फसल की खेती (Crop Cultivation)

गेहूं की फसल में रोग लगने से नुकसान पहुंचता है

29 नवंबर 2024, भोपाल: गेहूं की फसल में रोग लगने से नुकसान पहुंचता है – देश के लाखों किसान अच्छे मुनाफे की आस में गेहूं की खेती करते हैं, लेकिन कई बार गेहूं की फसल में रोग लगने से किसान को काफी नुकसान पहुंचता है।

रबी सीजन में गेहूं की बुवाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है।  गेहूं इस सीजन में सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है। ऐसे में किसान इन रोगों से फसलों को बचाने के लिए नए-नए तरीके अपनाते हैं। अगर सही समय पर इन रोगों पर नियंत्रण पा लिया जाए तो, नुकसान होने की संभावना कम होती है।

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दीमक गेहूं की फसल में सबसे अधिक लगता है। यह फसल में कॉलोनी बनाकर रहते है। दिखने में यह पंखहीन छोटे और पीले/सफेद रंग के होते हैं. दीमक के प्रकोप की संभावना ज्यादातर बलुई दोमट मिट्टी, सूखे की स्थिति में रहती हैं। यह कीट जम रहे बीजों को और पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट से प्रभावित पौधे आकार में कुतरे हुए दिखाई देते हैं।  इस रोग से फसल को बचाने के लिए किसानों को खेत में गोबर डाल देना है और साथ ही बची हुई फसलों के अवशेषों को भी नष्ट कर देना है।  माहू रोग यह पंखहीन या पंखयुक्त हरे रंग के चुभाने और चूसने वाले मुखांग छोटे कीट होते हैं। जोकि पत्तियों और बालियों से रस चूसते है और मधुश्राव भी करते है जिससे काले कवक का प्रकोप होता है और फसलों को काफी नुकसान पहुंचाता है।  भूरा रतुआ रोग  यह रोग गेहूं के निचले पत्तियों पर ज्यादातर लगते हैं, जो नारंगी और भूरे रंग के होते हैं। यह लक्षण पत्तियों की उपर और निचे के सतह पर दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे फसलों की अवस्था बढ़ती जाती है वैसे-वैसे इन रोगों का प्रभाव भी बढ़ने लगता है। यह रोग मुख्य रूप से देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में जैसे की पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि में पाया जाता है कुछ हद तक इसका प्रकोप मध्य भारत क्षेत्रों में भी देखा जाता है। 

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