फसल की खेती (Crop Cultivation)

शुद्ध जल आपूर्ति हेतु नदी जल गुणवत्ता की निगरानी में उपग्रहीय छविओ तथा रिमोट सेंसिंग तकनीक का अनुप्रयोग

लेखक: धीरज कुमार १* , जी. वी. प्रजापति २ , एच. वी. परमार १ , नीरज कुमार सोनकर ३ , राहुल कुमार १ , नीरज कुमार १ , शुभम यादव५ , ऋतु डोगरा ६ , एच. डी. रांक , १* शोध छात्र, प्राध्यापक, मृदा एवं जल संरक्षण अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, जूनागढ़, कृषि विश्वविध्यालय, जूनागढ़, गुजरात, भारत-362001, २ प्राध्यापक, अक्षय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, जूनागढ़ कृषि विश्वविध्यालय, जूनागढ़, गुजरात, भारत-362001, ४ प्राध्यापक, अक्षय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, पंजाब कृषि विश्वविध्यालय, लुधियाना, पंजाब, भारत-141004, ५ शोध छात्र, प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, जूनागढ़ कृषि विश्वविध्यालय, जूनागढ़, गुजरात, भारत-362001, अनुरूपी लेखक- dhirajsonkar.nihr@gmail.com, ओआरसीआईडी- 0000-0002-6178-7295

20 सितम्बर 2024, भोपाल: शुद्ध जल आपूर्ति हेतु नदी जल गुणवत्ता की निगरानी में उपग्रहीय छविओ तथा रिमोट सेंसिंग तकनीक का अनुप्रयोग – शारांस: आज के युग में, सतही जल स्रोतों की गुणवत्ता को बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और शहरीकरण जैसे कारकों ने जल संसाधनों की गुणवत्ता को बहुत ही प्रभावित किया है। पुरानी तथा परम्परागत विधीयो के माध्यम से जल गुणवत्ता कारको का आंकलन करना एक जटिल प्रक्रिया है जिसके अन्तरगत समय, पैसा तथा मानव श्रम अत्याधिक मात्र मे प्रयोग होता है । पारंपरिक माध्यम से जल नमूना ईकत्रित करते समय, अक्सर ये पाया गया है कि ईस कार्य मे संलग्न श्रमिकों कि जान कि भी हानी हो जाता है। ऐसी स्थिति में, जल गुणवत्ता की निगरानी और सुधार के लिए अब आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक हो गया है। रिमोट सेंसिंग तकनीक, विशेष रूप से उपग्रह छवियों के माध्यम से, सतही जल गुणवत्ता का सटीक और व्यापक विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह तकनीकी प्रदूषण के श्रोतो को पता करने मे सक्षम है, जो ईसके नियंत्रण मे अपना अमूल्य योगदान प्रदान करता है। ईस तकनीकी के उपयोग से श्रमिकों की जान, समय, धन की अत्यधिक बचत होती है। आने वाले समय मे ईस तकनीकी के उपयोग की जानकारी को शोधकर्ताओ, शैक्षणिक अध्यापन, शोध संस्थाओ तक पहुचाने की आवश्यकता है।

1. रिमोट सेंसिंग तकनीक क्या है?

जल, जीवन का आधार, आज जल की स्थिति खतरे में है। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और कृषि गतिविधियों के कारण, हमारे जल स्रोत तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं। यह प्रदूषण न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को भी बिगाड़ रहा है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने एक अभिनव दृष्टिकोण अपनाया है – सैटेलाइट इमेजिंग तकनीक का उपयोग। सैटेलाइट इमेजिंग ने जल प्रदूषण की निगरानी में एक क्रांति ला दी है। रिमोट सेंसिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से दूरस्थ स्रोतों से जानकारी एकत्र की जाती है। इसमें उपग्रह, हवाई यान, या ड्रोन से विभिन्न सेंसरों का उपयोग करके पृथ्वी की सतह का अवलोकन किया जाता है। ये सेंसर विभिन्न विद्युत चुम्बकीय तरंगों (जैसे इंफ्रारेड, दृश्य प्रकाश, अल्ट्रावायलेट आदि) के माध्यम से डेटा एकत्र करते हैं, जिसे बाद में विश्लेषित किया जाता है। यह तकनीक हमें पृथ्वी के विशाल जल निकायों का व्यापक और नियमित अवलोकन प्रदान करती है, जो पारंपरिक भू-आधारित निगरानी विधियों से संभव नहीं था। इस लेख में, सतही तथा नदी जल प्रदूषण की निगरानी में सैटेलाइट इमेज के प्रयोग की गहन समीक्षा ज्ञी है। ईस अभिलेख मे इसकी कार्यप्रणाली, उपयोग किए जाने वाले विभिन्न तरंगदैर्ध्य, प्रतिबिंब केआधार पर प्रदूषण की पहचान के तरीकों और इस तकनीक के लाभों और चुनौतियों का वर्णन किया गया है।

