चुरड़ा-मुरड़ा रोग : मिर्च को पर्ण कुंचन से कैसे बचायें
निमाड़ अंचल में लगभग 35000 हेक्टेयर में मिर्च की खेती होती है। वर्ष 2014-15 एवं 2015-16 में काफी बड़े क्षेत्रफल में पर्ण कुंचन रोग का प्रकोप हुआ जिसके कारण मिर्च में भारी नुकसान हुआ यह रोग मिर्च पर्ण कुंचन वायरस इंडिया (बेगामु वायरस) द्वारा होना पाया गया। इस रोग के कारण मिर्च की पत्तियॉ छोटी होकर मुड जाती हैं। पत्तियों की शिराएं मोटी हो जाती है जिससे पत्तियां मोटी दिखाई पड़ती है, पौधौं की बढ़वार रूक जाती है, पौधे झाड़ीनुमा दिखाई पडते हैं। पौेधों पर फल लगना कम हो जाते हैं फल लगते भी हैं तो कुरूप हो जाते हैं। यह वायरस सफेद मक्खी द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है। यदि सफेद मक्खी एक बार रोग ग्रसित पौधे से रस चूस लेती है तो वह पूरे जीवन काल रोग फैलाने में सक्षम होती है। अत: इस बीमारी के प्रबंधन के लिए रस चूसक कीटों की सामूहिक रोकथाम ही सर्वाधिक उचित उपाय है। मिर्च का रकबा अधिक होने से एवं मिर्च के आसपास अन्य फसलें जैसे पपीता, टमाटर, कपास का रकबा भी अधिक होने के कारण वायरस वाहक रसचूसक कीट एक खेत से दूसरे खेत में असानी से बीमारी को फैलाने में सहायक सिद्ध होते हैं।
भविष्य में रोग की रोकथाम एवं बचाव की संभावित कार्ययोजना निम्नानुसार होगी-
खेत की तैयारी-
– गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करवाएं।
– मेंढ़े साफ-सुथरी की जाएं ।
– खेत के आसपास पुराने मिर्च, टमाटर, पपीते के पौधों को नष्ट किया जाए।
– खेतों में अधिक वर्षा की स्थिति में पानी निकास की उचित व्यवस्था की जाए।
– मिर्च रोपणी प्रो ट्रे में कोकोपिट का उपयोग करते हुए नेट हाउस के अंदर लगाकर पौध तैयार करना भी इस रोग से बचने के लिए एक अच्छा उपाय है।
बीज एवं बीजोपचार-
– कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर एवं ग्वालियर/ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली/ भारतीय उद्यानिकी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकसित/ अनुशंसित उन्नत रोग रोधी/सहनशील जातियों को ही बोनी के लिए उपयोग करें।
– भूमिजनित रोगों एवं रसचूसक कीटों से बचाव हेतु 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक व 5 ग्राम थायोमिथाक्जाम कीटनाश्क प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करें।
रोपणी की तैयारी-
– पौध शाला पर सूर्य का प्रकाश पूरे दिन उपलब्ध हो।
– रोपणी में क्यारियां भूमि से 15 सेमी. ऊंची एवं 1 मीटर चौड़ी तथा 3 मीटर लंम्बी बनाये।
– बोनी के पूर्व प्रत्येक क्यारी मे 30 ग्राम फोरेट दवा डालें तत्पश्चात ही बोनी करें।
– रोपणी में बीज बोनी के बाद कीट अवरोधक जाली (40 मेस मच्छरदानी) रस चूसक कीटों से बचाव हेतु आवश्यक रूप से लगाएं।
– रोप में 15 दिन के अंतर पर 1-2 छिड़काव दैहिक कीटनाशी जैसे डायमेथोएट -30 की. 2 मिली/लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
रोपे को खेत मेें लगाना –
– 30-35 दिन पुराने रोपे को खेत में लगायेें। रोपाई के पूर्व रोपे को इमिडाक्लोरोपीड व कार्बेन्डाजिम के घोल में डुबाने के बाद खेत में रोपा जाए।
– रोपे को खेत में मेढ़ पर ड्रिप व प्लास्टिक मल्च तकनीक का उपयोग करते हुए लगाया जा सकता हैं खेत मेें मेढ़ बनाते समय भूमि में फोरेट 5 किलो/एकड़ डालने से रसचूसक कीट व भूमि जनित कीट जैसे बोन्डला (सफेद ग्रब) आदि के नियंत्रण मे सहायक होगा।
– खेत में रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर पर्णकुंचित पौधों को उखाड़कर गढ्ढे में डालकर बंद करें।
– खेत में सफेद मक्खी को आकर्षित करने के लिए पीले प्रपंच (चिपचिपे ट्रेप) लगाना चाहिए।
– मिर्च के खेतों के आसपास ज्वार मक्का की दो-तीन कतारे लगाना भी लाभदायक होता है।
एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन-
– सामन्यत: कृषक भाई यूरिया खाद का अधिक उपयोग करते हैं, जिससे रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप अधिक होता है। इस लिए मिर्च के खेत में गोबर की खाद (250-300 क्विं.) या केंचुआ खाद (50 क्वि./हे.) खेत की तैयारी के समय बोनी पूर्व देना चाहिए एवं रासायनिक, उर्वरक संतुलित 120-80-80 किलोग्राम./ हे. के हिसाब से नत्रजन, स्फुर, पोटाश देना चाहिए।
किस्में :
अर्का लोहित, पन्त सी-1, जवाहर मिर्च 218, पूसा सदाबहार, के.ए.-2 (काशी अनमोल), अर्का सुफल, पूसा ज्वाला, काशी अर्ली (सी.सी.एच.-3), काशी सुर्ख (सी.सी.एच.-2), अर्का मेघना (2005), अर्का श्वेता (2005)।
खड़ी फसल में पर्ण कुंचन रोग से बचाव के उपाय :
इस बीमारी के सफल प्रबंधन के लिए रस चूसक कीटों की समन्वित प्रबन्ध सर्वाधिक उचित उपाय है अत: निम्नलिखित कीटनाशकों को अदल-बदल कर छिड़काव करने से रोग वाहक सफेद मक्खी, मकड़ी व थ्रिप्स, आदि रस चूसक कीटों को रोकने में सफलता मिलेगी।
– नीम की निम्बोली का काढ़ा 750 ग्राम निम्बोली/15 ली. पानी
– डायमिथोएट 30 एम एल $ 40 ग्राम सल्फेक्स/15 ली. पानी
– इमिडाक्लोप्रिड 05 एमएल/15 ली. पानी
– नीम तेल 75 एमएल/15 ली. पानी
– फिप्रोनील 30 एमएल 50 ग्राम सल्फेक्स/15 ली. पानी।
– एसिटामिप्रिड 3 ग्राम/15 ली. पानी
विशेष : दवा की अनुशंसित मात्रा से अधिक न डालें। प्रति एकड़ क्षेत्र में करीब 150-200 लीटर दवा के घोल का छिड़काव करें। कीटनाशक का छिड़काव पत्तियों की निचली सतह पर अवश्य करें। अनावश्यक रूप से एवं बगैर जानकारी के एक से अधिक दवाओं को मिलाकर छिड़काव न करें। बीच-बीच में नीम की निम्बोली का काढ़ा या नीम के तेल का छिड़काव करने से अधिक लाभ होता है। सेन्थेटेक पाइरेथ्राइड कीटनाशक का उपयोग न करें इससे सफेद मक्खी के प्रकोप की सम्भावना बढ़ जायेगी।