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अब सोयाबीन के विकल्प खोजने ही होंगे

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देश में खरीफ फसलों की बुआई का रकबा मानसून की अनिश्चितता के बाद भी 1013.83 लाख हेक्टर तक पहुंच गया। जबकि पिछले वर्ष यह 1019.60 लाख हेक्टर था। इसमें मात्र 5.77 लाख हेक्टर की कमी आई है। इसमें से लगभग 3 लाख हेक्टर की कमी तो धान के बुआई क्षेत्र में कमी के कारण आयी है। जहां पिछले वर्ष धान 361.24 लाख हेक्टर में लगाई गई थी। इस वर्ष यह 358.28 लाख हेक्टर में लगाई गई है। पिछले वर्षों में देश में दालों की कमी देखी गई थी और दालों के दाम आम आदमी की खरीदने की क्षमता के बाहर चले गये थे। दालों के उत्पादन व दामों को स्थिर रखने के लिये सरकार की ओर से प्रयास किये गये। जिनके कारण किसानों ने दलहनी फसलों के क्षेत्र में वृद्धि कर इसे 141.35 लाख हेक्टर तक पहुंचा दिया था। परंतु किसानों को दलहनी फसलों की उचित कीमत नहीं मिल पायी। जिसका प्रभाव इस वर्ष दलहनी फसलों के बुआई क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है और यह इस वर्ष घटकर 135.96 लाख हेक्टर रह गया है। मध्यप्रदेश में इसका विपरीत असर देखने में आया है। जहां पिछले वर्ष प्रदेश में खरीफ दलहनी फसलें 21.17 लाख हेक्टर क्षेत्र में लगाई गई थी वहीं इस वर्ष इनका बुआई क्षेत्र बढ़कर 26.76 लाख हेक्टर हो गया है। म.प्र. में दलहनी बुआई क्षेत्र में सामान्य बुआई क्षेत्र में 208.9 प्रतिशत तथा पिछले वर्ष के क्षेत्र से 126.4 प्रतिशत वृद्धि देखी गयी है। दलहनी फसलों के क्षेत्र में 5.59 लाख हेक्टर की वृद्धि का अर्थ यह नहीं लगाना चाहिये कि किसान पिछले वर्ष दलहनी फसलों की मिली कीमतों से संतुष्ट थे। हाँ वह दलहनी फसलों की मिली उपज से अवश्य संतुष्ट थे। सोयाबीन में आने वाली समस्याओं के कारण किसानों का सोयाबीन से मोह भंग होता चला जा रहा है। इस वर्ष सोयाबीन के बुआई के सामान्य क्षेत्र में मध्यप्रदेश में 8.59 लाख हेक्टर और पिछले वर्ष की बुआई क्षेत्र से 4.01 लाख हेक्टर की कमी आई है। इस वर्ष किसानों ने दलहनी फसलों की बुआई सोयाबीन की फसल के विकल्प के रूप में की है। क्योंकि उन्हें दलहनी फसलों की उपज तो अच्छी मिली थी भले ही कीमत न मिली हों।
इस वर्ष देश में कपास के बुआई क्षेत्र में 6.60 लाख हेक्टर की वृद्धि हुई है। जहां पिछले वर्ष कपास 101.54 लाख हेक्टर में बोई गई थी। इस वर्ष इसका क्षेत्र बढ़कर 118.14 लाख हेक्टर हो गया। मध्यप्रदेश में कपास के बुआई क्षेत्र में कोई अंतर नहीं आया यह पिछले वर्ष के बराबर 5.99 लाख हेक्टर ही रहा। मध्यप्रदेश में सोयाबीन के बुआई क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से कमी आती चली जा रही है। मध्यप्रदेश के किसान के लिये सोयाबीन फसल एक वरदान सिद्ध हुई थी। परंतु पिछले 40 वर्षों से लगातार हर वर्ष खरीफ में सोयाबीन की फसल किसानों द्वारा लेने के कारण इसमें अब विभिन्न समस्यायें आने लगी हैं। जिसके कारण किसानों का इस फसल के प्रति मोह भंग होता चला जा रहा है। अब किसानों को इसके विकल्प के रूप में दूसरी फसलों की खेती में महारत हासिल करनी होगी। इसका विकल्प जितनी जल्दी ढंूढ लिया जाय उतना अच्छा है।

 

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