Animal Husbandry (पशुपालन)

झाबुआ जिले में कड़कनाथ ने खोले कमाई के किवाड़

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  • इंदौर (विशेष प्रतिनिधि)

19 मार्च 2023,  झाबुआ जिले में कड़कनाथ ने खोले कमाई के किवाड़ – आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में पाया जाने वाला विशेष प्रजाति का दुर्लभ काला मुर्गा कडक़नाथ अपनी खास विशेषताओं के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। यही कारण है कि झाबुआ जिले में कडक़नाथ को एक जिला -एक उत्पाद में शामिल किया गया है।  कडक़नाथ ने झाबुआ जिले के ग्रामीण अंचल के लोगों के लिए कमाई के किवाड़ खोल दिए हैं। इसके विस्तार में  पशुपालन विभाग एवं  कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ के अलावा सहकारी समितियां, महिला स्वयं सहायता समूह और किसान कडक़नाथ उत्पादक संगठन इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। कडक़नाथ ने झाबुआ जिले के आदिवासियों के आर्थिक हालात बदल दिए हैं।

आर्थिक स्थिति में आया बदलाव

कला एवं सामाजिक कार्य में स्नातक श्री वीरसिंह थंदार  ग्राम छोटा गुड़ा ( नौगांव ) ब्लॉक मेघनगर जिला झाबुआ ने कृषक जगत को बताया कि एक दशक पूर्व 2013 में मुर्गीपालन केंद्र खोला था, जिसमें अनुदान भी मिला था। बाद में केवीके झाबुआ की प्रेरणा से कडक़नाथ के 50  चूजे शामिल किए गए, जिनसे इनका विस्तार होता गया। तीन साल तक लोगों से सतत सम्पर्क और प्रशिक्षण लिया, फिर कडक़नाथ मुर्गी पालन सहकारी संस्था, छोटागुड़ा का गठन किया गया। इसीका नतीजा है कि फिलहाल सालाना टर्न ओवर 4 लाख का हो गया है। गत दिसंबर में ग्रामीण विकास ट्रस्ट, दाहोद को करीब ढाई लाख के चूजे दिए गए। मेघनगर ब्लॉक के 46 और थांदला ब्लॉक के 60 कुल 106 लोगों को प्रशिक्षण के बाद कडक़नाथ के चूजे देकर स्वरोजगार उपलब्ध कराया। इससे आदिवासी वर्ग के लोगों के आर्थिक हालात में बदलाव आया है। इन्होंने यह भी कहा कि कडक़नाथ प्रजाति की विशेष देखरेख करनी पड़ती है। नियमित आहार  के अलावा रोजाना बाड़े में घुमाना पड़ता है। रानीखेत  बीमारी से बचाव के लिए समय-समय पर टीकाकरण भी करवाना पड़ता है।

कडक़नाथ को जीआई टैग

 सारा सेवा संस्थान, झाबुआ के निदेशक श्री जिमी निर्मल ने कृषक जगत को बताया कि हमारी संस्था बच्चों, विधवा महिलाओं, शराबी पति से त्रस्त महिलाओं एवं वंचित वर्ग के लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में मदद करती है। कडक़नाथ को जीआई टैग मिला हुआ है। कडक़नाथ को एक जिला-एक उत्पाद में भी शामिल किया गया है। इसके अलावा किसान कडक़नाथ उत्पादक संगठन (एफपीओ) का भी गठन किया गया है। समिति द्वारा चयनित महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया और रूचि अनुसार इन्हें कुक्कुट पालन का प्रशिक्षण दिलवाया गया। साथ ही बीमारी की पहचान और वेक्सीन आदि का भी प्रशिक्षण दिलाया।