2. सैटेलाइट सेंसर अथवा बैंड्स का जल की निगरानी मे महत्व

सैटेलाइट से जल गुणवत्ता की निगरानी एक प्रभावी और व्यापक तरीका है, जो बड़े जल निकायों की निगरानी के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ है। इस प्रक्रिया में सैटेलाइट सेंसर के माध्यम से जल निकायों से संबंधित डेटा एकत्र किया जाता है और इस डेटा का विश्लेषण करके जल की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है। सैटेलाइट्स पर लगे मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल सेंसर विभिन्न तरंगदैर्घ्यों (wavelengths) में जल निकायों की तस्वीरें लेते हैं। ये सेंसर दृश्य, निकट-अवरक्त (Near-Infrared), और स्वाभाविक अवरक्त (Shortwave Infrared) जैसे बैंड्स में डेटा एकत्र करते हैं। सेंटिनल-2 और लैंडसैट जैसे सैटेलाइट जल गुणवत्ता की निगरानी के लिए प्रमुख रूप से उपयोग किए जाते हैं। इन सैटेलाइट्स के सेंसर जल के विभिन्न गुणों जैसे कि शैवाल, गाद, और अन्य प्रदूषकों का पता लगाने में सक्षम हैं।

3. सेटेलाइट के प्रकार

सैटेलाइट्स को उनकी कार्यप्रणाली के आधार पर सक्रिय (Active) और निष्क्रिय (Passive) श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। दोनों प्रकार के सैटेलाइट्स का अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि वे डेटा एकत्र करने के लिए स्वयं से संकेत (signals) उत्पन्न करते हैं या बाहरी संकेतों को ही मापते हैं।

3.1 सक्रिय सैटेलाइट (Active Satellite):

विवरण: सक्रिय सैटेलाइट्स वे सैटेलाइट्स होते हैं जो स्वयं से संकेत (जैसे रेडियो तरंगें, माइक्रोवेव, या लेजर) उत्पन्न करते हैं और फिर इन संकेतों के प्रतिबिंब या प्रतिक्रिया को मापते हैं। यह प्रतिक्रिया उन्हें धरती पर लौटने के लिए सैटेलाइट्स के सेंसर द्वारा ग्रहण की जाती है और फिर इसका विश्लेषण किया जाता है।
उदाहरण: रडार सैटेलाइट्स: ये माइक्रोवेव संकेत भेजते हैं और उनके धरती या किसी अन्य सतह से परावर्तन को मापते हैं। यह रात और दिन, दोनों में कार्य करता है और बादलों के पार भी देख सकता है। जैसे कि Sentinel-1 और RADARSAT।

3.2 लिडार (LIDAR) सैटेलाइट्स:

विवरण: ये लेजर संकेत भेजते हैं और उनकी प्रतिक्रिया को मापते हैं। इसका उपयोग सतह की ऊंचाई मापने और वायुमंडलीय अध्ययन के लिए किया जाता है।
उपयोग: सक्रिय सैटेलाइट्स का उपयोग पृथ्वी की सतह के विस्तृत नक्शे बनाने, समुद्री सतह की ऊंचाई मापने, भू-तल की संरचनाओं का अध्ययन, और मौसम निगरानी में किया जाता है।

3.3. निष्क्रिय सैटेलाइट (Passive Satellite):

विवरण: निष्क्रिय सैटेलाइट्स वे सैटेलाइट्स होते हैं जो किसी भी प्रकार का संकेत उत्पन्न नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे पृथ्वी या अंतरिक्ष से स्वाभाविक रूप से आने वाली ऊर्जा (जैसे सूर्य की प्रकाश, अवरक्त विकिरण) का मापन करते हैं। ये सैटेलाइट्स इस ऊर्जा को कैप्चर करते हैं और इसका विश्लेषण करते हैं।
उदाहरण: मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट्स: ये सैटेलाइट्स विभिन्न तरंगदैर्घ्यों में पृथ्वी की सतह से परावर्तित सौर विकिरण का मापन करते हैं। उदाहरण के लिए, Sentinel-2 और Landsat।

3.4. इन्फ्रारेड सैटेलाइट्स: ये सैटेलाइट्स पृथ्वी से उत्सर्जित होने वाली अवरक्त विकिरण का मापन करते हैं, जिसका उपयोग तापमान, वनस्पति स्वास्थ्य, और समुद्र की सतह के तापमान की निगरानी के लिए किया जाता है। निष्क्रिय सैटेलाइट्स का उपयोग पृथ्वी की सतह की तस्वीरें लेने, जलवायु परिवर्तन की निगरानी, समुद्र की सतह के तापमान को मापने, वनस्पति की स्थिति का आकलन करने, और विभिन्न भौतिक और जैविक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने में किया जाता है।

