फसल की खेती (Crop Cultivation)

शीतलहर-पाले से फसल सुरक्षा के उपाय

21 दिसम्बर 2022, भोपाल । शीतलहर-पाले से फसल सुरक्षा के उपाय  – पाला रबी के मौसम में किसानों की एक प्रमुख समस्या होती है। इस ऋतु में तापमान कम होने के साथ-साथ जैसे ही ठंड बढ़ती है और तापमान कम होते- होते जमाव बिन्दु तक आ जाता है तो वातावरण में पाले की स्थिति बनने लगती है, इसे कोहरा भी कहा जाता है। इसके कारण प्रतिवर्ष रबी में फसल उत्पादकता के साथ-साथ सब्जी उत्पादक को भी भारी नुकसान पहुंचता है। इसके प्रभाव से फसलों एवं सब्जियों के फूल मुरझा जाते हंै और झडऩे लगते हैं। इसके कारण उनमे दाने नहीं बन पाते एवं चपटे होकर काले पड़ जाते हंै। प्रभावित फसल का हरा रंग समाप्त हो जाता है तथा पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखने लगता है। ऐसे में पौधों के पत्ते सडऩे से बैक्टीरिया जनित बीमारियों एवं अन्य कीटों का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है। पत्ती, फूल एवं फल सूख जाते हैं। फल के ऊपर धब्बे पड़ जाते हैं व स्वाद भी खराब हो जाता है। फलदार पौधे पपीता, आम आदि में इसका प्रभाव अधिक पाया गया है।

पाले से बचाव एवं सुरक्षा के लिए पाले का पूर्वानुमान लगाना अत्यधिक आवश्यक होता है। प्राय: पाला पडऩे की संभावना उस रात में ज्यादा रहती है जब ये स्थितियां बनती हैं-  

  • जब दिन के समय ठंड अत्यधिक हो परंतु आकाश साफ हो।
  • भूमि के निकट का तापमान शून्य डिग्री सेंटीग्रेड अथवा और कम हो।
  • शाम के समय हवा अचानक रुक जाए एवं हवा में नमी की अत्यधिक कमी हो।
सुरक्षा के उपाय

खेत की सिंचाई की जाए – यदि पाला पडऩे की संभावना हो या मानसून विभाग से पाला पडऩे की चेतावनी दी गई हो तो फसलों की हल्की सिंचाई करें जिससे  खेत के तापमान में 0.5 से 2 डिग्री से.ग्रे. तक वृद्धि हो जाएगी इससे फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

पौधों को ढकें – पाले से सर्वाधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को प्लास्टिक की चादर, पुआल आदि  से ढंक दें ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री से. ग्रे. तक बढ़ जाता है जिससे तापमान जमाव बिन्दु तक नहीं पहुंच पाता और पौधा पाले से बच जाता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधे का दक्षिण-पूर्वी भाग खुला रहे ताकि उन्हे सुबह और दोपहर को धूप मिलती रहे।

खेत के पास धुआँ करना- फसल को पाले से बचाने के लिए खेत के किनारे धुआँ करने से तापमान में वृद्धि होती है जिससे पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।

रस्सी द्वारा – पाले के समय रस्सी का उपयोग करना काफी प्रभावी रहता है, इसके लिए दो व्यक्ति सुबह के समय (भोर में) एक रस्सी को उसके दोनों सिरों में पकडक़र खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते हैं, जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस नीचे गिर जाती है और फसल सुरक्षित हो जाती है ।

पाले से बचाव के दीर्घकालीन उपाय 

फसलों को पाले से बचाने के लिए खेत के उत्तर-पश्चिम मेड़ पर तथा बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे- शीशम, बबूल, खेजड़ी, आड़ू, शहतूत, आम  तथा जामुन आदि के लगाए जाएं तो सर्दियों में पाले व ठण्डी हवा के झोकों के साथ ही गर्मी में लू से भी बचाव हो सकता है।

गुनगुने पानी का छिडक़ाव- प्रात: काल फसल पर हल्के गुनगुने पानी का छिडक़ाव हो सकता है, छोटी नर्सरी या बगीचे में इस तकनीक का उपयोग सरलता से किया जा सकता है ।

वायुरोधी टाटिया का उपयोग- नर्सरी में तैयार हो रहे पौधों को पाले से ज्यादा नुकसान होता है अत: वायुरोधी टाटिया को नर्सरी में  हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाएं तथा दिन में हटा दें ।

अत: देखा जा सकता है कि पाले के कारण रबी की फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है। किसान बंधु ऊपर वर्णित किसी भी विधि का उपयोग अपनी सुविधा अनुसार कर पाले से फसल का बचाव कर सकता है ।

सरसों को पाले से बचाएं

जिस तरह से फसलों के उगाने में परिवर्तन आया है और सरसों की फसल ने क्षेत्रफल की दृष्टि से उग्रता हासिल की है, उसके विपरीत सरसों ही  पाला से अधिक प्रभावित होती है और उत्पादन में कमी का एक कारण बन जाती है।

सरसों की फसल में पाले का असर तने से ज्यादा जड़ों और पत्तियों पर पत्तियों से ज्यादा फूलों पर पड़ता है। फूलों में विशेष रूप से अंडाशय की अधिक हानि होती है। पाले से पत्तियां और फूल झुलस/मुरझा जाते हैं। झुलसकर बदरंग हो जाते हैं। दाने काले पड़ जाते हैं तथा फलियों में हरे दाने पानी में परिवर्तित हो जाते हैं।

सरसों की फसल को अधिकतर किसान भाई बहुत ही जल्दी सितम्बर के प्रथम या द्वितीय सप्ताह में बो देते हैं जिसकी वजह से दिसम्बर के अंतिम सप्ताह या जनवरी के प्रथम सप्ताह में तापमान जमाव बिंदु पर पहुंचता है तो उधर फसल पर फूल और फलियों का लदान अधिकतम होता है। फलस्वरूप फसल पाले से नुकसान उठा जाती है। अत: सरसों की बुआई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह से लेकर अंतिम सप्ताह तक अवश्य कर दें जिससे पाले से बचा जा सके।

पाले से बचाव के उपाय
  • यदि पाला पडऩे की संभावना का पता चल जाय तो सरसों के खेत में हल्की सिंचाई करें।
  • जिस रात्रि में पाला पडऩे की संभावना हो उस समय खेत की पश्चिमी मेड़ों पर करीब आधी रात को कुछ घांस-फूस इकट्ठा करके जलायें, जिससे धुआं सारे खेत में छा जाये। इससे भूमि की गर्मी कम निकलती है और आसपास में तापमान में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार धुआं कई स्थानों पर करें और उसका रुख फसल पर होकर जाना चाहिये।
  • सरसों की फसल में पाला पडऩे के पहले 2 प्रतिशत यूरिया का छिडक़ाव किया जाय तो, पाले का प्रभाव कम हो जाता है, क्योंकि यूरिया के छिडक़ाव से कोशिकाओं में पानी आने-जाने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • सरसों की आर.एच. 30 किस्म पर पाले का असर कम होता है और पैदावार भी अच्छी होती है।

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