Crop Cultivation (फसल की खेती)

रबी मौसम में पानी अनुसार फसलें लगायें

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रबी मौसम में पानी अनुसार फसलें लगायें – किसान भाई रबी मौसम में सिंचाई के विभिन्न स्रोत नलकूप, कुंआ, तालाब, नहर व पानी की उपलब्धता के अनुसार रबी फसलों का चयन करें।

  • खरीफ फसलों मक्का, उड़द, सोयाबीन की कटाई के तुरन्त बाद खेत की हकाई, जुताई कर पाटा लगाकर नमी का संचय करें।
  • रबी फसलों की बुवाई के लिए उचित तापक्रम-अलसी, सरसों के लिए 30 डिग्री, चना व मसूर के लिए 27 डिग्री, गेहूं ऊंची प्रजाति के लिए 25 डिग्री, गेहूं बौनी प्रजाति के लिए 22 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है।
  • दलहनी फसलें चना, मसूर, तिवड़ा, मटर व तिलहनी फसलें सरसों, अलसी को अधिक से अधिक लगायें।
  • खरीफ फसलों की कटाई के बाद जल्द से जल्द खेत की तैयारी करें व जीरोटिलेज मशीन का उपयोग कर बुवाई करें।
  • चना व मसूर के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में अलसी को लगायें।

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रबी मौसम में कम पानी वाली फसलें

  • असिंचित अवस्था के लिए (15 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक) गेहूं की शरबती किस्म सी-306, एच.डब्ल्यू.-2004 (अमर), जे.डब्ल्यू.-17 (स्वप्निल), एच.आई.-1500 (अमृता) किस्मों का चयन करें।
  • अद्र्धसिंचित अवस्था के लिए (15 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक) एक सिंचाई उपलब्ध होने पर जे.डब्ल्यू.-3020, जे.डब्ल्यू.-3173, जे.डब्ल्यू.- 3288, एच.आई.-1531 (हर्षिता), कठिया गेहूं की एच.आई.- 8627 (मालवकीर्ति) किस्मों का चयन करें।
  • सिंचित अवस्था व समय से बुवाई के लिए (10 से 25 नवम्बर तक) दो सिंचाई उपलब्ध होने पर जे.डब्ल्यू.- 1201, जे.डब्ल्यू.- 1202, जे.डब्ल्यू.- 3211, एच.आई.- 1544 (पूर्णां) व कठिया गेहूं की एच.आई.- 8498 (मालव शक्ति), एम.पी.ओ.-1106 (सुधा) किस्मों का चयन करें।
  • सिंचित अवस्था व तीन सिंचाई उपलब्ध होने पर एच.आई.- 8713 (पूसा मंगल), एच.आई.- 8737 (पूसा अनमोल), एच.आई.- 8663 (पोषण), एच.आई.-8759 (पूसा तेजस) किस्मों का चयन करें।
  • धान-गेहूं फसल प्रणाली में गेहूं की देरी से बुवाई (25 दिसम्बर तक) हेतु जे.डब्ल्यू.-1203, जे.डब्ल्यू.- 4010, एम.पी.- 3336, एच.डी.- 2932 किस्मों का चयन करें।
  • 10 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक चने की नवीनतम किस्में जे.जी.- 6, जे.जी.- 12, जे.जी.- 16, जे.जी.- 63, जे.जी.- 130, आर.व्ही.जी.- 202 किस्मों का चयन करें।
  • 10 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक मसूर की नवीनतम किस्में एच.यू.एल.- 57, डी.पी.एल.- 62, पी. एल.- 8, जे.एल.-3, आई.पी. एल.- 81, आई.पी.एल.- 316, आर. व्ही.एल.- 31 किस्मों का चयन करें।
  • 15 अक्टूबर के बाद अलसी की नवीनतम असिंचित किस्में जे.एल.एस.-9, जे.एल.एस.- 66, जे.एल.एस.- 67, जे.एल.एस.- 73 तथा सिंचित किस्में जे.एल.एस.- 27,जे.एल.एस.- 79 व पी.के.डी. एल.- 41 का चयन करें।
  • 25 सितम्बर के बाद मटर की नवीनतम किस्में पी.एस.एम.-3, आर्किल, रचना, प्रकाश, आदर्श, विकास किस्मों का चयन करें।