4. सतही जल गुणवत्ता विश्लेषण में रिमोट सेंसिंग का महत्व

सतही जल स्रोत, जैसे कि नदियाँ, झीलें, तालाब और समुद्र, जल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन जल स्रोतों की गुणवत्ता पर नजर रखना आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल पीने के पानी के स्रोतों को सुरक्षित रखने में मदद करता है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित बनाए रखता है। रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करके निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं पर जल गुणवत्ता का विश्लेषण किया जा सकता है:

4.1. क्लोरोफिल-ए की मापन: क्लोरोफिल-ए एक महत्वपूर्ण संकेतक है जो जल में शैवाल की उपस्थिति और उनकी मात्रा को इंगित करता है। उपग्रह छवियों के माध्यम से विभिन्न बैंड संयोजनों का उपयोग करके क्लोरोफिल-ए की सांद्रता का अनुमान लगाया जा सकता है, जिससे जल की ताजगी और प्रदूषण स्तर का आकलन संभव हो पाता है।

4.2 कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट की मात्रा: जल में कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट की मात्रा का मापन भी रिमोट सेंसिंग द्वारा किया जा सकता है। ये तत्व जल की क्षारीयता और कठोरता को प्रभावित करते हैं, और उनके संतुलन का आकलन जल के उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।

4.3. जल के तापमान का आकलन: जल का तापमान उसकी गुणवत्ता और उसमें मौजूद जीवों पर सीधा प्रभाव डालता है। रिमोट सेंसिंग के थर्मल इंफ्रारेड बैंड के माध्यम से जल के तापमान को मापा जा सकता है, जिससे उसके पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है।

4.4 गंदलेपन और टर्बिडिटी की पहचान: जल की गंदलेपन या टर्बिडिटी का आकलन भी उपग्रह छवियों के माध्यम से किया जा सकता है। यह जल में निलंबित कणों की मात्रा को मापने का एक महत्वपूर्ण तरीका है, जो कि जल के उपयोग और उसके उपचार के लिए आवश्यक है। क्रियाशील (Active) या निष्क्रिय (Passive) सैटेलाइट्स द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न तरंगदैर्घ्यों (wavelengths) के माध्यम से जल की गुणवत्ता का विश्लेषण किया जाता है। इनमें से प्रत्येक तरंगदैर्घ्य किसी विशेष जल गुणवत्ता पैरामीटर का संकेत देता है। निम्नलिखित कुछ प्रमुख तरंगदैर्घ्यों (wavelengths) और उनके संबंधित जल गुणवत्ता पैरामीटर का वर्णन है:

4.5 प्रदूषकों की सांद्रता का निर्धारण (Determination of Pollutant Concentration): सैटेलाइट इमेजरी से प्राप्त स्पेक्ट्रल डेटा का उपयोग करते हुए, जल में मौजूद विभिन्न प्रदूषकों की सांद्रता का निर्धारण किया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के स्पेक्ट्रल इंडेक्स (जैसे कि NDVI, TSI) और मॉडल्स का उपयोग किया जाता है। उदाहरण: क्लोरोफिल-ए की सांद्रता का आकलन करने के लिए क्लोरोफिल इंडेक्स का उपयोग किया जाता है, जो ग्रीन और NIR बैंड्स के अनुपात पर आधारित होता है।

4.6 डेटा प्रोसेसिंग और विश्लेषण (Data Processing and Analysis): सैटेलाइट से प्राप्त स्पेक्ट्रल डेटा को प्रोसेस और विश्लेषित करने के लिए विभिन्न सॉफ़्टवेयर और एल्गोरिद्म का उपयोग किया जाता है। इन प्रोसेसिंग तकनीकों के माध्यम से स्पेक्ट्रल सिग्नेचरों का विश्लेषण करके प्रदूषकों की पहचान की जाती है और उनकी सांद्रता का आकलन किया जाता है। उदाहरण: मल्टीस्पेक्ट्रल और हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजरी का उपयोग करके, जल में तेल फैलाव, भारी धातु, और अन्य रासायनिक प्रदूषकों कापता लगाया जा सकता है।

4.7 लंबी अवधि की निगरानी (Long-Term Monitoring): सैटेलाइट इमेजरी स्पेक्ट्रल विश्लेषण का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके माध्यम से दीर्घकालिक निगरानी की जा सकती है। नियमित अंतराल पर डेटा इकट्ठा करके, जल प्रदूषण के रुझानों को समझा जा सकता है और समय के साथ किसी क्षेत्र में प्रदूषण स्तर के बदलावों का आकलन किया जा सकता है।

