बासमती धान में क्रांति लाएंगी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की 3 नई किस्में
- निमिष गंगराड़े
18 मई 2022, नई दिल्ली । बासमती धान में क्रांति लाएंगी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की 3 नई किस्में – धान के झोंका, झुलसा रोग से किसान भाई अब राहत महसूस करेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में धान की तीन नई किस्में विकसित की गई हैं जो इस महत्वपूर्ण फसल में लगने वाले जीवाणु झुलसा रोग, बेक्टीरियल ब्लाईट और झोंका याने गर्दन तोड़ रोग (ब्लास्ट) प्रतिरोधी है।ये जानकारी संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने पूसा समाचार के ताजे संस्करण में दी।
पूसा बासमती-1885 (झुलसा और झोंका रोगरोधी)
डॉ. सिंह ने बताया कि संस्थान द्वारा पूर्व में विकसित और प्रचलित धान किस्म पूसा बासमती-1121 को सुधार कर और रोग रोधी बनाकर नई किस्म पूसा बासमती-1885 विकसित की गई है। इसकी परिपक्वता 145 दिन की है। पकाने के बाद चावल की लंबाई और फैलाव भी पूर्व की 1121 किस्म के समान है। इसमें झोंका रोग नहीं लगता है।
पूसा बासमती-1847 (झुलसा और झोंका रोगरोधी)
डॉ. ए.के. सिंह ने जानकारी दी कि पूसा बासमती-1509 को सुधारकर पूसा बासमती-1847 किस्म विकसित की है। 125 दिन की परिपक्वता है और अन्य गुण 1509 समान है। पूसा बासमती-1509 से 5 क्विंटल/एकड़ अधिक उपज देती है।
पूसा बासमती-1886 (झुलसा और झोंका रोगरोधी)
पूसा बासमती 1401 को झुलसा और झोंका रोगरोधी बनाकर पूसा बासमती-1886 विकसित की गई है, जिसकी गुणवत्ता भी अच्छी है और 155 दिन में पकने वाली किस्म है। यह यूरोपीय संघ को निर्यात करने के लिए एक पसंदीदा गुणवत्ता वाला धान है
डॉ. सिंह ने बताया कि जीवाणु झुलसा रोग, बेक्टीरियल ब्लाईट और झोंका याने गर्दन तोड़ रोग (ब्लास्ट) की रोकथाम के लिए किसान भाई अधिक मात्रा में फफूंदनाशी, एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करते हैं जिससे रसायनिक अवशेष बड़ी मात्रा में चावल में रह जाते हैं। यूरोपियन यूनियन देशों में जो बासमती चावल वर्ष 2017 में 5 लाख टन निर्यात होता था, इन्हीं दवाई अवशेषों के कारण वर्ष 2019 में घटकर 2.5 लाख टन याने आधा रह गया। सबसे ज्यादा निर्यात 1805-पूसा बासमती ही होता था।
बकाने रोग
डॉ. सिंह ने धान में लगने वाले बकाने रोग के बारे में रोचक जानकारी देते हुए बताया कि ‘बकाने’ जापानी शब्द है जिसका अर्थ ‘मूर्ख’ होता है। इस रोग के कारण धान के पौधे लंबे, सूखे, हल्के पीले पड़ जाते हैं और खेत खराब दिखने लगता है। जैसे मानव समाज में ‘नादान’ व्यक्ति अलग रहता है, दिखता है, वैसे ही धान के पौधे हो जाते हैं। यह संक्रमण बीज और मिट्टी जनित दोनों हो सकता है। इससे बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है बीजोपचार। किसान भाई बीज उपचार के लिए ट्राईकोडरमा का प्रयोग कर सकते हैं।
बीजोपचार करें
डॉ. सिंह ने रोगों के प्रभावी नियंत्रण के लिए किसान भाइयों को बीजोपचार कर ही बुवाई की सलाह दी है।
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Pusa basmati 1885 ka Seed mil sakta h kya