महिलाओं को हुआ मुनाफा

पशुपालन विभाग की ओर से 600 महिलाओं को 1100 रुपए में 40 चूजे दिए गए। समय के साथ चूजों की संख्या बढ़ती गई और इन महिलाओं ने करीब 25 हजार रु के नए चूजे बेच दिए, जिससे प्रत्येक महिला को औसतन 5 हजार प्रति माह का अतिरिक्त मुनाफा हुआ। विस्तार के साथ महिलाएं अब शेड की मांग कर रही हैं। कडक़नाथ योजना अच्छी है, लेकिन इसे लागू करने में कई परेशानियां भी हैं। हालाँकि पशुपालन विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र बहुत सहयोग कर रहे हैं। विस्तार के तहत इंदौर-अहमदाबाद राजमार्ग पर कडक़नाथ पार्लर भी खोले गए हैं। नाबार्ड द्वारा भी 600 महिलाओं को तीन साल तक प्रशिक्षण/भ्रमण आदि के लिए 11 लाख देने की घोषणा की गई है। इसका संचालन दो सीईओ करेंगे। अभी राशि प्राप्त नहीं हुई है। एनआरएलएम के माध्यम से 55 महिला समूहों की 275 महिलाओं को ग्रामीण बैंक द्वारा करीब 75 लाख का ऋण दिया गया है। कुछ को छोडक़र शेष समूह मासिक किश्त की नियमित अदायगी कर रहे हैं। कडक़नाथ परियोजना की दो बार मुख्यमंत्री प्रशंसा कर इसे प्रोत्साहित कर चुके हैं।

कुक्कुट पालन समितियों का योगदान

डॉ. आई. एस. तोमर, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ ने कृषक जगत को बताया कि 1985 में स्थापित  कृषि विज्ञान केंद्र, झाबुआ में 2009-10 में भारत सरकार की एनएआईसी योजनांतर्गत कुक्कुट प्रजाति कडक़नाथ का सर्वे किया गया था। जिसमें पाया गया कि यह दुर्लभ प्रजाति इसी अंचल में पाई जाती है। आरम्भ में 10 किसानों को कडक़नाथ के चूजे  देकर इनके रखरखाव, खान-पान और टीकाकरण के लिए प्रशिक्षित  किया गया। साढ़े 5 माह में मुर्गियां अंडे भी देने  लगी। धीरे-धीरे इसकी मांग देश भर में होने लगी। विपणन से कडक़नाथ के व्यापार का विस्तार  हुआ। जिसमें कुक्कुट पालन समितियों और समूहों का भी योगदान है। आउटलेट भी बना दिए गए हैं। कडक़नाथ अब मप्र की पहचान बन गया है। शासन द्वारा 1 हज़ार कडक़नाथ के अंडे रखने के लिए हेचरी प्रस्तावित है। कृषि विज्ञान केंद्र झाबुआ से कडक़नाथ का 1 दिन का चूजा 60 रु में 7 दिन का, 70 रु में तथा 15 दिन का चूजा 80 रुपए में बेचा जा रहा है।

कडक़नाथ की विशेषताएं  

कडक़नाथ की उत्पत्ति क_ीवाड़ा ,आलीराजपुर के जंगलों में हुई है। क्षेत्रीय भाषा में कडक़नाथ को कालामासी भी कहा जाता है ,क्योंकि इसका मांस, चोंच, कलंगी, जुबान, टांगे, नाखून, चमड़ी इत्यादि काली होती है। जो कि मिलेनिन पिगमेंट की अधिकता के कारण होता है। कडक़नाथ की तीन प्रजातियाँ (जेट ब्लैक, पैन्सिल्ड, गोल्डन) पाई जाती है। जिसमें से जेट ब्लैक प्रजाति सबसे अधिक मात्रा में एवं गोल्डन प्रजाति सबसे कम मात्रा में पाई जाती है। इसका मांस  स्वादिष्ट व आसानी से पचने वाला होता है। इसका आहार  हृदय व मधुमेह  रोगियों के लिए  लाभदायक  माना गया है।  इसकी इसी विशेषता के कारण बाजार में इसकी मांग काफी होती है। इसका अंडा 75 -100 रु  और एक मुर्गा 800-1000 रुपए में बिकता है।

 नर कडक़नाथ का औसतन वजन 1.80 से 2.00 किलोग्राम तक होता है, मादा कडक़नाथ का औसतन वजन 1.25 से 1.50 किलोग्राम तक होता है, कडक़नाथ मादा प्रतिवर्ष 60 से 80 अण्डे देती है, इनके अण्डे मध्यम प्रकार के हल्के भूरे गुलाबी रंग के व वजन में 30 से 35 ग्राम के    होते हैं ।

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