फसलों में कीट और रोग प्रबंधन के लिए बेहतरीन समाधान है दशपर्णी
24 अप्रैल 2025, भोपाल: फसलों में कीट और रोग प्रबंधन के लिए बेहतरीन समाधान है दशपर्णी – यूं तो देश के किसानों द्वारा फसलों में लगने वाले कीट और रोग प्रबंधन के लिए विभिन्न दवाइयों का प्रयोग करते है लेकिन आधुनिक रासायनिक दवाइयों के उपयोग से कहीं न कहीं किसी न किसी रूप से दुष्परिणाम भी सामने आने लगे है। ऐसे में अब जैविक उपाय दशपर्णी बेहतरीन समाधान साबित हो रहा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दशपर्णी प्रभावशाली तो है ही वहीं पर्यावरण के अनुकूल भी है।
जैविक कीटनाशक और रोग नाशक घोल
दशपर्णी एक पारंपरिक रूप से तैयार किया गया जैविक कीटनाशी और रोगनाशी घोल है, जिसे विशेष रूप से बागवानी फसलों में इस्तेमाल किया जाता है। “दशपर्णी” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है “दस पत्तियों वाला”, और इसे गोमूत्र, हरी मिर्च, लहसुन, नीम और गुड़ के साथ किण्वित कर तैयार किया जाता है।
दशपर्णी बनाने के लिए
दशपर्णी बनाने के लिए दस औषधीय पत्तियों का चयन किया जाता है, जिनमें नीम, करंज, अमरूद, अशोक, तुलसी जैसे पौधे शामिल होते हैं। इन पत्तियों को बारीक काटकर लहसुन, हरी मिर्च, नीम का तेल और गुड़ के साथ मिलाकर प्लास्टिक ड्रम में डाला जाता है। इसे 15-20 दिनों तक किण्वित किया जाता है। किण्वन के बाद घोल तैयार हो जाता है, जिसे छानकर फसलों पर छिड़काव के रूप में प्रयोग किया जाता है।
उपयोग की विधि
दशपर्णी को 100 मिलीलीटर की मात्रा में 1 लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़काव किया जाता है। यह छिड़काव विशेष रूप से वर्षा और गर्मी के मौसम में किया जाता है, जब कीट और रोगों की संभावना अधिक होती है।
पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं
यह पूरी तरह से प्राकृतिक है और पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता।
कीट और रोगों के साथ-साथ यह पौधों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। यह जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद करता है और मिट्टी की जैविक उर्वरता को बनाए रखता है। यह घोल लाभकारी कीटों, जैसे मधुमक्खियों और परागण कर्ताओं को नुकसान नहीं पहुँचाता।
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