5. सैटेलाइट इमेजिंग की कार्यप्रणाली

सैटेलाइट इमेजरी स्पेक्ट्रल विश्लेषण का उपयोग सतही जल में प्रदूषकों की सांद्रता और उनके घटकों का निर्धारण करने के लिए
किया जाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न स्पेक्ट्रल बैंड्स (तरंगदैर्घ्यों) पर आधारित होती है, जो सैटेलाइट्स द्वारा इकट्ठे किए गए डेटा
को विश्लेषित करने में मदद करती है। इस विश्लेषण के माध्यम से जल की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है और उसमें उपस्थित
विभिन्न प्रदूषकों की पहचान की जाती है। सैटेलाइट इमेजिंग की कार्यप्रणाली प्रकाश के परावर्तन और अवशोषण के मूलभूत
भौतिक सिद्धांतों पर आधारित है। यह विधि वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को जल प्रदूषण की निगरानी करने और जल
गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने में सहायक होती है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में होती है:

चित्र वर्णन: एक आरेख जो दर्शाता है कि कैसे सूर्य का प्रकाश पृथ्वी की सतह से परावर्तित होता है और फिर सैटेलाइट द्वारा कैप्चर किया जाता है। आरेख में विभिन्न तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को दर्शाने के लिए विभिन्न रंगों का उपयोग किया गया है।

5.1प्रकाश का परावर्तन और अवशोषण: जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी की सतह पर पड़ता है, तो कुछ प्रकाश परावर्तित होता है और कुछ अवशोषित हो जाता है। यह परावर्तन और अवशोषण सतह की प्रकृति पर निर्भर करता है। जल के संदर्भ में, इसकी गुणवत्ता इस प्रक्रिया को प्रभावित करती है।

5.2 स्वच्छ जल: यह अधिकांश प्रकाश को अवशोषित करता है, विशेष रूप से लाल और अवरक्त तरंगदैर्ध्य में। इसलिए, स्वच्छ जल वाले क्षेत्र सैटेलाइट इमेज में गहरे रंग के दिखाई देते हैं।

5.3 प्रदूषित जल: इसमें निलंबित कण, शैवाल, और अन्य प्रदूषक होते हैं जो प्रकाश को अधिक परावर्तित करते हैं। इसलिए, प्रदूषित जल वाले क्षेत्र अक्सर हल्के रंग के या चमकीले दिखाई देते हैं।

5.4 सैटेलाइट द्वारा डेटा संग्रह: पृथ्वी की सतह से परावर्तित प्रकाश को अंतरिक्ष में स्थित सैटेलाइट द्वारा कैप्चर किया जाता है। सैटेलाइट में विशेष संवेदक (सेंसर) लगे होते हैं जो विभिन्न तरंगदैर्ध्य में प्रकाश को कैप्चर कर सकते हैं। ये संवेदक न केवल दृश्य प्रकाश, बल्कि अवरक्त और अन्य भागों को भी कैप्चर करते हैं।

5.5 डिजिटल डेटा में रूपांतरण: संवेदकों द्वारा कैप्चर किया गया प्रकाश डिजिटल डेटा में परिवर्तित किया जाता है। यह डेटा पिक्सेल के रूप में संगठित होता है, जहां प्रत्येक पिक्सेल पृथ्वी के एक विशिष्ट क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।

5.6 डेटा प्रेषण और प्रसंस्करण: यह डिजिटल डेटा फिर पृथ्वी पर स्थित ग्राउंड स्टेशनों को प्रेषित किया जाता है। यहां, विशेष सॉफ्टवेयर और एल्गोरिदम का उपयोग करके डेटा का प्रसंस्करण किया जाता है।

5.7 विश्लेषण और व्याख्या: प्रसंस्कृत डेटा का विश्लेषण किया जाता है ताकि जल की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सके। विभिन्न तरंगदैर्ध्य के डेटा को संयोजित करके, वैज्ञानिक जल में मौजूद विभिन्न प्रदूषकों की पहचान और मात्रा का अनुमान लगा सकते हैं।

6. तरंगदैर्घ्यों का उपयोग

हर वस्तु का एक अद्वितीय स्पेक्ट्रल सिग्नेचर होता है, जो उस वस्तु द्वारा विभिन्न तरंगदैर्घ्यों पर परावर्तित या अवशोषित ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। सतही जल में मौजूद विभिन्न प्रदूषक भी अलग-अलग तरंगदैर्घ्यों पर विभिन्न प्रकार के सिग्नेचर प्रदर्शित करते हैं। जल में क्लोरोफिल-ए, टर्बिडिटी (धुंधलापन), और निलंबित ठोस पदार्थों का स्पेक्ट्रल सिग्नेचर अलग-अलग होता है। इन सिग्नेचरों का विश्लेषण करके, यह पता लगाया जा सकता है कि पानी में कौन से प्रदूषक मौजूद हैं। क्रियाशील (Active) या निष्क्रिय (Passive) सैटेलाइट्स द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न तरंगदैर्घ्यों (wavelengths) के माध्यम से जल की गुणवत्ता का जाँच किया जाता है। इनमें से प्रत्येक तरंगदैर्घ्य किसी विशेष जल गुणवत्ता पैरामीटर का संकेत देता है।
समान्यतः तरंगदैर्घ्यों को मापन नैनो मिटर मे किया जाता है। कुछ प्रमुख तरंगदैर्घ्यों और उनके संबंधित जल गुणवत्ता पैरामीटर
का वर्णन निम्नलिखित है:

