खरीफ की प्रमुख फसलों के विपुल उत्पादन हेतु वैज्ञानिकों की तकनीकी सलाह
03 जुलाई 2024, कृषि विज्ञानं केंद्र (टीकमगढ़): खरीफ की प्रमुख फसलों के विपुल उत्पादन हेतु वैज्ञानिकों की तकनीकी सलाह – कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. बी.एस. किरार, वैज्ञानिक – डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. एस.के. जाटव, डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा द्वारा किसानों को खरीफ फसलों की बुवाई के समय उन्नत तकनीक अपनाने की सलाह दी गयी। किसान उड़द की पीला मौजेक प्रतिरोधक किस्में – इंदिरा उड़द प्रथम, मुकुंदरा-2, प्रताप उड़द 1, प्रताप उड़द 9, आई.पी.यू. 13-1, कोटा उड़द-2, कोटा उड़द-3, कोटा उड़द-4, सोयाबीन की उन्नत किस्में – जे.एस. 20-116, जे.एस. 20-34, जे.एस. 20-94, जे.एस. 20-98, जे.एस. 22-12, एन.आर.सी. 150, मूँगफली की उन्नत किस्में – जी.जे.जी.-32, टी.सी.जी.एस. 1694, लेपाक्षी, जे.एल. 501, जे.जी.एन. 313-1, तिल की उन्नत किस्में – टी.के.जी. 306, टी.के.जी. 308, जी.टी. 4, जी.टी. 6, आदि उन्नत किस्मों की उपलब्धता हेतु राष्ट्रीय बीज निगम निवाड़ी एवं म.प्र. राज्य बीज निगम, कुण्डेश्वर रोड, टीकमगढ़ सम्पर्क कर बीज प्राप्त किया जा सकता है। फसल को फफूँद जनित बीमारियों से बचाने के लिए जैविक फफूँदनाशक दवा ट्राईकोडर्मा विरिडी 10 मि.ली. या रासायनिक दवा विटावैक्स पॉवर 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करना चाहिए। खरीफ फसलों के अधिक उत्पादन के लिए फसलों की बुवाई कतारों में करना चाहिए और फसलों में मिट्टी परीक्षण उपरान्त अनुसंशित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। दलहनी और तिलहनी फसलों में फास्फोरस की पूर्ति के लिए डी.ए.पी. की जगह सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए जिससे फसलों को फास्फोरस के साथ सल्फर और कैल्शियम भी प्राप्त हो जाता है। फसलों में कीट-व्याधियों से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश का 15-20 कि.ग्रा. प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए। किसान भाईयों को एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि प्रति वर्ष प्रत्येक खेत में फसलें अदल-बदल कर बोना चाहिए, जिससे फसलों की पैदावार भी अच्छी होगी और कीट-व्याधियों की समस्या भी नहीं होगी। खरीफ की फसलों में नींदा की मुख्य समस्या होती है। यदि फसलों की समय पर निंदाई-गुड़ाई नहीं की गयी तो उत्पादन काफी कम हो जाता है इसलिए खरीफ फसलों में दो बार निंदाई-गुड़ाई करना चाहिए। एक बीज बुवाई के 15-25 दिन में दूसरी बार 35-40 दिन में करना अति आवश्यक है। खरीफ की फसलों में अधिकांशतः किसान किसी भी प्रकार के उर्वरक नहीं डालते हैं या फिर नगण्य मात्रा में डालते हैं। छिडकाव विधि से बुवाई करने से बीज अधिक मात्रा में डालते हैं और नींदा नियंत्रण भी समय पर नहीं करते, जिससे फसलों की उपज से होने वाली आय कम हो जाती है और लागत बढ़ जाती है।
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