कृषि आदान की अग्रिम व्यवस्था जरूरी
खेती एक निरन्तर क्रिया है। खरीफ के बाद रबी, रबी के बाद जायद, जायद के बाद फिर खरीफ मौसम आने वाला है। भारतीय मौसम विभाग ने मानसून की प्रारंभिक भविष्यवाणी भी कर दी है। अब किसानों को सजग रहकर खरीफ की तैयारी करनी है। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण समय पर कृषि आदानों की व्यवस्था करना है क्योंकि मानसून के सक्रिय होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवस्था करना मुश्किल होगा। जो गांव सड़क से जुड़े हैं वहां आसानी से आदान सामग्री पहुंचायी जा सकती है परन्तु जहां कच्ची सड़कें हैं वहां कीचड़ भरे मार्ग पर कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान में जायद की मूंग-उड़द कट रही है किसान भाईयों को खेत की गहरी जुताई कर नमी को संरक्षित रखते हुए खेत की तैयारी करनी है। नमी पाकर खेतों में छुपे खरपतवारों के बीज अंकुरित होकर अपना अस्तित्व बताने लगते हंै यही समय है कि खेतों में बखर चलाकर अंकुरित खरपतवारों को मिट्टी में मिला दें इस एक तीर से दो शिकार संभव हैं, एक भविष्य में खरपतवारों की समस्या से कुछ निजात मिल सकेगी और दूसरा खेतों को मुफ्त में जैविक खाद मिल जायेगी। आदानों में खेती में लगने वाले यंत्रों जैसे बखर,हल,सिंचाई तथा बुआई यंत्रों का रखरखाव करके पूर्ण रूप से तैयार करें। बुआई के लिये ट्रैक्टर का रखरखाव, खाद, बीज सभी अच्छी तरह से तैयार रखें यहां तक की पौध संरक्षण उपायों के लिये उपलब्ध स्प्रेयर, डस्टर की साफ-सफाई तथा उसमें लगने वाले छोटे परंतु महत्वपूर्ण हिस्सों के अतिरिक्त कलपुर्जे का भी इंतजाम यदि करके रखा जाये तो समय पर परेशानी नहीं होगी बल्कि भाग-दौड़ कम होगी क्योंकि पौध संरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसमें यदि देरी की गई तो फिर चाहकर भी लाभ मिलना मुश्किल होगा। खाद, उर्वरक के साथ अच्छे बीज का भी इंतजाम जरूरी होगा। खेती में बीज की व्यवस्था नहीं की गई हो तो बाकी सब प्रयास बेकार सिद्ध होंगे। खेती को कीट-रोग से बचाने के लिये पौध संरक्षण दवाओं का भी इंतजाम आप का ही कार्य है। विशेषकर बीजोपचार के लिये फफूंदनाशी, कीटनाशी तथा अन्य जरूरत की सामग्री को भी कृषि आदान का मुख्य हिस्सा माना जाये। अक्सर होता यह है कि प्यास लगे तब कुआं खोदने की तैयारी यह बात कृषि में बिल्कुल नहीं चलती है, इस कारण सभी तैयारियां बरसात के पहले ही कर लेना जरूरी होगा। शासन द्वारा भी इस कार्य में पूरा-पूरा सहयोग किया जाता है। खाद के अग्रिम उठाव पर छूट दी गई है। गांवों में निश्चित स्थानों पर खाद, बीज, पौध संरक्षण, दवाओं के इंतजाम के लिये एक ठोस कार्यक्रम तैयार कर उस पर अमल भी किया जाता है। ध्यान रहे समय का महत्व शायद सिर्फ कृषकों के लिये ही हैं क्योंकि डाल का चूका बंदर और समय का चूका कृषक दोनों अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं इसलिये समय से आदानों की व्यवस्था करें और निश्चिंत हो जायें।