नीलगिरी (यूकेलिप्टस)
- भागवत प्रसाद पन्द्रे (कार्यक्रम सहायक-कृषि वानिकी )
- डॉ. मृगेन्द्र सिंह (वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख)
- अल्पना शर्मा (वैज्ञानिक)
- बी. के. प्रजापति (वैज्ञानिक),
- कृषि विज्ञान केन्द्र शहडोल, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर
18 अक्टूबर 2022, नीलगिरी (यूकेलिप्टस) – यूकेलिप्टस की उत्पत्ति आस्टे्रलिया में हुई है, परन्तु भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने में की जाती है। यह एक तीव्र गति से उगने वाला, लद्यु अनपूर्वता (8 से 10) वाला वृक्ष है।
भूमि
उसकी खेती कंकरीली, सूखी, चट्टानी मिट्टी से लेकर, दलदली, भारी खराब जल निकास वाली भूमि में भी सफलतापूर्वक की जा सकता है। यूकेलिप्टस टेरेटीकोर्निस जो कि मसूरगम की मैसूर संकर जाति के नाम से जानी जाती है मरूस्थल एवं वानस्पतिक रहित पड़ती जमीन में वनीकरण के लिए उपयुक्त पाई गई है। कुछ प्रजातियाँ जैसे कमालडूलेनारीस, यू. टेसेलारिस एवं यू. मेलानोफलोइया सूखे व बंजर क्षेत्रों में बहुत अच्छी तरह से उगाया जा सकता है।
बीज
इसके फल अर्धगोलाकार या शंकुआकार कठोर एवं काष्ठिकाय होते है। इसके अंदर छोटे छोटे बीज होते है। बीज का कवच पतला, चिकना व काले रंग का होता है। केप्सूल के अंदर बीज के साथ अनुपजाऊ बीज जिस चाफ कहते है, भी होता है। बीजों का भंडारण इन चाफ के साथ किया जाता है। अन्न औसान पद्धति द्वारा चाफ को बीज से अलग किया जाता है। इन शुद्ध बीजों में 7-10 दिनों में अंकुरण क्षमता 51 से 96 प्रतिशत तक होती है। पूर्ण विकसित स्वस्थ बीजों में 7-10 दिनों में अंकुरण प्रारंभ हो जाता है। वैसे बीजों में सुषुप्तावस्था नहीं होती है।
इसका बीज बहुत छोटा होता है, 1 किलो ग्राम में करीब 6 लाख 30 हजार बीज होते हंै, अत: इनके बीजों को सीधा खेत में या पालीथिन बैग में नहीं बोते हैं, बीजों को या तो नर्सरी में या सीधे तश्तरियों में रेतीली मिट्टी के मिश्रण में बोया जाता है। बीज बोने का सबसे उत्तम समय जनवरी फरवरी होता है। 1 वर्गमीटर में करीब 12 ग्राम बीज बोने की सिफारिश की जाती है। बीजों को कम गहराई पर बोते हैं एवं बोआई के बाद उसे पुआल तरह एक समान मिलता है। बीजों के बहने, खुलने की संभावना खत्म हो जाती है एवं गर्मी से भी बचाव भी हो जाता है। बीजों में से जब अंकुरण होने लगे तब पुआल को हटा दें। पौध जब 45 से 60 दिनों की हो जाये तब उन्हें नर्सरी से निकालकर पॉलीथिन की थैलियों में लगा दें। पौध जब 5- 6 माह पुरानी एवं उसकी ऊँचाई 20 से 25 से, भी हो जाय तब उसे खेत में लगा दें।
पौध रोपण
प्रक्षेत्र वानिकी में युकेलिप्टस को 1.5ङ्ग1.5 मीटर की दूरी पर बोसें। इसके लिए 10 से 12 सेमी. गहरे, 20 सेमी. चौड़े गड्डे खोदें। प्रत्येक गड्डों में गोबर की खाद एवं मिट्टी का मिश्रण भर दें। निदान के लिए क्लोरोपायरीफास दवा 1 चम्मच प्रत्येक गड्ढे के हिसाब से डालकर मिला दें, खेत में पौध रोपणी का सबसे उत्तम समय जुलाई-अगस्त होता है।
खाद उर्वरक
फसल के पहले वर्ष नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटास (15:15:15 ) के मिश्रण को 10-15 ग्राम प्रति पौधे की दर से दें एवं उर्वरकों को पौध के चारों ओर डालकर अच्छी तरह से मिला दें।
निंदाई गुड़ाई एव खरपतवार नियंत्रण
वर्षा ऋतु के मौसम में निंदाई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पौधे को चारों ओर समय-समय पर आवश्यकतानुसार खरपतवारों को निकालते रहें एवं गुड़ाई करते रहें।
वनस्पति प्रजनन
बीजों के अलावा युकेलिप्टस को अन्य विधियों जैसे- कंटिग, एयर लेयरिंग, ग्रॉफ्टिंग एवं टिशु कल्चर से भी तैयार किया जा सकता है। इसके अलावा कापंसिंग से भी तैयार किये जाते हैं। वृक्ष जब 8 से 10 वर्ष पुराने हो जाते हैं, तो उन्हें उपयोग के लिए काट लिया जाता है। बचे हुए तने के अवशेष (स्टाम्प) से अनुकूल परिस्थितयों में पुन: शाखायें निकलने लगती हंै। 1 से 2 अच्छी स्वस्थ शाखाओं को छोडक़र बाकी सभी शाखाओं को निकाल दिया जाता है, बाद में एक स्वस्थ शाखा को बढऩे दिया जाता है।