हरी खाद से बढ़ाएं उपज
18 अक्टूबर 2022, भोपाल: हरी खाद से बढ़ाएं उपज – हरी खाद लेने की विधि: सिंचित अवस्था में मानसून आने के 15 से 20 दिन पूर्व एवं असिंचित अवस्था में मानसून आने के तुरंत बाद खेत अच्छी तरह से तैयार कर हरी खाद की फसलों की बोनी की जा सकती है। हरी खाद बोने के समय नत्रजन 20 किलोग्राम, स्फुर 40-50 किलोग्राम/हेक्टेयर देना चाहिए। इसके बाद जो दूसरी फसल लेना है उसमें स्फुर की मात्रा देने की आवश्यकता नहीं होती तथा नत्रजन में भी 50 प्रतिशत तक की बचत की जा सकती है। जिस खेत में हरी खाद की फसल उगाई जाती है। उसी खेत में उसको दबा दिया जाता है। इस विधि को सीटू विधि कहते हैं। विशेष रूप से जिन क्षेत्रों में वर्षा अच्छी होती है वहां इस विधि का उपयोग लाभदायक होता है। नमी के अभाव में फसल की वृद्धि कम व मृदा में सडऩ अच्छी प्रकार नहीं हो पाती, जिससे आगामी फसल की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
ऐसा क्षेत्र जहां पर मृदा में नमी का अभाव होता है वहां पर एक क्षेत्र से पेड़ पौधों की पत्तियां तोड़कर या हरी खाद का फसल उगाकर दूसरे क्षेत्र के खेतों में दबाते हैं। इस विधि को हरी पत्तियों द्वारा खाद देने की विधि कहते हैं। क्योंकि कम नमी वाली भूमि में हरी खाद की फसल तैयार करें तो बाद में इसके सडऩे के लिए उपयुक्त नमी की जाती है। हरी खाद के लिये उपयोग की जाने वाली प्रमुख फसल सनई या सन है, इसे सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है। इसे मानसून के आरंभ में ही बो दिया जाता है। दूसरी उगाई जाने वाली फसल है ढैंचा। यह सभी प्रकार की भूमियों में प्रतिकूल अवस्थाओं में भी पैदा की जा सकती है।
हरी खाद पलटने की विधि:
फसल की एक विशेष अवस्था पर पलटाई करने से मृदा को सबसे अधिक नत्रजन व जीवांश पदार्थ प्राप्त होता है। इस अवस्था के पूर्व या बाद में पलटाई करना लाभकारी नहीं है। यह विशेष अवस्था या मिट्टी में मिलान का ठीक समय वही है जब फसल कुछ अपरिपक्व अवस्था में हो और फसल में फूल निकलने प्रारंभ हो गए हों। इस समय पर वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है तथा पौधों की शाखाएं व पत्तियां मुलायम होती हैं। इस अवस्था में कार्बन नत्रजन अनुपात कम होता है। सनई की फसल में लगभग 50 दिन पर व ढैंचा में 40 दिन पर यह अवस्था आती है। खेत में खड़ी फसल को पहले पाटा चलाकर या ग्रीन मैन्योर टैम्पलर की सहायता से खेत में गिरा देते हैं। मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से इसे खेत में दबा देते हैं। फसल को भूमि में दबाने की गहराई कई कारणों द्वारा प्रभावित होती है।
– बलुई मृदा गहराई पर एवं चिकनी मृदाओं पर ऊपरी सतह पर फसल का विच्छेदन शीघ्रतापूर्वक होता है। क्योंकि इन सतहों में नमी एवं वायु का आवागमन विच्छेदन की क्रियाओं के लिये अनुकूल होता है।
– अपरिपक्व फसल किसी भी गहराई पर सड़ सकती है, परंतु परिपक्व फसल कम गहराई पर ही दबानी चाहिए।
– जिन फसलों की शाखाएं, पत्तियां सख्त हो उन्हें ऊपर की सतह में ही दबाना चाहिए।
– शुष्क मौसम में निचली सतह एवं नम मौसम में फसल को ऊपरी सतह में दबाना चाहिए।
फसल को खेत में दबाकर पाटा चलाना आवश्यक है, जिससे मिट्टी में फसल भली-भांति दब जाए और फसल का सडऩ ठीक प्रकार से हो। पूर्व सडऩ के लिये मृदा में नमी की कमी होने पर खेत की सिंचाई करना भी आवश्यक है। हरी खाद की पलटाई तथा आगामी फसल बोने के बीच के समय का अंतर खेत में हरी खाद की फसल दबाने के 30-40 दिन बाद ही आगामी फसल की बुआई करना चाहिए।
हरी खाद के लाभ:
हरी खाद द्वारा प्रतिवर्ष 45 से 100 किलो नत्रजन/ हेक्टेयर में बढ़ाई जा सकती है, इसका मुख्य कारण दलहनी फसलों की जड़ों में पाए जाने वाले राइजोबियम नाम के जीवाणु होते हैं जो वातावरण की नत्रजन को पौधों की जड़ों में बनी गठानों द्वारा एकत्रित करते रहते हैं।
मृदा सतह में पौधों के पोषक तत्वों का संरक्षण: हरी खाद की फसल उगाने से उछीलन द्वारा होने वाले पोषक तत्वों की क्षति को बचाया जा सकता है। ये पोषक तत्व फसल द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं और बाद में जब हरी फसल को खेत में दबाते हैं तो ये जीवाश्म पदार्थ के रूप में पुन: मृदा में मिल जाते हैं।
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