सुवा की खेती से अधिक कमाई
सुवा की खेती से अधिक कमाई – सुवा या सोवा एक गौण बीजीय मसाला है। इसके पौधे का प्रत्येक भाग औषधीय गुण रखता है। सुवा के साबुत या पीसे हुए दानों के रूप में सूप, सलाद, सॉस एवं अचार आदि में काम लिया जाता है। सुवा के बीजों को पीसकर मसालों के रूप में काम लिया जाता है इसके तेल को बहुत सी औषधियों में, विशेष तौर पर ग्राइप वाटर बनाने में तथा साबुन उद्योग में खुशबू में प्रयुक्त किया जाता है सुवा के दानों में 3.0 से 4.0 प्रतिशत तक वाष्पशील तेल होता है।
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भारत में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश व आंध्रप्रदेश में अधिक की जाती है। भारत में सुवा की खेती सर्वाधिक राजस्थान में नागौर चित्तौड़, निम्बाहेड़ा झालावाड़ तथा मध्यप्रदेश में मंदसौर, उज्जैन तथा इंदौर में की जाती है। राजस्थान के नागौर जिले के मेड़वा क्षेत्र के शेखासनी गांव के शंकरराम बेड़ा ने सुवा की खेती से अधिक लाभ कमाया है। प्रगतिशील कृषक शंकरराम बेड़ा ने चालीस वर्ष पूर्व विज्ञान में स्नातक करने के बाद खेती का पुरखों का कार्य शुरू किया। पहले सभी फसलें लेते हैं, अब धीरे-धीरे भूमि में पानी में खारापन आने के बाद केवल सुवा की खेती ही होती है। इनके पास कुल 65 बीघा जमीन में इसमें 12-13 बीघा में सुवा की खेती करते हैं।
सुवा की बुवाई रबी में अक्टूबर-नवम्बर माह में करते हैं। जहां पानी मीठा है वहां। किलोग्राम बीज प्रति बीघा लगता था अब ढाई किलोग्राम बीज प्रति बीघा बुवाई के समय लगता है। बीज को 2 ग्राम कार्बेण्डाजिम या थिराम से उपचारित करके बुवाई करते हैं। बुवाई पूर्व 10 टन गोबर की खाद तथा 50 किलोग्राम नत्रजन एवं 30 किलोग्राम फॉस्फोरस डालते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस बुवाई के समय तथा शेष मात्राा बराबर भागों में 30 व 60 दिन पर जरूरत होने पर देते हैं। बुवाई हेतु सुवा का देशी बीज ही सभी किसान बोते हैं। बीज अच्छे खेत से पैदा सुवा के बीज को बुवाई हेतु रख लेते हैं। बीज 2-3 वर्ष तक खराब भी नहीं होता है। बुवाई छिटकवा विधि से करते हैं। बुवाई के समय भूमि में नमी होनी चाहिये। यहाँ भी भारी मिट्टी है सो नमी अधिक संरक्षित रहती है। कईं बार बरसात के पानी को संरक्षित कर बुवाई करते हैं। फसल पर 2-3 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। समय पर पानी देते हैं। पानी खारा होता जा रहा है। इसलिए सुवा ही सभी खेतों में दिखता है। शंकरराम बताते हैं कि हमारे गांव शेखासनी के पड़ौसी गांव इंदावड़, गंठिया, जाडासनी, गगराना गांवों में भी सभी लोग सुवा की ही खेती करते हैं। नागौर जिले के अथवा तथा पड़ौस के गांवों फीड़ोद में भी सुवा की खेती करते हैं। नागौर जिले में कुल प्रतिवर्ष 20 से 22 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सुवा की खेती होती है। निंदाई-गुड़ाई घर के ही मजदूर कर देते हैं।
सुवा की फसल पर कीट-रोग कम लगते हैं, फिर भी कभी छाछिया रोग का प्रकोप होता है तो गंधकचूर्ण 4 किलो प्रति बीघा भुरकाव करते हैं। कभी मोयला कीट का प्रकोप होता है, घर पर बनी नीम की दवा ढाई किलो निंबोली को 100 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देते हैं। कभी मोयला कीट का अधिक प्रकोप हो जाता है तो डाइमिथोएट 30 ईसी एक मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर नियंत्रण करते हैं। फसल पकने पर काटकर साफ जगह पर सुखाकर बीज को अलग कर लेते हैं। उपज 3 क्विंटल प्रति बीघा यानी 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है। पड़ोस में मेड़ता मण्डी में सुवा बेचते हैं। इसका भाव लगभग 7 से 8 हजार रूपये प्रति क्विंटल मिल जाता है। इस प्रकार सुवा की खेती से 20 हजार रूपये प्रति बीघा शुद्ध लाभ मिल जाता है। इसकी खेती में खर्चा बहुत कम आता है। सुवा का भाव में उतार-चढ़ाव आता है परन्तु 8 हजार रूपये प्रति क्विंटल मिलता है तो कमाई अधिक होती है। इतनी कमाई और किसी से नहीं मिलती इसलिए सुवा की खेती बढ़ रही है। अधिक जानकारी के लिए कृषक शंकरराम बेड़ा के मो.: 9875225071 या लेखक के मो. : 9414921262 पर संपर्क कर सकते हैं।