6.1ब्लू वेवलेंथ (Blue Wavelength) [~450-495 nm]: यह तरंगदैर्घ्य पानी में घुले हुए पदार्थों (Dissolved Organic Matter) और क्लोरोफिल-ए (Chlorophyll-a) का आकलन करने में सहायक होती है। इसे पानी की साफ़ी (clarity) का मापन करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।

उदाहरण: ब्लू बैंड का उपयोग पानी में मौजूद फाइटोप्लांकटन और अन्य सूक्ष्मजीवों का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।

6.2 ग्रीन वेवलेंथ (Green Wavelength) [~495-570 nm]: यह तरंगदैर्घ्य जल में मौजूद क्लोरोफिल-ए की मात्रा को मापने के लिए महत्वपूर्ण होती है। क्लोरोफिल-ए की उपस्थिति से शैवाल (algae) की मात्रा का पता चलता है।

उदाहरण: जल में शैवाल के खिलने (algal blooms) का आकलन और सतह की पारदर्शिता का मापन।

6.3. रेड वेवलेंथ (Red Wavelength) [~620-750 nm]: रेड बैंड का उपयोग निलंबित ठोस पदार्थों (Suspended Solids) और टर्बिडिटी (धुंधलापन) के मापन के लिए किया जाता है। उदाहरण: जब पानी में कणों की मात्रा अधिक होती है, तो रेड बैंड की प्रतिक्रिया बढ़ जाती है, जिससे टर्बिडिटी का आकलन किया जा सकता है।

6.4 निकट अवरक्त (Near-Infrared, NIR) [~750-900 nm]: यह तरंगदैर्घ्य जल में घुले और निलंबित ठोस पदार्थों का पता लगाने में सहायक होती है। यह विशेष रूप से जल और भूमि के बीच की सीमा का निर्धारण करने में उपयोगी है। उदाहरण: नदियों और जलाशयों में निलंबित कणों की पहचान, और जल निकायों की सीमाओं का निर्धारण।

6.5 थर्मल इंफ्रारेड (Thermal Infrared, TIR) [~10,000-12,000 nm]: थर्मल इंफ्रारेड तरंगदैर्घ्य का उपयोग जल के तापमान का मापन करने के लिए किया जाता है। जल के तापमान में बदलाव से जल की गुणवत्ता और प्रदूषण का आकलन किया जा सकता है। उदाहरण: उद्योगों से उत्सर्जित गर्म पानी का प्रवाह, तापीय प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन।

6.6अल्ट्रावायलेट (Ultraviolet, UV) [~10-400 nm]: अल्ट्रावायलेट तरंगदैर्घ्य का उपयोग जल में घुले हुए कार्बनिक पदार्थों (Dissolved Organic Matter) और कुछ रासायनिक प्रदूषकों की पहचान के लिए किया जाता है। उदाहरण: पानी में ह्यूमिक पदार्थों की उपस्थिति, और हानिकारक रसायनों का मापन।

चित्र वर्णन: एक ग्राफ जो विभिन्न जल गुणवत्ता मापदंडों और उनके संबंधित तरंगदैर्ध्य को दर्शाता है। प्रत्येक मापदंड के लिए एक अलग रंग का उपयोग किया गया है, जो उसकी विशिष्ट तरंगदैर्ध्य रेंज को दर्शाता है।

7.जल गुणवत्ता मापदंड और संबंधित तरंगदैर्ध्य

सैटेलाइट इमेजिंग विभिन्न जल गुणवत्ता मापदंडों की पहचान और मापन में सक्षम है। प्रत्येक मापदंड का एक विशिष्ट स्पेक्ट्रल हस्ताक्षर होता है, जिसे विशेष तरंगदैर्ध्य में पहचाना जा सकता है। आइए प्रमुख मापदंडों और उनसे संबंधित तरंगदैर्ध्य पर विस्तार से चर्चा करें:

7.1 क्लोरोफिल-ए:

तरंगदैर्ध्य: 440-550 nm (नीला-हरा क्षेत्र) और 660-690 nm (लाल क्षेत्र)
महत्व: क्लोरोफिल-ए शैवाल की उपस्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। यह जल में पोषक तत्वों की मात्रा का अप्रत्यक्ष माप प्रदान करता है।
पहचान: उच्च क्लोरोफिल-ए सांद्रता वाले क्षेत्र सैटेलाइट इमेज में हरे रंग के दिखाई देते हैं।
प्रभाव: अधिक क्लोरोफिल-ए की मात्रा यूट्रोफिकेशन का संकेत दे सकती है, जो जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिए हानिकारक है।

7.2 निलंबित ठोस पदार्थ:

