दलहनी – तिलहनी फसलों में जिप्सम के प्रयोग से उत्पादन में बढ़ोतरी
लेखक- डॉ. रतनलाल सोलंकी (मृदा विशेषज्ञ), केवीके, चित्तौड़गढ़ (राज.)
12 दिसम्बर 2023, नई दिल्ली: दलहनी – तिलहनी फसलों में जिप्सम के प्रयोग से उत्पादन में बढ़ोतरी – जिप्सम एक भूमि सुधारक एवं उर्वरक – जिप्सम के उपयोग से दलहनी, तिलहनी व अनाज वाली सभी फसलों के उत्पादन व गुणवत्ता में बढ़ोतरी के साथ-साथ भूमि का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। जिप्सम गंधक का सर्वोतम व सस्ता स्त्रोत है एवं राज्य में आसानी से उपलब्ध है।
उपयोगी है जिप्सम
पौधों के लिए नाईट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश के बाद गंधक चौथा पोषक तत्व है। एक अनुमान के अनुसार तिलहनी फसलों में फास्फोरस के बराबर मात्रा में गंधक की आवश्यकता होती है।
सामान्यत: कृषकों द्वारा गंधक रहित उर्वरक जैसे डीएपी (कालिया खाद) एवं यूरिया का अधिक उपयोग किया जा रहा है और गंधक युक्त सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग कम कर रहा है। साथ ही अधिक उपज देने वाली संकर किस्मों द्वारा जमीन से गंधक का अधिक उपयोगकिया जा रहा है। एक ही खेत में हर वर्ष दलहन व तिलहन फसलों की खेती करने से किसान की जमीन में गंधक की कमी हो जाती है।
जिप्सम का दक्ष प्रयोग
प्रयोग किये जाने वाला जिप्सम पूर्ण रूप से महीन हो।
उत्तम परिणामों हेतु जिप्सम को मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला लें ताकि यह भली प्रकार घुलकर मिट्टी के घोल को संतृप्त कर दें|
वैसे जिप्सम को फसल की बुआई से पहले खेत में डालें। यदि खड़ी फसल में डालने की आवश्यकता पड़े तो इसके लिए खेत में पर्याप्त नमी हो और खेत में डालने के बाद इसे गुड़ाई करके अच्छी प्रकार मिला दें।
जिप्सम की दक्षता बढ़ाने के लिए हरी खाद या गोबर की खाद का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है।
तिलहनी विशेषकर मूंगफली की उपज पर कैल्शियम का भी प्रभाव पड़ता है इसलिए जिप्सम के प्रयोग से इसकी उपज और गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।
जिप्सम की मात्रा
गंधक की कमी को दूर करने एवं फसल की अच्छी गुणवत्ता व अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बुवाई से पहले 250 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत में मिलाने की सिफारिश की है। जिप्सम में 13.5 प्रतिशत गंधक तथा 19 प्रतिशत कैल्शियम पौषक तत्व पाये जाते हैं। भूमि सुधार हेतू मिट्टी परीक्षण जाँच रिपोर्ट के आधार पर जिप्सम का प्रयोग कर मिट्टी की दशा सुधारनी चाहिए।
दलहनी फसलों में जिप्सम प्रयोग
दलहनी फसलों में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। प्रोटीन के निर्माण के लिए गंधक अति आवश्यक पौषक तत्व है। इसमें दलहनी फसलों में भी दानें सुडोल व चमकदार बनते हैं व फसल की पैदावार बढ़ती है। ये पौधों की जड़ों की गाँठो ंमें स्थित राईजोबियम जीवाणु की क्रियाशीलता को बढ़ाती है, जिससे पौधे वातावरण में उपस्थित नाईट्रोजन का अधिक से अधिक उपयोग कर सकते है ।
तिलहनी फसलों में जिप्सम प्रयोग
राज्य में बोई जाने वाली रबी की मुख्य फसलें सरसों, तारामीरा, कुसुम आदि फसलों में गंधक के उपयोग से दानों में तेल की मात्रा में बढ़ोतरी होती है, साथ ही साथ दाने सुडौल एवं चमकीले बनते है। जिसके कारण तिलहनी फसलों की पैदावार में 10 से 15त्न की बढ़ोतरी होती है।
गेंहू में जिप्सम उपयोग
