राज्य कृषि समाचार (State News)

पराली प्रबंधन से किसान अब ऊर्जा दाता और खाद दाता बनेंगे

पराली अब कचरा नहीं,कंचन बन चुकी है

08 नवंबर 2025, जबलपुर: पराली प्रबंधन से किसान अब ऊर्जा दाता और खाद दाता बनेंगे – जबलपुर जिले में अब पराली को कचरा समझकर जलाने का दौर खत्म हो गया है। कृषि विभाग की एक क्रांतिकारी पहल से किसानों के लिए पराली अब कचरा नहीं, बल्कि ‘खेत का सोना’ बन चुकी है। बेलर मशीन के माध्यम से खेतों में ही पराली के बंडल बनाकर, किसान अब अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण में भी बड़ा योगदान दे रहे हैं।

 विभाग द्वारा पराली प्रबंधन के लिए तीन प्रमुख कंपनियां हैं, जिनमें रिलायंस बायो एनर्जी, फार्म व्हाट, और क्रॉस साइकिल बायोमास को जिले में लाया गया है। ये कंपनियां पूरे जिले में किसानों के खेत से निःशुल्क पराली साफ करने का कार्य कर रही हैं, जिससे किसानों को पराली जलाने की मजबूरी से मुक्ति मिल रही है। विशेष रूप से, क्रॉस साइकिल बायोमास कंपनी पाटन विकासखंड में सक्रिय है, जहां वह किसानों के खेतों में आयताकार और गोलाकार बेल बनाने का कार्य कर रही है। अब तक लगभग 500 एकड़ में यह कार्य हो चुका है, और 15,000 एकड़ में इसे पूरा करने का लक्ष्य है।

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किसानों के लिए आय का एक नया स्रोत खुल गया है, क्योंकि किसान स्वयं बेलर यंत्र अनुदान पर खरीदकर अपना व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं और पराली के बेल बनाकर बेच सकते हैं। रिलायंस एनर्जी प्लांट इन बेलों को 1800 रुपये प्रति टन के हिसाब से खरीद रहा है। इन बेलों से कंप्रेस्ड नेचुरल गैस और जैविक खाद तैयार होगी, जिसका सीधा अर्थ है कि जबलपुर के किसान अब न केवल अन्नदाता हैं, बल्कि ऊर्जा दाता और खाद दाता भी बनेंगे। यह पहल पराली जलाने के गंभीर पर्यावरणीय दुष्परिणामों से जिले को मुक्ति दिलाएगी।

आपको बता दें कि मात्र 1 टन पराली जलाने से 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, और 3 किलो पार्टिकुलेट मैटर (PM) जैसे जहरीले तत्व उत्सर्जित होते थे। इससे मनुष्य में सांस, आंख और त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियां होती थीं, और मिट्टी का स्वास्थ्य भी खराब होता था, सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते थे, मिट्टी कठोर हो जाती थी, और जल धारण क्षमता घट जाती थी। अब इन सभी समस्याओं का समाधान हो गया है। पराली अब विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग हो रही है; जिले में दो पेलेट प्लांट भी कार्यरत हैं जो निश्चित दरों पर मक्का और धान की पराली खरीद कर पेलेट बना रहे हैं। पूर्व में पराली को कचरा समझा जाता था, पर अब इसी से किसान अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं।

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जो किसान भाई बेलर यंत्र खरीदकर अपना व्यवसाय स्थापित करना चाहते हैं, उनके लिए कृषि अभियांत्रिकी विभाग लगभग 50 प्रतिशत अनुदान दे रहा है। बेलर की कीमत 4 लाख से 14 लाख रुपये तक है, जिस पर अधिकतम 6 लाख 50 हजार अनुदान दिया जाएगा। सभी वर्ग के कृषक ई-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर परली प्रबंधन के यंत्रों के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेजों में जमीन की खतौनी, ट्रैक्टर रजिस्ट्रेशन कार्ड, आधार कार्ड, और बैंक पासबुक शामिल हैं।

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