तरंगदैर्ध्य: 550-650 nm (हरा से लाल क्षेत्र)
महत्व: निलंबित ठोस पदार्थ जल में तैरते कण होते हैं, जो मिट्टी, रेत, या अन्य सूक्ष्म कणों से बने हो सकते हैं।
पहचान: अधिक निलंबित ठोस पदार्थ वाले क्षेत्र सैटेलाइट इमेज में भूरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
प्रभाव: अधिक निलंबित ठोस पदार्थ जल की पारदर्शिता को कम करते हैं, जो जलीय जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है।

7.3 घुलित कार्बनिक पदार्थ:

तरंगदैर्ध्य: 400-500 nm (नीला क्षेत्र)
महत्व: ये जल में घुले हुए कार्बनिक यौगिक हैं, जो प्राकृतिक स्रोतों या मानव गतिविधियों से आ सकते हैं।
पहचान: अधिक घुलित कार्बनिक पदार्थ वाले क्षेत्र सैटेलाइट इमेज में भूरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
प्रभाव: अधिक मात्रा में ये पदार्थ जल को भूरा या पीला बना सकते हैं और जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।

7.4 तापमान:
तरंगदैर्ध्य: 10,000-12,500 nm (थर्मल अवरक्त बैंड)
महत्व: जल का तापमान जलीय जीवन और रासायनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है।
पहचान: थर्मल इमेज में गर्म क्षेत्र लाल या पीले रंग के, जबकि ठंडे क्षेत्र नीले या हरे रंग के दिखाई देते हैं।
प्रभाव: तापमान में अचानक परिवर्तन थर्मल प्रदूषण का संकेत हो सकता है, जो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है।

7.5 तेल प्रदूषण:

तरंगदैर्ध्य: 1,550-1,750 nm (मध्य अवरक्त बैंड)
महत्व: तेल रिसाव जल प्रदूषण का एक गंभीर रूप है जो जलीय जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करता है।
पहचान: तेल की परत पानी की सतह पर एक विशिष्ट चमक पैदा करती है जो सैटेलाइट इमेज में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह आमतौर पर चमकीले या सिल्वर रंग के पैच के रूप में दिखाई देता है।
प्रभाव: तेल प्रदूषण जलीय जीवों के लिए घातक हो सकता है, ऑक्सीजन के आदान-प्रदान को बाधित करता है और पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है।

चित्र वर्णन: एक ग्राफ जो विभिन्न जल गुणवत्ता कारको और उनके संबंधित को दर्शाता है। प्रत्येक कारक ईक अलग विशिष्ट प्रकार के तरंगदैर्ध्य को बाहर छोड़ते रहते है।

8.प्रतिबिंब के आधार पर पहचान

सैटेलाइट इमेज में प्रदूषण की पहचान मुख्यतः प्रतिबिंब पैटर्न के आधार पर की जाती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न तकनीकों और विश्लेषण पद्धतियों का उपयोग किया जाता है। आइए इन विधियों पर विस्तार से चर्चा करें:

8.1 रंग विश्लेषण: रंग विश्लेषण सैटेलाइट इमेज से जल प्रदूषण की पहचान करने का सबसे सीधा तरीका है। विभिन्न प्रकार के प्रदूषक पानी को अलग-अलग रंग देते हैं:

स्वच्छ जल: आमतौर पर गहरे नीले या काले रंग का दिखाई देता है।

शैवाल प्रस्फुटन: हरे रंग का दिखाई देता है, जिसकी तीव्रता शैवाल की सघनता पर निर्भर करती है।

निलंबित तलछट: भूरे या पीले रंग का दिखाई देता है।

औद्योगिक अपशिष्ट: अक्सर लाल, नारंगी या अन्य असामान्य रंगों में दिखाई देता है।

रंग विश्लेषण में मल्टीस्पेक्ट्रल इमेजिंग का उपयोग किया जाता है, जहां विभिन्न तरंगदैर्ध्य के डेटा को संयोजित करके रंग कंपोजिट इमेज बनाई जाती है।
8.2 सतह का पैटर्न: कुछ प्रकार के प्रदूषण, विशेष रूप से तेल रिसाव, पानी की सतह पर विशिष्ट पैटर्न बनाते हैं:

तेल रिसाव: पानी की सतह पर एक चिकनी, चमकदार परत बनाता है जो सैटेलाइट इमेज में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह परत प्रकाश को अलग तरह से परावर्तित करती है, जिससे यह आसपास के पानी से अलग दिखाई देती है।

शैवाल प्रस्फुटन: बड़े पैमाने पर शैवाल वृद्धि पानी की सतह पर एक असमान, धब्बेदार पैटर्न बना सकती है।

अवसादन: नदी के मुहाने पर जहां तलछट जमा होता है, वहां एक पंखे के आकार का पैटर्न दिखाई दे सकता है।

इन पैटर्न की पहचान के लिए उच्च रिज़ॉल्यूशन वाले सैटेलाइट इमेज की आवश्यकता होती है।