खाद्यान्न फसलों में जिप्सम के उपयोग से गंधक पोषक तत्व की आपूर्ति होती है, इससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। गंधक से दाने मोटे व चमकदार बनते है। दाने में प्रोटीन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार प्रति हेक्टर 250 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करने से गुणवत्ता युक्त उपज में बढ़ोतरी होती है।
फसलों को पाले से बचाने में सहायक
जिप्सम में 13.5 प्रतिशत गंधक पाया जाता है, जिसके कारण जिन फसलों में जिप्सम प्रयोग किया जाता है। उन फसलों में पाले से नुकसान होने की सम्भावना कम रहती है।राज्य सरकार किसानों को जिप्सम 50 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध करा रही है।
जिप्सम एक, काम अनेक।
जिप्सम के अन्य फायदे
क्षारीय भूमि सुधार प्रक्रिया हेतु
जिस जमीन का पी.एच. मान 8.5 से अधिक एवं विनिमयशील सोडियम की मात्रा 15 प्रतिशत से अधिक होती है व मृदा क्षारीयता की समस्या से ग्रसित होती है। इस प्रकार के मृदा (मिट्टी) सूखने पर सीमेन्ट की तरह कठोर व सख्त हो जाती है एवं इसमें दरारें पड़ जाती है। ऐसी जमीन में पानी का ठहराव भी ज्यादा समय तक बना रहता है। क्षारीय मिट्टी में पौधों के समस्त आवश्यक पौषक तत्व की उपस्थिति के बावजूद मिट्टी से अच्छी उपज प्राप्त नहीं होती है। इस मिट्टी को सुधारने की आवश्यकता होती है, ताकि उसमें अच्छी पैदावार ली जा सके। इस प्राकर की मिट्टी को भूमि सुधारक रसायन प्रयोग कर सुधारा जा सकता है, जिनमें जिप्सम प्रमुख है। जिप्सम के उपयोग से मिट्टी की भैतिक दशा में सुधार होता है तथा इसके रसायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है।जिप्सम के उपयोग से मिट्टी में घुलनशील कैल्शियम की मात्रा बढ़ती जो कि क्षारीय भूमि के गुणों के लिए जिम्मेदार अधिशोषित सोडियम को घोलकर तथा मिट्टी के कणों से हटाकर अपना स्थान बना लेता है। जमीन का पी.एच. मान कम कर देता है। पी.एच. मान में कमी के कारण भूमि में आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। भूमि सुधारने हेतु जिप्सम की मात्रा मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट की सिफारिश अनुसार काम ली जाती है। साधारणत: भूमि सुधारने हेतु जिप्सम 8 से 10 क्वि. प्रति हेक्टर की दर से काम ली जाती है। भूमि सुधारक के रुप में जिप्सम का उपयोग करने के लिए निर्धारित मात्रा को मानसून की वर्षा से पहले खेत में समान रुप से बिखेरकर जुताई करके अच्छी तरह से 10 से 15 सेमी मिट्टी की सतह में मिला दें तथा खेत के चारों तरफ बड़ी-बड़ी डोलीया बना दें, ताकि वर्षा का पानी बहकर खेत से बाहर नहीं जा सके। खेत में जिप्सम उपयोग के बाद में मानसून की दो या तीन अच्छी वर्षा होने के बाद, अगर खेत में पानी भरा रहता है तो उस पानी को खेत से बाहर निकालकर, खेत में हरी खाद हेतु ढैेंचा (ढाडून) फसल की बुवाई कर दें। ढैेंचा की बुवाई हेतु 60 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर की दर से बुवाई करें। ढेैंचा की बुवाई के 40 से 50 दिन के बाद या फूल आने के पहले मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो चलाकर ढैें़चा की फसल को मिट्टी में 15 से 20 सेमी की गहराई तक मिला दें, इससे प्रति हेक्टर 20 से 25 टन जीवाश्म का उत्पादन होता है साथ ही मिट्टी का पी.एच. मान कम होने से क्षारीयता की समस्या से मुक्ति मिलती है।
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