भूमि – कुसुम के अच्छे उत्पादन के लिये मिट्टी का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसकी जडं़े जमीन में अन्य फसल की तुलना में गहराई तक जाती हैं इसलिये कुसुम के लिये मध्यम काली भूमि, भारी काली भूमि एवं गहरी काली भूमि ज्यादा उपयुक्त है।
किस्में- मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं- 1. ओलिक, 2. लिओनिक

ओलिक – आईएसएफ-1, आईएसएफ-2,आईएसएफ-3, लिओनिक -एसएसएफ 708, परभनी, नारी 52, नारी 57, भीमा इत्यादि।

बीजोपचार- फसल बुवाई पूर्व बीज उपचार करें। बीजों को 2 ग्राम थायरम तथा 1 ग्राम बाविस्टीन के मिश्रण से 1 कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें।

बुवाई समय- खरीफ फसल जैसे सोयाबीन, उड़द, मूंग, मक्का आदि के कटाई पश्चात कुसुम की बुआई की जानी चाहिये।
शीघ्र पकने वाले धान में कुसुम की खेती की जा सकती है। 15 नवम्बर तक बुवाई का समय उपयुक्त है। समयानुसार 30 नवम्बर तक भी बुवाई कर सकते हैं।

बीज मात्रा – 4 से 6 किग्रा. प्रति एकड़ से बुवाई करें। ध्यान रहे दो पौधों के बीच की दूरी 8 से 10 इंच होनी चाहिए।

बुवाई विधि – कुसुम को सीडड्रिल से एवं छिड़काव पद्धति से बुवाई कर सकते हैं। सीड से बुवाई करते समय ध्यान रहे बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. से अधिक नहीं होनी चाहिए।

खाद- सिंचित भूमि में यूरिया 52 कि.ग्रा., एसएसपी 100 कि.ग्रा. एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रति एकड़ से दें तथा असिंचित में 17 से 26 कि.ग्रा. यूरिया, 38 से 50 कि.ग्रा. एसएसपी एवं 7 से 10 कि.ग्रा. पोटेशियम क्लोराइड दें। असिंचित अवस्था में उर्वरक की संपूर्ण मात्रा बोनी के समय दे तथा सिंचित में आधी यूरिया प्रथम सिंचाई पर दें।

सिंचाई- कुसुम में प्रथम सिंचाई बीज अंकुरण के लिए, दूसरी सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन पश्चात्, तीसरी सिंचाई 60 से 65 दिन में सिंचाई में, स्प्रिन्कलर का प्रयोग करें।

निंदाई – गुड़ाई – निंदाई- गुड़ाई की प्रक्रिया बुवाई के 15 से 20 दिन पश्चात करें इसके साथ-साथ थिनिंग करें। थिंनिंग से तात्पर्य एक जगह में एक ही पौधा रखें। यह कार्य सावधानीपूर्वक होनी चाहिए।

कीट नियंत्रण – अन्य फसलों के तुलना में कुसुम/ में कीट कम आता है फिर भी सामान्यत: देखने को मिलता है वह निम्न है-

माहो इसे मैनी के नाम से जाना जाता है। इसके लिए रोगर (डाईमिथियेट) 30 एम.एल. प्रति स्प्रेयर से छिड़काव करें। यह रोग प्राय: किसी एक किनारे से लगता है इसलिये लक्षण दिखते ही किनारे में दवाई स्प्रे कर देने से रोग वहीं नष्ट हो जाता है।

चबाने वाली इल्ली- इसके लिए क्विनालफॉस 25 ईसी प्रति स्प्रेयर से छिड़काव करें।

फसल कटाई- कुसुम लगभग 135-140 दिन में काटने योग्य हो जाती है। आकलन करने के लिये किसान एक फल तोड़कर उसे जूता से रगड़ कर देखें यदि 80 प्रतिशत दाना बाहर आ जाता है तो फसल का हार्वेस्टिंग करायें। इसी प्रकार यदि अनुकूल वातावरण में कुसुम की खेती करंे तो प्रति एकड़ असिंचित में 4 से 5 क्विंटल एवं सिंचित खेती में 6 से 8 क्विं. प्रति एकड़ उपज प्राप्त किया जा सकता है।

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