राज्य कृषि समाचार (State News)

जैविक खेती को प्रोत्साहित करने की जरूरत है

21 नवंबर 2024, भोपाल: जैविक खेती को प्रोत्साहित करने की जरूरत है – पंचायत एवं ग्रामीण विकास व श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल स्वच्छ, स्वर्णिम, समृद्ध भारत निर्माण के लिए किसान आध्यात्मिक सम्मेलन भारतीय कृषि दर्शन एवं सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम में शामिल हुए। यह कार्यक्रम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नरसिंहपुर के तत्वावधान में पीजी कॉलेज नरसिंहपुर के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।

मंत्री श्री पटेल ने कहा कि यह मेरे लिए अच्छा दिन है कि अनुभवी व्यक्तियों के बीच अनेक अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि जब वे 10 साल के थे, उस समय सोयाबीन की फसल उपजाने की शुरूआत गोटेगांव तहसील में हुई थी। मेरे पिताजी खेती करते थे। कृषि विभाग के अधिकारी- कर्मचारी उनके पास आकर सलाह देते थे। मंत्री श्री पटेल ने अपने आराध्य व पूज्य गुरू श्री श्री बाबा श्री की सीख और अनमोल वाणी याद करते हुए बताया कि यह देश कृषि प्रधान नहीं, बल्कि ऋषि प्रधान देश है। इसी परंपरा के आधार पर हम कृषि करते थे। ऋषि परम्परा के पुराने अनुभव को बताते हुए कहा कि एक किसान जिसकी माली हालत ठीक नहीं थी। उसके द्वारा खेत से गाय नही भगाये जाने पर किसान द्वारा यह कहना कि जितना अधिकार मेरे बच्चों को खाने पर है उतना ही अधिकार मेरे खेत में गौमाता का भी है।

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मंत्री श्री पटेल ने कहा कि हमें रासायनिक खाद का उपयोग करने की बजाय जैविक खेती करनी चाहिये। यह वर्तमान की आवश्यकता है यदि गाय का गौमूत्र व गोबर नहीं होगा, तो आप जैविक खेती नहीं कर सकते। इसके लिए उन्होंने गौ रक्षा व गौ पालन में स्व अनुशासन की बात की। उन्होंने कहा कि जब वे पूरे देश में कहीं भी जाते थे, तो अपने जिले की तारीफ करते थे कि हमारे यहां का किसान कभी गौवंश को बाहर नही छोड़ता था। लेकिन पिछले 10- 15 साल से हम इस परम्परा निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। गौमाता की रक्षा हम सब की जिम्मेदारी है।

मंत्री श्री पटेल ने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिंचाई की सुविधा होनी चाहिये, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि कौन सी फसल उगाई जाये। हमने गन्ना, धान और गेंहू जैसी पानी की अधिक खपत वाली फसलों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। हमें यह सोचना चाहिये कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जायेंगे। फसलों के अधिक उत्पादन के लालच ने हमको गलतियां करने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने खेती में फसल में पानी की अधिक मात्रा से भविष्य में जलस्तर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की विस्तृत जानकारी भी दी। उन्होंने कहा कि आज मोटे अनाज को आदर्श भोजन के रूप में पूरे विश्व में स्वीकारा जा रहा है। ज्वार, बाजरा, कुटकी, रागी व कोदो जैसे मोटे अनाज को कम पानी की जरूरत होती है। मोटे अनाज उगाने की ओर विचार कर हमें इस ओर बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती व प्राकृतिक खेती से उत्पादन होने वाले अनाज के प्रमाणीकरण आज भी चुनौती है जिसका मूल्यांकन के लिए प्रत्येक जिला स्तर पर लेब की आवश्यकता है। आज भी जिले के ग्राम कलमेटा हार में रसायनिक व कीटनाशक उर्वरकों का उपयोग नहीं होता है। यह हमारे लिए गर्व की बात है

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