श्री विधि से सरसों की खेती
श्री विधि से सरसों की खेती क्या है?
यह सरसों की खेती करने का तरीका है जिसमें श्री विधि के सिद्धांतों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त की जाती है जैसे –
- कम बीज दर सिर्फ 50 ग्राम से 250 ग्राम तक प्रति एकड़।
- बीज शोधन एवं बीज उपचार।
- पचारित एवं अंकुरित बीज की उपयुक्त नर्सरी तैयार करना।
- 12 से 15 दिन के 3 से 4 पत्ती वाले पौधे की रोपाई करना।
- पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की उपयुक्त दूरी रखना।
- कम से कम दो से तीन बार खरपतवार की निकासी एवं कोनोबीडर कुदाल से गुड़ाई।
- फसल की देखभाल सामान्य सरसों की फसल की तरह की जाती है।
बीज एवं बीज का उपचार
बीज का चुनाव:- इस बीज के लिए किसी खास बीज की जरूरत नहीं है अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित बीज का प्रयोग करें अगर अपना बीज पुराना है तो नया बीज ले लें।
उन्नत किस्में:- पूसा बोल्ड, वरूणा, क्रांति, (केआरवी), रोहणी (पीआर 15), माया वरदान, पूसा अग्रणी (सेज 2), जेएम1, जेएम 2, जेएम 3,जीएम 2, लक्ष्मी पूसा जय किसान, जेडी 6, कृष्णा, वसुंधरा, झुमका, पीटी 303, एम 27, टीएम 46।
बीज का शोधन बीज का उपचार:-
- बीज के हिसाब से दोगुना पानी लें।
- बीज गुनगुने पानी में डालकर हल्के एवं ऊपर तैर रहे बीजों कों बाहर कर दें।
- गुनगुने पानी में एवं अच्छे बीज में बीज की मात्रा से आधी मात्रा गौ मूत्र, गुड़ एवं केचुआ खाद मिलाकर 6 से 8 घंटे छोड़ दे।
- बीज को तरल पदार्थ से अलग कर 2 ग्राम बाविस्टीन अथवा कार्बेण्डाजिम दवाई मिलाकर सूती कपड़ा में बांधकर पोटली बनाकर अंकुरित होने केक लिए 12 से 12 घंटा के लिए रख दें। स्थानीय मौसम के हिसाब से समय कम अधिक लग सकता है।
- अंकुरित बीज को नर्सरी में 232 इंच की दूरी में आधा इंच गहराई में डाल दें।
खेत की तैयारी:-
जिस खेत में श्री विधि से सरसों की रोपाई करना हो उस खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। यदि खेत सूखा है तो सिंचाई (पलेवा सिंचाई) करके जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें तथा खरपतवार को हाथ से ही निकालकर खेत से बाहर कर दें।
- सरसों की फसल की अवधि के हिसाब से उचित अंतराल पर (कतार से कतार तथा पौध से पौध) 6 इंच चौड़ा तथा 8 से 10 इंच गहरा गड्ढा कर लें। इसे 2 से 3 दिनों के लिए छोड़ दें।
- 1 एकड़ खेत हेतु 50 से 60 क्विंटल कम्पोस्ट खाद में 4 से 5 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा, 27 कि.ग्रा. डीएपी, एवं 13.5 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश को अच्छी तरह मिला लें तथा प्रत्येक गड्ढे में बराबर मात्रा में इस खाद को डालकर 1 दिन के लिए पुन: छोड़ दें।
- डीएपी के स्थान पर तत्व के अनुपात में सुपर फास्फेट एवं यूरिया अथवा नत्रजन युक्त खाद का भी उपयोग किया जा सकता है।
श्री विधि से सरसों की रोपाई:-
रोपाई के 2 घंटे पूर्व नर्सरी में नमी बना कर रख लें सावधानी पूर्वक मिट्टी सहित पोध को नर्सरी बेड से निकालें।
नर्सरी से पौध निकालते समय यह ध्यान रखें कि पौध को खुरपी या कुदाल की सहायता से कम से कम 1 से 2 इंच मिट्टी सहित नर्सरी से निकालें।
पौध को नर्सरी से निकालने के बाद आधा घंटे के अंदर गड्ढे में रोपाई कर दें।
रोपाई पूर्व यह सुनिश्चित करे लें कि प्रत्येक गड्ढे में सावधानी पूर्वक मिट्टी सहित लगा दें ध्यान रखें कि रोपाई ज्यादा गहराई में ना हो।
रोपाई के उपरांत 3 से 5 दिन तक खेत में नमी बनाकर रखें। ताकि पौधा खेत में अच्छी तरह से लग जावे।
जहां मिट्टी भारी हो वहां सूखी रोपाई गोभी के समान करें तथा रोपाई के तत्काल बाद जीवन रक्षक सिचाई करें।
फसल की देखरेख (रोपाई के 30 दिन तक):-
- रोपाई के 15 से 20 दिन के अंदर पहली सिंचाई की जानी चाहिए। सिंचाई के 3 से 4 दिन बाद जब खेत में चलने लायक हो जाये तब 3 से 4 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट में 13.5 कि.ग्रा. यूरिया मिलाकर जड़ों के समीप देकर कुदाल या खुरपा अथवा बीडर चला दे।
- दूसरी सिंचाई सामान्यत: पहली सिंचाई के 15 से 20 दिन बाद करते हैं सिंचाई के पश्चात रोटरी बीडर/ कोनोबीडर अथवा कुदाल से खेत की गुड़ाई आवश्यक है। आवश्यकतानुसार पौधे पर हल्की मिट्टी भी चढ़ा दें।
फसल की देखरेख (रोपाई के 35 दिन बाद:-
- रोपाई के 30 दिन बाद से पौधे तेजी से बड़े होते हैं। साथ ही नई शाखाएं भी निकलती रहती हैं इसके लिए पौधों को अधिक नमी एवं पोषण की जरूरत होती है अत: रोपाई के 35 दिन बाद आवश्यकतानुसार तीसरी सिंचाई करें। सिंचाई के 3 से 4 दिन पश्चात जब खेत में चलने लायक हो जाये तब 13.5 कि.ग्रा. यूरिया एवं 13.5 कि.ग्रा. पोटाश को वर्मीकम्पोस्ट मेें मिलाकर जड़ों के समीप डालकर बीडर या कुदाल से अच्छी प्रकार मिट्टी हल्का कर जड़ों के उपर मिट्टी चढ़ा दें।
- मिट्टी नहीं चढ़ाने से पौधे के गिरने का डर रहता है एवं मिट्टी चढ़ाने से पौधे के फैलाव करने मदद मिलती है जिस प्रकार आलू की फसल में मिट्टी चढ़ाते है ठीक उसी प्रकार से कतार से कतार 1 फिट ऊंचा तक श्री विधि से सरसों की खेती में भी मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है।
- ध्यान देने की यह बात है कि पौधे के उपर माही लाही एवं अन्य कीट का प्रकोप हो सकता है इससे बचने के लिए उचित प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है
- पौधौ में फूल आने लगते है , फूल आने एवं फल्लियों में दाने भरने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा उपज में काफी कमी हो जायेगी।
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