गेहूं उत्पादन की वैज्ञानिक विधियाँ
- डॉ. सत्यभान सिंह , डॉ. आदित्य नारायण चौबे , डॉ. यशपाल सिंह
सहायक प्राध्यापक, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड इंजीनियरिंग,
आईएफटीएम विश्व विद्यालय, मुरादाबाद (उप्र)
8 नवंम्बर 2021, गेहूं उत्पादन की वैज्ञानिक विधियाँ –
मृदा
गेहूँ के लिए मध्यम मात्रा में जल धारण क्षमता वाली मृदा की आवश्यकता होती है। उचित जल निकासी वाली दोमट और चिकनी दोमट मृदायें जिनका पी. एच. मान 6-8 के बीच हो गेहूं के लिए अच्छी मानी जाती है।
प्रजातियाँ
करण नरेंद्र (ष्ठक्चङ्ख 222), करण वंदना (ष्ठक्चङ्ख 187), करण श्रिया (ष्ठक्चङ्ख 252), करण वैष्णव (ष्ठक्चङ्ख 303), ष्ठक्चङ्ख 173, 110, 88, 621-50, 39, 327, 332, 90, 71
बीजोपचार
छिदरा कन्ड – संवेदनशील किस्मों के बीज को सौर उपचार या गर्म-जल उपचार दिया जाना चाहिए। यदि गेहूं के बीज का उपयोग केवल बुवाई के लिए किया जाता है, तो इसे वीटावैक्स, थायरम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।
बुवाई
बुवाई समय- सिंचित क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को सामान्यत: नवंबर के प्रथम पखवाड़े से लेकर नवंबर के दूसरे पखवाड़े तक बोया जाना चाहिए। विशिष्ट परिस्थितियों में, दिसंबर में भी गेहूं की बुवाई की जा रही है। गेहूं की केवल कम अवधि वाली किस्मों को ही दिसंबर में बोएं क्योंकि लम्बी अवधि वाली किस्मों की तुलना में उनकी पैदावार में तुलनात्मक रूप से कम कमी आती है। जब दिसंबर के बाद गेहूं की बुवाई की जाती है तो उपज में भारी कमी आती है। नवंबर के बाद, प्रत्येक दिन बुवाई में देरी से देश के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में 5 किग्रा/ हे./ दिन और देश के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में 41 किग्रा/ हे./ दिन की कमी आने की सम्भावना रहती है। अत: गेहूं की फसल की बुवाई को उचित समय पर किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
अन्तरालन– गेहूं बुवाई के लिए सामान्य परिस्थितियों में उपयुक्त पँक्ति अंतरण 22-22.5 सेमी. एवं सिंचित पिछेती बुवाई के लिए 15-18 सेमी. की दूरी रखें।
बुवाई की गहराई– मैक्सिकन प्रजातियों के लिए लगभग 5 सेमी., अर्ध बौनी किस्मों के लिए 5-6 सेमी., बौनी किस्मों के लिए 5-6 सेमी. बुवाई की गहराई रखें।
खाद एवं उर्वरक
गेहूं फसल की बुवाई से 5-6 सप्ताह पूर्व 2 से 3 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कोई अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में मिलाना अत्यन्त आवश्यक है। सिंचित गेहूं की फसल के लिए उर्वरकों की आवश्यकता निम्न प्रकार है-
नाइट्रोजन – गेहूँ के इष्टतम उत्पादन के लिए नाइट्रोजन सबसे अधिक कमी वाला तत्व है। यद्यपि नाइट्रोजन की सिफारिशें अपेक्षित उपज, फसल प्रणाली, मिट्टी की बनावट और उपलब्ध प्रोफाइल नाइट्रोजन पर आधारित होती हैं। परन्तु फिर भी भारतीय मृदाओं में गेहूं के लिए औसतन 80-120 किलो ग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
फॉस्फोरस – गेहूं फॉस्फोरस के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए जाना जाता है। फॉस्फोरस की गंभीर कमी के कारण गेहूं के पौधों में कल्ले अच्छी तरह से नहीं बन पाते हैं। गेहूं के लिए औसतन 40-60 किलो ग्राम फॉस्फोरस/हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
पोटाश- फास्फोरस की तरह ही, पोटेशियम की आवश्यकता की जानकारी के लिए भी मृदा परीक्षण सबसे अच्छा मार्गदर्शक है। गेहूं की फसल के लिए औसतन 40 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है।
फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय ही दें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा को दो बराबर भागों में ताज मूल जड़ों के बनते समय एवं कोथ बनने के पूर्व प्रयोग करें। सिंचित परिस्थितियों में देर से बोई जाने वाली गेहूं की फसल के लिए, अनुशंसित एन.पी.के. उर्वरक की मात्रा निम्न प्रकार है-
नाइट्रोजन-60-80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
फॉस्फोरस-30-40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
पोटाश-25-30 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर
खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार नमी, प्रकाश, स्थान और पोषक तत्वों के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करके गेहूं की पैदावार और लाभ को कम करते हैं। खरपतवार फसल की कटाई में भी बाधा डालते हैं और परिणामस्वरूप निम्न गुणवत्ता वाला अनाज पैदा होता है। गेहूं में खरपतवारों के कारण होने वाली उपज हानियाँ और फसल की समस्याएँ खरपतवार की प्रजातियों, खरपतवारों की आबादी, खरपतवार के उगने के समय, बढ़वार की परिस्थितियों और गेहूं की फसल की स्थिति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती हैं।
आमतौर पर बुवाई के डेढ़ से दो महीने बाद निराई की जाती है, या बथुआ, कृष्ण नील, जंगली मटर, गेहूं का मामा, जंगली जई आदि खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए 2,4-डी, एवाडेक्स या नाइट्रोफेन (टोक ई-25) जैसे खरपतवार नाशियों का प्रयोग किया जाता है।
जल प्रबंधन
गेहूं में सिंचाई की आवश्यकता विभिन्न कारकों जैसे- मिट्टी का प्रकार, बुवाई का समय, उगाई जाने वाली किस्म आदि पर निर्भर करती है। बौनी गेहूं की किस्मों में सिंचाई का निर्धारण फसल विकास की विभिन्न अवस्थाओं पर किया गया है जिनका वर्णन निम्नलिखित तालिका में किया गया है-
कटाई
गेहूं की परम्परागत कटाई के लिए सामान्यत: हँसिया का प्रयोग किया जाता है, जबकि आधुनिक साधनों में रीपर बाइंडर एवं कंबाइन हार्वेस्टर जैसे उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग भी बहुतायत में किया जा रहा है। गेहूं की फसल आमतौर पर तब काटी जाती है जब दाना सख्त हो जाता है और पत्तियां सूख कर भंगुर हो जाती हैं।
उपज
सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की बौनी किस्मों से 40-45 क्विंटल अनाज और 70-80 क्विंटल भूसा/हे. प्राप्त किया जा सकता है। बारानी परिस्थितियों में 20-25 क्विंटल अनाज और 30-35 क्विंटल भूसा/हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है।
सिंचाई | फसल विकास की अवस्था | बुवाई के दिन बाद |
प्रथम सिंचाई | ताज मूल जड़ों के बनते समय | 20-25 |
दूसरी सिंचाई | कल्ले बनने की अवस्था | 40-45 |
तीसरी सिंचाई | जोड़ बनने के बाद की अवस्था | 65-75 |
चौथी सिंचाई | पुष्पन अवस्था | 90-95 |
पांचवी सिंचाई | दूध बनने की अवस्था | 110-115 |
छठवीं सिंचाई | डफ अवस्था | 120-125 |