प्रमुख जैव कीट एवं रोग नियंत्रकों का खेती में महत्व व प्रयोग
जैविक नियन्त्रण: जैविक नियन्त्रण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी जीव द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों एवं प्रक्रियाओं के कारण दूसरे जीवों (कीट एवं रोगाणुओं) को नष्ट किया जाता है।
प्रमुख जैव कीट नियंत्रक
एन.पी.वी.: यह एक विषाणु है जिसका पूरा नाम ”न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरसÓÓ है। यह इल्लियों की कई प्रजातियों को रोगग्रसित कर मार देता है।
विषाणु का प्रयोग: हरी सुण्डी/लट के नियन्त्रण हेतु 250 एल.ई., एन.पी.वी. का 500 ली. पानी में घोल बनाकर एक हेक्टर में फसल की पत्तियों पर छिड़काव करें। एन.पी.वी. में लटों को बीमार करने वाले वायरस पाये जाते है। लटें इनसे संक्रमित होकर तीन-चार दिनों में मर जाती है व मरकर उल्टी लटकी हुई लटों को चुनकर पीसकर, पुन: छिड़काव किया जा सकता है।
जीवाणु का प्रयोग: बेसिलस थ्यूरीजियेन्सिस नामक जीवाणु भी फलीबेधक कीट की लटों का प्रभावशाली नियंत्रण करता है। प्रभावित लटें खाना बंद कर देती है। शरीर भूरे रंग का हो जाता है और शरीर फटने से सुंडियां मर जाती हंै। इसके उत्पाद भी बाजार में कई नामों से उपलब्ध है जिनकी 750 मिली. से 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर की दर से छिड़कना चाहिए।
ट्राइकोग्रामा: कीट लेपीडोपटेरा समूह के हानिकारक कीड़ों के अण्डों में अपने अण्डे देकर अपना जीवनचक्र शुरू करता है, एवं प्यूपा अवस्था तक परपोषी के अण्डों में ही रहता है। वयस्क अवस्था में बाहर निकलकर पुन: हानिकारक कीटों के अण्डों में अपने अण्डें देना प्रारम्भ कर देता है। इसका जीवनचक्र गर्मी में 8-10 दिन में एवं सर्दी में 9-12 दिन में पूरा होता है। ट्राइकोग्रामा ट्राइकोकार्ड के रूप में उपलब्ध होता है। एक कार्ड पर लगभग 20000 परपोषी के अण्डे होते है। प्रत्येक ट्राइकोकार्ड पर इन परजीवीयों के निकलने की संभावित तिथि अंकित होती है। इस तिथि से एक दिन पूर्व खेत में कार्ड की स्ट्रिप्स को अलग-अलग कर पौधे की निचली पत्तियों पर धागे से बांध देना चाहिये। एक हेक्टेयर में करीब 100 स्थानों पर ट्राइकोकार्ड की स्ट्रिप्स लगानी चाहिये।
मित्र कीटों का संरक्षण: सभी कीट फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते। कुछ कीट ऐसे भी होते है जो फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को नष्ट करते है। इनमें लेडी बर्ड बीटल, ततैया, क्राइसोपा, बग, मेन्टीस, रोबर मक्खी, ड्रेगन मक्खी, मकडिय़ां आदि है। परभक्षी कीटों में लेडी बर्ड बीटल प्रमुख है। यह मोयला (चैपा/माहू) तेला, स्केल, मिलीबग आदि कीटों के नियंत्रण में प्रमुख योगदान देती है।
इनकी वयस्क अवस्था प्रतिदिन 50 मोयला खा जाती है। मेन्टीस की संख्या हालांकि कम होती है लेकिन ये लेसविग, मोयला एवं कोमल शरीर वालें कीड़ों का भक्षण करते है।यह एक दिन में करीब 160 कीटों को खा जाता है। क्राइसोपा हरे पंखवाला कीट होता है। यह मोयला, सफेद मक्खियों, चूर्णवत छोटे कीड़ों और अंडों तथा कपास के बीज के गोले के कीड़ों की शुरूआती अवस्था की सुंडियों/लटों को खाकर जिंदा रहती है। यदि फसल में 2 कीट व एक मित्रकीट कीट के अनुपात में उपस्थित है तो कीटनाशक का छिड़काव करना जरूरी नहीं है।
नीम से बने उत्पाद: नीम के तेल को साबुन के साथ घोलकर फसलों पर छिड़काव करने से कीटों का नियंत्रण होता है एवं पत्ती तथा निम्बोली के अर्क को छिड़कने से भी नियंत्रण होता है। नीम की फली दीमक नियंत्रण के लिए तथा सूत्रकृमि के नियंत्रण में सहयोगी होती हैै।