फसल की खेती (Crop Cultivation)

कपास की फसल में रस चूसक कीटों का नियंत्रण कैसे करें

10 अगस्त 2021, पोकरन-राजस्थान । कपास की फसल में रस चूसक कीटों का नियंत्रण कैसे करें – जैसलमेर क्षेत्र में नगदी फसलों में कपास का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमे वैज्ञानिक ढंग से खेती करके किसान अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। कपास में लगने वाले कीट एवं रोग इसकी पैदावार को कम करने के साथ-साथ गुणवत्ता को भी काफी प्रभावित करते है। समय रहते इस फसल मे कीट और बीमारियों का पता लगाकर इनका निदान करने से किसान अधिक एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन ले सकते है। अतः कपास के प्रमुख कीट व रोग तथा उनके प्रबंधन की जानकारी किसानों को होना अति आवश्यक है, इसी दिशा मे कृषि विज्ञान केंद्र पोकरण के कृषि वैज्ञानिकों ने दूधिया ग्राम मे क्षेत्र भ्रमण कर बताया की कीट व रोगों की समस्या के प्रभावी निराकरण के लिए यह आवश्यक है कि, किसानों को फसलों में लगने वाले कीट एवं रोगों की सामान्य जानकारी के अतिरिक्त पौधों द्वारा प्रदर्शित लक्षणों से इनकी पहचान तथा इनके प्राकृतिक शत्रु कीटों की जानकारी भी हों।

खरीफ फसलों में पौध संरक्षण

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सस्य वैज्ञानिक डॉ. के.जी. व्यास ने बताया कि कपास को हानि पहुँचाने वाले कीटों में रस चूसने वालें कीट जैसे सफेद मक्खी, हरा तेला, चेपा, मीली बग आदि प्रमुखता मे नुकसान पहुचाते है, जिनके प्रकोप के कारण 20-30 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है। माहु या चेपा पत्तियों पर चिपके रहते है जो मीठा रसदार पदार्थ भी छोड़ते है जिससे पौधों पर काली फफूंद बन जाती है। अगस्त से सितम्बर माह में इनका प्रकोप अधिक होता है। हरा तेला व सफेद मक्खी भी इसी अवस्था पर आक्रमण करते है और रस चूस कर नुकसान करते है। यदि रस चूसक कीटों का आक्रमण आर्थिक हानिस्तर पर पहुँचें तो फसल सुरक्षा के लिए 2 मि.ली. डायमिथोएट 30 ई.सी. को प्रति लीटर पानी या 1 मि.ली. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. को प्रति 3 लीटर पानी या 1 मि.ली. थायोमेथोक्जाम 25 डब्ल्यू.जी. को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए। मीली बग के प्रभावी नियंत्रण हेतु 3 मि.ली. प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. या 2 मि.ली. क्यूनालफॉस 25 ई.सी. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। कपास मे लगने वाले रोगों मे जड़ गलन, उखटा, जीवाणु झुलसा, पत्ती धब्बा आदि प्रमुख है जिनके उपचार हेतु बुवाई से पूर्व बीज एवं मिट्टी को जरूर उपचारित करना चाहिए और खड़ी फसल मे फफूंद जनित रोगों के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम कार्बेण्डाज़िम 50 डब्ल्यू.पी. या मेंकोजेब 65 डब्ल्यू.पी. को प्रति लीटर पानी मे घोलकर ड्रेंचिंग/छिड़काव करें। जीवाणु जनित रोग के प्रबंधन हेतु 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन एवं 20 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।

प्रसार वैज्ञानिक एस.के. शर्मा ने बताया की खेत के आस-पास या मेड़ों पर उगे हुए खरपतवारों को भी नष्ट करें क्योंकि इन पर कीटों को आश्रय मिलता है और इनकी संख्या मे बढ़ोतरी होती है। क्षेत्र भ्रमण मे डॉ. बबलू शर्मा ने कहा कि कीटनाशक या फफूंदनाशक दवाइयों की सिफारिश की गई मात्रा ही डालें और इनके अंधाधुंध उपयोग से बचें। केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ राम निवास ढाका ने पर्यावरण की रक्षा और बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए सभी किसानों को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन में जैविक रणनीति को अपनाने की आवश्यकता बताई।

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