Crop Cultivation (फसल की खेती)

सरसों की फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन

Share

सरसों की फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन – सरसों की उपज को बढ़ाने तथा उसे टिकाऊपन बनाने के मार्ग में नाशक जीवों और रोगों का प्रकोप एक प्रमुख समस्या है। इस फसल को कीटों एवं रोगों से काफी नुकसान पहुंचता है जिससे इसकी उपज में काफी कमी हो जाती है। यदि समय रहते इन रोगों एवं कीटों का नियंत्रण कर लिया जाये तो सरसों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा सकती है। चेंपा या माहू, आरामक्खी, चितकबरा कीट, लीफ माइनर, बिहार हेयरी केटरपिलर आदि सरसों के मुख्य नाशी कीट हैं। काला धब्बा, सफेद रतुआ, मृदुरोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता एवं तना गलन आदि सरसों के मुख्य रोग हैं।

प्रमुख कीट

चेंपा या माहू:

सरसों में माहू पंखहीन या पंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रंग के 1.5-3.0 मिमी. लम्बे, चुभाने एवं चूसने वाले मुखांग वाले छोटे कीट होते हैं। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर एवं क्षतिग्रस्त तो करते ही है, साथ ही साथ रस चूसते समय पत्तियों पर मधुस्राव भी करते हैं। इस मधुस्राव पर काले कवक का प्रकोप हो जाता है तथा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित हो जाती है। इस कीट का प्रकोप दिसम्बर-जनवरी से लेकर मार्च तक बना रहता है।

प्रबंधन: माहू के प्राकृतिक शत्रुओं का संरक्षण करें। प्रारम्भ में प्रकोपित शाखाओं को तोड़कर भूमि में गाड़ दें। जब फसल में कम से कम 10 प्रतिशत पौधे की संख्या चेंपा से ग्रसित हो व 26-28 चेंपा प्रति पौधा हो तब एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एसपी 500 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 150 मिली. को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में सायंकाल में छिड़काव करें। यदि दुबारा से कीट का प्रकोप हो तो 15 दिन के अंतराल से पुन: छिड़काव करें।

आरा मक्खी: इस मक्खी का धड़ नारंगी रंग का होता है। इसका सिर व पैर काले होते हैं। सुंडियों का रंग गहरा हरा होता है। जिनके ऊपरी भाग पर काले धब्बों की तीन कतारें होती हैं। इस कीड़े की सुंडियां फसल को उगते ही पत्तों को काट-काट कर खा जाती है। इसका अधिक प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर में होता है।

प्रबंधन: गर्मियों की गहरी जुताई करें व सिंचाई करने पर भी इसका प्रकोप कम हो जाता है। इस कीट की रोकथाम हेतु मेलाथियान 50 ई.सी. 1 लीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। आवश्यकता पडऩे पर दुबारा छिड़काव करें।

प्रमुख रोग

सफेद रतुवा या श्वेत किट्ट: इस रोग के कारण 23-55 प्रतिशत तक नुकसान होता है। सरसों के अतिरिक्त यह रोग मूली, शलजम, तारामीरा, फूलगोभी, पत्तागोभी, पालक और शकरकंद पर भी पाया जाता है।

प्रबंधन: बीजों को मेटालेक्जिल (एप्रोन 35 एस डी) 6 ग्राम/किग्रा. बीज या मैन्कोजेब 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज से उपचारित कर बोयें। खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) या रिडोमिल एम.जेड. 72 फफूंदनाशी के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव 15-15 दिन के अंतराल पर करने के सफेद रतुआ से बचाया जा सकता है।

तना गलन: इस रोग के कारण लगभग 50-60 प्रतिशत तक हानि होती है।

प्रबंधन: हमेशा बुवाई के लिए स्वस्थ व प्रमाणित बीज काम में लेें। फसल की कटाई के बाद गर्मियों में गहरी जुताई करें। बुवाई के 50-60 दिन बाद निचली पत्तियों को हटा दें। बीजों को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोयें। खड़ी फसल में 50-60 दिन पश्चात् कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत कवकनाशी को पानी में घोलकर छिडकाव करें।

पत्ती धब्बा रोग: सामान्यतया यह रोग दिसम्बर-जनवरी में प्रकट होता है। इस रोग के कारण 35-65 प्रतिशत तक हानि होती है।

प्रंबधन: बुवाई के लिए हमेशा स्वस्थ व प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें। फसल चक्र अपनायें। गर्मियों की गहरी जुताई करें। खड़ी फसल मेें इस रोग की रोकथाम हेतु 45 दिन बाद मेन्कोजेब (डाइथेन एम-45), या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 2.5 ग्राम/ लीटर पानी के घोल का छिड़काव रोग के लक्षण दिखाई देने पर 15-15 दिन से अधिकतम तीन छिड़कें।

महत्वपूर्ण खबर : कुसुम योजना (कंपोनेंट-ए) विद्युत क्रय अनुबन्ध के लिए परियोजना सुरक्षा राशि जमा कराने की अंतिम तिथि 7 दिसम्बर

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *