मधुमक्खी पालन एक व्यवसाय
- प्रीति गावड़े (एम.एस.सी. कीट विज्ञान)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
Peeti.gawde89@gmail.com
30 मार्च 2022, मधुमक्खी पालन एक व्यवसाय – भारत में मधुमक्खी पालन मुख्यत: वन आधारित होता है। अनेकों प्राकृतिक वनस्पति प्रजातियां शहद हेतु नेक्टर एवं पॉलेन प्रदान करती हैं। अत: शहद उत्पादन हेतु कच्चा माल प्रकृति से मुफ्त में उपलब्ध हो जाता है। मधुमक्खी के छत्ते के लिए न तो अतिरिक्त भूमि लगती है और न ही किसी उपकरण हेतु कृषि अथवा पशुपालन से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खी कॉलोनियों की निगरानी हेतु केवल कुछ घंटे बिताना पड़ता है। इसलिए, मधुमक्खी पालन आंशिक व्यवसाय है। मधुमक्खी पालन ग्रामीण तथा जनजाति किसानों के लिए धारणीय आय सृजन का साधन बनाता है। इससे उन्हें शहद, मोम इत्यादि प्राप्त होता है। मधुमक्खी पालन एक लघु व्यवसाय है, यह एक ऐसा व्यवसाय है,जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि शहद उत्पादन के मामले में भारत पांचवे स्थान पर है। मधुमक्खी पालन उद्योग करने वालों की खादी ग्राम उद्योग कई मात्रा में मदद करता है। इस व्यवसाय का सीधा संबंध खेती- बाड़ी, बागवानी, फलोत्पादन, बीजोत्पादन से है।
प्रमुख प्रजातियां
भारतीय उपमहाद्वीप में मधुमक्खियों की प्रमुख चार प्रजातियां हैं। ये हैं एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसेटा और एपिस फ्लोरिया। इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती है। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी मेें अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है।
आवश्यक सामग्री
इसके लिए लकड़ी का बॉक्स, बॉक्सफ्रेम, मुंह पर ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्ताने, चाकू, शहद, रिमूविंग मशीन, शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम का इंतजाम जरूरी है।
प्रशिक्षण
शहद उत्पन्न करने के लिए वातावरण, नए-नए उपकरण एवं प्रबंध की जानकारी, उत्पादन के लिए उच्चकोटि की तकनीक, अधिक शहद देने वाली मधुमक्खियों की प्रजातियां, नस्ल सुधार एवं रोगों से बचने की सम्यक जानकारी तथा वैज्ञानिक विधि से मधुमक्खी पालन में नवनिर्मित तकनीक आदि का ज्ञान दिया जाता है।
योग्यता
मधुमक्खी पालन से संबंधित कई तरह के सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री कोर्स किए जा सकते हैं, डिप्लोमा करने वाले के लिए विज्ञान से स्नातक होना जरूरी है, जबकि हाबी कोर्स के लिए किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं होती। प्रशिक्षण के लिए 1 हफ्ते से ले कर 9 महीने तक के कोर्स मौजूद हैं। कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति, जो इस काम में दिलचस्पी रखता हो, वह भी यह काम सफलतापूर्वक कर सकता हैं। प्रशिक्षण शुल्क 200 रूपए से ले कर 2500 रूपए तक है, प्रशिक्षण के दौरान मधुमक्खी पालन से ले कर शहद निकालने, रोगों से बचाव, बेहतर रखरखाव, ज्यादा शहद उत्पादन संबंधी जानकारियां भी दी जाती हैं।
व्यावसायिक जानकारी
मधुमक्खी पालन का काम शुरू करने से पहले किसी प्रशिक्षण संस्थान से जानकारी हासिल करना काफी सहायक हो सकता है, इसके अलावा भरपूर शहद उत्पन्न करने के लिए अच्छा माहौल भी जरूरी है। इससे जुड़ी कुछ खास बातें निम्नलिखित हैं:
- शुरू में यह व्यवसाय कम लागत से छोटे पैमाने पर करें।
- मधुमक्खी पालने की जगह समतल होनी चाहिए और भरपूर मात्रा में पानी, हवा, छाया व धूप होनी चाहिए।
