प्रबंधन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक- ‘प्रबंधन के मंत्र
04 सितम्बर 2024, भोपाल: प्रबंधन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली पुस्तक- ‘प्रबंधन के मंत्र – सरकारी महकमों और गैर सरकारी क्षेत्र के संस्थानों द्वारा अपने अमले को प्रशिक्षित करने के निर्देशों की पुस्तिकाएं तथा सामान्य कार्य – कलापों के अनुदेश, लघु पुस्तिका, ट्रेनिंग मैन्युअल या निर्देश पुस्तिका आदि प्रकाशित किये जाते हैं। इसका उद्देश्य अमले को भली- भांति प्रशिक्षित कर कुशल कार्मिक तैयार किये जाकर गुणवत्तापूर्ण कार्य संपादित कराना व नियत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अमले को संस्थान के मंतव्य के मुताबिक दक्ष बनाना होता है। एक कुशल प्रबंधक बनने के लिए कार्य कराने के तौर-तरीके, प्राथमिकताएं आदि कार्यस्थल पर सीखने होते हैं और उनके आधार पर अपनी कार्यशैली विकसित करना पड़ती है इसमें बहुत समय लगता है फिर भी अधूरापन बना रहता है। हालांकि विभिन्न प्रशिक्षणों के माध्यम से कार्य संचालन का सैद्धांतिक ज्ञान तो हो जाता है किंतु प्रबंधन का व्यवहारिक ज्ञान नहीं हो पाता है।
आईआईटी खरगपुर से भूमि एवं जल संरक्षण अभियांत्रिकी विषय में 1984 में एम.टेक. करने के बाद मध्यप्रदेश शासन के कृषि विभाग में चार दशकों तक सेवाएं देने वाले जीवट अधिकारी अवधेश कुमार नेमा ने इस दिशा में अपने अनुभवों के खजाने को लिपिबद्ध कर ‘प्रबंधन के मंत्र’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित कराई है। वे अपने कार्यकाल के प्रथम कुछ वर्षों में कृषि विश्वविद्यालय में प्राध्यापक तथा कृषि विभाग में संयुक्त संचालक के पद पर कार्यरत रहे हैं। इस पुस्तक में उन्होंने उन सभी पहलुओं को सम्मिलित किया है जो किसी प्रबंधक को अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु आवश्यक महसूस होते हैं। पुस्तक का विमोचन करते पूर्व मुख्य सचिव श्री आर. परशुराम ने इस पुस्तक को प्रबंधन के क्षेत्र में एक प्रायोगिक मेन्युअल की संज्ञा दी थी, उनके अनुसार इस पुस्तक को लेखक ने प्रबंधन की कार्यप्रणाली के गहन चिंतन के बाद तैयार किया है I
साहित्य यदि समय की मांग अनुसार आवश्यकता की पूर्ति करता है तो उसकी उपादेयता स्वयं सिद्ध होती है। लेखक की शिक्षा-दीक्षा उच्च तकनीकी संस्थान में होने के बावजूद उनके द्वारा किसानों के लिए भी अनेक उपयोगी रचनाएं, कृतियां हिन्दी में दोहों एवं चौपाईयों के साथ-साथ अन्य पुस्तकें भी सरल भाषा में तैयार की गई हैं। बहु प्रचलित शब्द है। इसे विभिन्न विद्वानों ने अपने ढंग से परिभाषित किया है। डॉ. एस.पी. सियगियन (फिलासफी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) ने प्रबंधन को अन्य लोगों के माध्यम से उद्देश्यों की प्राप्ति में परिणाम प्राप्त करने की क्षमता या कौशल के रूप में परिभाषित किया है, वहीं विद्वान टेरी आर. मानते हैं कि प्रबंधन एक अनूठी प्रक्रिया है जिसमें मानव संसाधन और अन्य संसाधनों के उपयोग के माध्यम से लक्षण के निर्धारण और उन्हें प्राप्त करने के लिए की गई योजना संगठन और नियंत्रण की क्रियाएं शामिल होती हैं। पुस्तक के लेखक का भी यह मानना है कि उपलब्ध संसाधनों के उचित एवं समयानुकूल नियोजन कर निर्धारित लक्ष्यों की अधिकतम पूर्ति करने की कला ही प्रबंधन है। 21 अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक में लगभग 312 प्रबंधन के मंत्र बताए गए हैं जिनमें महत्वपूर्ण घटकों, तत्वों, अवयवों एवं पहलुओं का समावेश किया गया है। प्रबंधन की तीन प्रमुख शैलियां हैं- निरंकुश शैली, लोकतांत्रिक शैली और अहस्तक्षेप की शैली। ‘प्रबंधन के मंत्र’ पुस्तक में लोकतांत्रिक शैली के तत्व समाहित है। यह पुस्तक कार्य प्रबंधन के व्यावहारिक पक्ष को उजागर करती है। इस पुस्तक में समाहित विषय सामग्री का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसमें दो कागजों पर स्टेपलर लगाने के तौर-तरीकों से लेकर बड़े-बड़े मेले आयोजित करने की विधा तक की चर्चा है। इसमें स्वयं के प्रबंधन से लेकर सहकर्मियों, वरिष्ठ अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों, जन संपर्क एवं हितग्राहियों के साथ कब कैसा व्यवहार करना चाहिए तक के मंत्र सुझाये गए हैं। यह पुस्तक सरकारी एवं गैर सरकारी सेवा नियोजितों, शोधार्थियों और जिज्ञासुओं सभी के लिए उपयोगी होकर पठनीय है।
पुस्तक का नाम ‘प्रबंधन के मंत्र’
लेखक – अवधेश कुमार नेमा
प्रकाशन वर्ष – 2024 प्रकाशक अस्तित्व प्रकाशन, पारिजात
हाइट्स बिलासपुर, छबीसगढ़
मूल्य- रु.300/-
पृष्ठ संख्या – 163
उपलब्धता अस्तित्व प्रकाशन, अमज़ॉन,
बिलपकार्ट एवं किंडल
समीक्षक – शिवकुमार शर्मा
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