8.3 घनत्व मानचित्रण: घनत्व मानचित्रण एक उन्नत तकनीक है जिसका उपयोग प्रदूषकों के वितरण और सांद्रता को दर्शाने के लिए किया जाता है:
प्रक्रिया: विभिन्न तरंगदैर्ध्य के डेटा को संयोजित करके, वैज्ञानिक प्रदूषकों के घनत्व के मानचित्र बनाते हैं।

रंग कोडिंग: आमतौर पर, उच्च घनत्व वाले क्षेत्रों को गर्म रंगों (लाल, नारंगी) में और कम घनत्व वाले क्षेत्रों को ठंडे रंगों (नीला, हरा) में दर्शाया जाता है।
उपयोग: यह तकनीक प्रदूषण के स्रोत की पहचान करने और प्रदूषण के फैलाव को समझने में मदद करती है।

8.4 समय श्रृंखला विश्लेषण: समय के साथ एक ही क्षेत्र की कई इमेज का तुलनात्मक अध्ययन करके, प्रदूषण के स्तर में परिवर्तन का पता लगाया जा सकता है:
प्रक्रिया: एक ही क्षेत्र की विभिन्न समय पर ली गई इमेज को क्रमबद्ध तरीके से देखा जाता है।

लाभ: यह दृष्टिकोण मौसमी परिवर्तनों, प्रदूषण की दीर्घकालिक प्रवृत्तियों, और अचानक होने वाले प्रदूषण घटनाओं की पहचान करने में मदद करता है। उदाहरण: इस विधि का उपयोग करके, वैज्ञानिक किसी झील में वार्षिक शैवाल प्रस्फुटन चक्र या किसी नदी में औद्योगिक प्रदूषण के स्तर में परिवर्तन का अध्ययन कर सकते हैं।

8.5 स्पेक्ट्रल हस्ताक्षर विश्लेषण: यह एक उन्नत तकनीक है जो प्रत्येक प्रदूषक के विशिष्ट स्पेक्ट्रल हस्ताक्षर का उपयोग करती है:
सिद्धांत: प्रत्येक पदार्थ प्रकाश को अलग तरह से अवशोषित और परावर्तित करता है, जिससे उसका एक विशिष्ट स्पेक्ट्रल
हस्ताक्षर बनता है।

प्रक्रिया: कंप्यूटर एल्गोरिदम इन हस्ताक्षरों की पहचान करके प्रदूषकों की प्रकृति और मात्रा का अनुमान लगाते हैं।
लाभ: यह विधि विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों को एक दूसरे से अलग करने और उनकी सटीक पहचान करने में मदद करती है।

चित्र वर्णन:: जल मे घुलनशील सोडियम एवं पोटैसियम की सांध्रता की जूनागढ़ कृषि विश्वविध्याल की प्रयोगशाला मे जाँच

9. रिमोट सेन्सिंग तथा उपग्रहीय छविओ के तकनीक प्रयोग के लाभ:

अ.) व्यापक क्षेत्र कवरेज: सैटेलाइट एक बार में बड़े जल निकायों की निगरानी कर सकते हैं। यह महासागरों, बड़ी झीलों, और लंबी नदी प्रणालियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। उदाहरण: NASA का Landsat सैटेलाइट एक बार में 185 किमी x 185 किमी क्षेत्र को कवर कर सकता है।
ब.) नियमित निगरानी: सैटेलाइट नियमित अंतराल पर डेटा एकत्र कर सकते हैं, जो लगातार निगरानी की अनुमति देता है। कुछ
सैटेलाइट प्रत्येक 1-2 दिनों में एक ही क्षेत्र का अवलोकन कर सकते हैं, जो प्रदूषण में तेजी से होने वाले परिवर्तनों को पकड़ने में मदद करता है।
स.) दुर्गम क्षेत्रों तक पहुंच: सैटेलाइट उन क्षेत्रों की निगरानी कर सकते हैं जहां भौतिक रूप से पहुंचना मुश्किल या खतरनाक है।
उदाहरण: आर्कटिक क्षेत्र में तेल रिसाव या युद्धग्रस्त क्षेत्रों में जल प्रदूषण की निगरानी।
द.) लागत प्रभावी: लंबे समय में, सैटेलाइट इमेजिंग पारंपरिक नमूनाकरण विधियों की तुलना में अधिक किफायती हो सकती है, विशेष रूप से बड़े क्षेत्रों के लिए। एक बार सैटेलाइट स्थापित होने के बाद, यह लगातार डेटा प्रदान करता है बिना अतिरिक्त फील्ड मिशन की आवश्यकता के।
य.) समय पर जानकारी: सैटेलाइट लगभग वास्तविक समय में डेटा प्रदान कर सकते हैं, जो तत्काल कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण है। यह तेल रिसाव या औद्योगिक दुर्घटनाओं जैसी आपात स्थितियों में विशेष रूप से मूल्यवान है।
र.) एकीकृत दृष्टिकोण: सैटेलाइट इमेजिंग अन्य डेटा स्रोतों (जैसे मौसम डेटा, भूमि उपयोग मानचित्र) के साथ आसानी से एकीकृत किया जा सकता है। यह प्रदूषण के कारणों और प्रभावों की बेहतर समझ प्रदान करता है।