- मधुमक्खी पालन की जगह के चारों ओर 1 से 2 किलोमीटर तक अमरूद, जामुन, केला, नारियल, नाशपाती व फूलों के पेड़-पौधे लगे होने चाहिए।
- मधमक्खी पालन का सबसे सही समय फरवरी से नवंबर तक का होता है इस दौरान मधुमक्खियों के लिए तापमान सबसे सही होता है और इसी मौसम में रानी मक्खी ज्यादा तादाद में अंडे देती हैं।
सावधानी
जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उसके आसपास की जमीन साफ-सुथरी होनी चाहिए । बड़े चींटे, मोमभक्षी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट तथा भालू मधुमक्खियों के दुश्मन हैं, इनसे बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए।
ऋण
पिछले कुछ वर्षों में मधुमक्खी पालन की ओर लोगों का रूझान बढ़ा है। इस उद्योग के लिए सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन सुविधा उपलब्ध करवाई है। इस व्यवसाय के लिए दो से पांच लाख रूपए तक का लोन उपलब्ध है।
उपयुक्त पौधे
सूरजमुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, नींबू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसमी, अंगूर, यूकेलिप्टस और गुलमोहर जैसे पेड़ वाले क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन आसानी से किया जा सकता है।
उपयुक्त समय
मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है।
लागत
सामान्य तौर पर मधुमक्खी के एक बक्से में 40 से 50 हजार बक्से मधुमक्खियों का आवास होते हैं और एक बक्से से करीब 8 से 10 किलो शहद मिलता है। विभागीय मानको के हिसाब से एक हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 6 से 8 बक्से रखे जाते हैं। मधुमक्खी पालन को व्यवसाय के रूप में अपना कर 1.5 से 2.0 लाख रू. प्रति वर्ष आय प्राप्त कर सकते हैं।
प्रशिक्षण संस्थान
- भारतीय कषि अनुसंधान परिषद, पूसा रोड, नई दिल्ली नेशनल बी बोर्ड
- बी इंस्टीटयूशनल एरिया, अगस्त क्रांति मार्ग, हौज खास, नई दिल्ली
- केंद्रीय मधुमक्खी पालन अनुसंधान संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र
- राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, लाल कोठी, जयपुर, राजस्थान
- ल्यूपिन हायूपिन वेलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन, कष्णानगर भरतपुर, राजस्थान
प्रबंधन
एक वर्ष तक मधुमक्खी से मधु उत्पादन हेतु मकरंद एवं पराग उपलब्ध हो, इसके लिए, इस बात की जानकारी आवश्यक है कि फसल एवं फलदार वृक्षों आदि में फूल कब से कब तक उपलब्ध रहता है। साथ ही साथ यह भी मालूम होना चाहिए कि वृक्ष पर लगने वाले फूूलों की गुणवत्ता कैसी है। वैसे वृक्ष या पौधे जिनके फूलों में मकरंद की मात्रा अधिक होती है, अत्यधिक उपयोगी होते हैं तथा दोनों एक-दूसरे के लिए कैसे उपयोगी हैं, का विवरण इस प्रकार है-
फसल/ वृक्ष | फूल खिलने का समय |
सरसों, अनार, सहजन, पपीता | जनवरी-फरवरी |
सरसों, मक्का, धनिया, नींबू | फरवरी- मार्च |
लीची, अमरूद, खजूर, आंवला, बैगन | मार्च- अप्रैल |
जामुन, पपीता, सूरजमुखी, सरगुजा, नीम | अप्रैल- मई |
सूरजमुखी, बेल, नारियल, शहतूत, | मई- जून |
करंज, लोबिया | |
मक्का, सूरजमुखी, पपीता | ज्ूान- जुलाई |
ढैंचा, अमरूद, सूरजमुखी, मेंहदी, गेंदा | जुलाई- अगस्त |
सूरजमुखी, तिल, गेंदा, मक्का | अगस्त-सितंबर |
ब्ेार, मक्का, गोल्डनरॉड, बाजरा | सितंबर- अक्टूबर |
सूरजमुखी, यूकेबि, गुलाब | अक्टूबर- नवंबर |
सरसों, गुलाब,मक्का | नवंबर- दिसंबर |
सरसों, मूली, मेथी, सहजन | दिसंबर-जनवरी |
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