IARI ने तैयार की इंटीग्रेटेड ड्रिप सह मल्च तकनीक, कम पानी में बढ़ेगा मुनाफा
09 जून 2025, नई दिल्ली: IARI ने तैयार की इंटीग्रेटेड ड्रिप सह मल्च तकनीक, कम पानी में बढ़ेगा मुनाफा – धान की पारंपरिक खेती में अत्यधिक जल की खपत और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए, IARI पूसा के जल प्रौद्योगिकी केंद्र (WTC) ने एक नवाचार विकसित किया है — इंटीग्रेटेड ड्रिप कम मल्च टेक्नोलॉजी, जो बेबी कॉर्न जैसी कम समय और कम पानी में तैयार होने वाली फसलों के लिए बेहद कारगर सिद्ध हो रही है। इस तकनीक के ज़रिए जल उपयोग दक्षता और पोषक तत्वों की खपत को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, फसल विविधीकरण और सघनीकरण जैसे प्रयासों को भी मजबूती मिलती है, जो आज के जलवायु परिवर्तन के दौर में बेहद ज़रूरी हो गए हैं।
धान के बाद बेबी कॉर्न: कम समय, कम पानी, ज़्यादा मुनाफा
IARI पूसा के विशेषज्ञों ने बताया कि परंपरागत राइस-बेस्ड क्रॉपिंग सिस्टम में बदलाव कर किसानों को ऐसी फसलें अपनानी चाहिए, जो कम पानी में उगाई जा सकें और जिनका जीवनचक्र छोटा हो। इसी दिशा में धान के बाद बेबी कॉर्न की खेती को एक बेहतर विकल्प बताया गया है। बेबी कॉर्न की खेती पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटका और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में सफलतापूर्वक की जा रही है, और इसका व्यावसायिक भविष्य भी उज्ज्वल है।
क्या है इंटीग्रेटेड ड्रिप कम मल्च टेक्नोलॉजी?
इस तकनीक को IARI पूसा के वॉटर टेक्नोलॉजी सेंटर ने बोरोच प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई के साथ मिलकर विकसित किया है। इसमें ड्रिप इरिगेशन (टपक सिंचाई) को प्लास्टिक मल्चिंग से जोड़ा गया है, जिससे सिंचाई जल का अपव्यय न्यूनतम होता है और खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है।
IARI द्वारा किए गए फील्ड ट्रायल में पाया गया कि इस तकनीक से बेबी कॉर्न की पैदावार में 10 से 15% तक की बढ़ोतरी होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जहां केवल मल्च या केवल ड्रिप पद्धति अपनाई जाती है, वहां इतनी उपज नहीं मिलती। इंटीग्रेटेड सिस्टम से न केवल पैदावार बढ़ी है, बल्कि खरपतवार नियंत्रण, जल उपयोग दक्षता (WUE) और पोषक तत्व उपयोग दक्षता (NUE) में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
बेबी कॉर्न की खेती के फायदे
- 65 से 70 दिनों में तैयार हो जाने वाली फसल
- हर मौसम (सर्दी छोड़कर) में खेती संभव
- बाजार में अच्छी मांग और बेहतर मूल्य
- मल्च की लागत बेबी कॉर्न की आमदनी से हो जाती है कवर
- फसल चक्र में बेहतर फिटिंग और उच्च नेट रिटर्न
क्यों है यह तकनीक समय की मांग?
देश की कुल शुद्ध बोई गई भूमि (Net Sown Area) लगभग 140 मिलियन हेक्टेयर है, लेकिन सिंचाई सिर्फ 55% (78 मिलियन हेक्टेयर) क्षेत्र में ही उपलब्ध है। जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता पर संकट लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में कम पानी वाली फसलों को अपनाना और जल प्रबंधन की स्मार्ट तकनीकों को बढ़ावा देना ही भविष्य की कृषि का रास्ता है।
IARI पूसा ने किसानों से अपील की है कि वे इस नई तकनीक को अपनाएं और धान-बेबी कॉर्न आधारित क्रॉपिंगसिस्टमको प्रोत्साहित करें। इससे न केवल उनकी आमदनी बढ़ेगी, बल्कि खेती भी टिकाऊ बनेगी।
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