भिण्डी की महत्वपूर्ण बीमारियाँ व नियंत्रण
दैनिक आहार में सब्जियों का विशेष स्थान है। भिण्डी की खेती ग्रीष्म और वर्षा ऋतुओं में की जाती है। गर्मी में लगे जाने वाली फसल का समय फरवरी मार्च होता है और वर्षा में इसकी बिजाई जून-जुलाई के समय में की जाती है। भिण्डी का और सब्जी की फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक पौष्टिक सब्जी है जिसमें लोहे, फास्फोरस, पोटाशियम प्रोटीन आदि काफी मात्रा में होते हैं। परंतु बीमारियों की वजह से इस सब्जी के उत्पादन में किसान भाईयों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। यदि इसकी बीमारियों का सही ढंग से प्रबंध किया जाये तो इसकी गुणवत्ता व उत्पादन दोनों का लाभ उठाया जा सकता है। इस लेख में भिण्डी की हानिकारक बीमारियाँ व उनकी रोकथाम की उचित जानकारी दी गई है।
पीला रोग या पीत सीरा मोजेक – सफेद मक्खी से फैलने वाला यह एक विषाणु रोग है। इसमें पत्तों की शिरायें पीली हो जाती हैं व बाद में सारे पत्ते और फल पीले पड़ जाते हैं जिसके कारण पैदावार में भारी नुकसान होता है।
रोकथाम – ऐसी किस्मों की बिजाई करें जिसमें यह रोग कम लगता है जैसे कि हिसार उन्नत, पी-7 आदि। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए कीटनाशक जैसे एसीटामिप्रिड 20 एस.पी.के. नियमित छिड़काव करें और रोगी पौधों को निकालते रहें।
जड़ गलन – इस रोग में छोटे पौधों का विकास होना बंद हो जाता है। तथा पौधे साथ-साथ पीले होते जाते हैं और जड़ें गलने लगती हैं जिसके कारण पौधा मर जाता है।
रोकथाम – बिजाई से पहले बीज का उपचार 2 ग्राम बाविस्टीन या 2.5 ग्राम कैप्टान को प्रति किलोग्राम बीज के साथ मिलकर करें।
जड़ गांठ रोग – इस रोग की पहचान पीले बोने पौधों व जड़ों में गांठ से होती है।
रोकथाम – ग्रीष्मकालीन मौसम में 2-3 जुताई करें व खेत खुला छोड़ दें इस सूत्रकृमि को नष्ट करने के लिए 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति हेक्टेयर के दर से बिजाई के समय फसल में मिलायें।
- ऐनी खन्ना
- कुशल राज
- पूजा सांगवान
- मीनाक्षी राठी
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