10 रिमोट सेंसिंग की चुनौतियाँ और भविष्य

हालांकि रिमोट सेंसिंग तकनीक ने जल गुणवत्ता विश्लेषण में एक नई क्रांति की शुरुआत की है, फिर भी इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं। जैसे कि विभिन्न जल निकायों की जटिल संरचना, मौसम की स्थिति, और डेटा की सटीकता का मुद्दा। लेकिन जैसे-जैसे तकनीक में सुधार हो रहा है, इन चुनौतियों का समाधान भी मिल रहा है। भविष्य में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का उपयोग करके रिमोट सेंसिंग से प्राप्त डेटा का और भी अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण किया जा सकेगा। इससे जल गुणवत्ता की निगरानी और भी अधिक सटीक और तीव्र हो जाएगी। निष्कर्ष रिमोट सेंसिंग तकनीक सतही जल गुणवत्ता विश्लेषण में एक अद्वितीय और शक्तिशाली उपकरण साबित हो रही है। उपग्रह छवियों के माध्यम से जल के विभिन्न गुणों का आकलन करना न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के व्यापक हित में भी है। इसके निरंतर विकास और अनुप्रयोग से जल संसाधनों के संरक्षण और उनके सतत उपयोग में उल्लेखनीय प्रगति की जा सकती है।

10.1 चुनौतियां:
अ.) मौसम की स्थिति: बादल और धुंध इमेज की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से ऑप्टिकल सेंसर के लिए। यह
मानसून के मौसम या धुंध वाले क्षेत्रों में एक बड़ी बाधा हो सकती है।
ब.) सतही प्रदूषण तक सीमित: अधिकांश सैटेलाइट सेंसर केवल जल की सतह या उथले गहराई तक ही देख सकते हैं। गहरे पानी
में प्रदूषण का पता लगाना मुश्किल हो सकता है, जो कुछ मामलों में महत्वपूर्ण हो सकता है।
स.) उच्च तकनीकी आवश्यकताएं: सैटेलाइट डेटा के विश्लेषण के लिए विशेषज्ञता और उन्नत सॉफ्टवेयर की आवश्यकता होती है।

इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों और महंगे कंप्यूटर सिस्टम

निष्ष्कर्ष:

सेटेलाइट इमेजरी स्पेक्ट्रल विश्लेषण एक प्रभावी उपकरण है जो सतही जल में प्रदूषकों की पहचान और उनकी सांद्रता
का निर्धारण करने में मदद करता है। सैटेलाइट इमेजिंग ने जल प्रदूषण निगरानी में एक नया अध्याय खोला है। यह तकनीक हमें
पृथ्वी के जल संसाधनों की व्यापक, नियमित और सटीक निगरानी करने की अभूतपूर्व क्षमता प्रदान करती है। हालांकि इसमें कुछ
चुनौतियां हैं, लेकिन इसके लाभ इन्हें काफी हद तक अपनाने मे मदद करते हैं। जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती जाएगी, हम
जल प्रदूषण की बेहतर समझ और प्रबंधन की ओर बढ़ते जाएंगे। आर्टिफिकीयल इंटेलिजेन्स और मशीन लर्निंग के साथ सैटेलाइट
इमेजिंग का एकीकरण हमें प्रदूषण के पैटर्न और स्रोतों की पहचान करने में मदद करेगा, जिससे अधिक प्रभावी नियंत्रण
रणनीतियां विकसित करने में मदद मिलेगी। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सैटेलाइट इमेजिंग अकेले जल प्रदूषण की
समस्या को हल नहीं कर सकती। यह एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसे व्यापक पर्यावरण प्रबंधन रणनीतियों, कठोर
नीतियों, और सामुदायिक जागरूकता के साथ संयोजन में उपयोग किया जाना चाहिए। अंत में, सतही एवं नदी जल प्रदूषण
निगरानी में सैटेलाइट इमेज का प्रयोग हमारे जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह तकनीक न केवल वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगी, बल्कि आम जनता को भी पर्यावरण
के प्रति अधिक जागरूक और जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करेगी। जैसे-जैसे हम भविष्य की ओर बढ़ते हैं, यह तकनीक निश्चित
रूप से हमारे ग्रह के सबसे मूल्यवान संसाधन – पानी – के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

संदर्भ:

  1. https://dnr.wisconsin.gov/topic/lakes/clmn/remotesensing/futuredirections.html
  2. राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन, विज्ञान मिशन निदेशालय। (2010). विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम का परिचय.
    पुनर्प्राप्त किया गया [तिथि डालें – उदा. 10 अगस्त 2016], नासा साइंस वेबसाइट से:
    http://science.nasa.gov/ems/01_intro

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