीं निकलती है, उस समय मॅकेरीना के उपयोग से 16 प्रतिशत अधिक प्रकाश संश्लेषण मिलता है।

मॅकेरीना कुदरती चिलेट

श्री गौरव शर्मा, पोर्टफोलियो लीड, बायोसॉल्यूशंस

श्री गौरव ने बताया कि मॅकेरीना कुदरती चिलेट होने से इसका स्प्रे पौधे की हर कोशिका में चला जाता है, जबकि सिंथेटिक चिलेट में यह गुण नहीं होता है। यह तुलनात्मक रूप से साल्ट से 24.2 प्रतिशत, सिंथेटिक से 19 गुना और लिग्नोसल्फेट से 14 प्रतिशत ज़्यादा अवशोषण करता है। मॅकेरीना शत-प्रतिशत बॉयोलॉजिकल उत्पाद है, दलहन, तिलहन कपास और धान की फसल में अधिक अवशोषण करता है। यह मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का भी अवशोषण बढ़ाता है। जैसे कॉपर में 230 प्रतिशत, आइरन में 70 प्रतिशत, मैगनीज में 63 प्रतिशत और जि़ंक में 130 प्रतिशत अवशोषण बढ़ाता है। विश्व के वैज्ञानिकों ने सोयाबीन फसल के परीक्षणों में पाया है कि मॅकेरीना के प्रयोग से औसतन 15.9 प्रतिशत उत्पादन बढ़ता है।

मॅकेरीना पौधे का सम्पूर्ण भोजन है, क्योंकि इसमें 22 प्रतिशत जैविक तत्व हैं। यह दलहन और तिलहन फसलों के लिए उपयुक्त उत्पाद है। जिसमें इसकी 250 मिली/एकड़ मात्रा पर्याप्त है। इसका दो बार स्प्रे करना चाहिए। पहला फूल आने की अवस्था में और दूसरा स्प्रे 12-15 दिन के बाद करना चाहिए। इसकी किसी भी कीटनाशक/फफूंदनाशक के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं।

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