सोयाबीन फसल प्रबंधन
समेकित खरपतवार प्रबंधन : सोयाबीन की अच्छी पैदावार लेने के लिये खरपतवार प्रबंधन आवश्यक है। सोयाबीन के खेत को बोवनी के बाद कम से कम छह सप्ताह तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिये। यह कार्य फसल के तीसरे एवं छठे सप्ताह में निंदाई कर या डोरा चलाकर अथवा अनुशंसित खरपतवारनाशक (तालिका) के छिड़काव द्वारा किया जा सकता है। काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में विशेषत: लगातार वर्षा होने की स्थिति में निंदाई अथवा डोरा/कुलपा चलाना संभव नहीं हो पाता इस कारण खरपतवारनाशक का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। अगर बोवनी पूर्व अथवा बोवनी के तुरन्त बाद उपयोगी खरपतवारनाशक का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। अगर बोवनी पूर्व अथवा बोवनी के तुरन्त बाद उपयोगी खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है तो अंकुरण पश्चात सोयाबीन की खड़ी फसल में प्रयोग किये जाने वाले अनुशंसित किसी एक खरपतवारनाशक का उपयोग करना उत्तम होगा। खरपतवारनाशकों का उपयोग करने के लिये अनुशंसित मात्रा के छिड़काव हेतु प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी का उपयोग आवश्यक है। साथ ही यह ध्यान रहे कि खड़ी फसल में उपयोगी खरपतवारनाशक के छिड़काव के पश्चात लगभग 10 दिन का डोरा/ कुलपा चलाना अवांछनीय है। यह सलाह भी दी जाती है। कि प्रत्येक वर्ष एक ही खरपतवार का प्रयोग न करें।
जल प्रबंधन : खरीफ मौसम में उचित समय पर वर्षा न होने या वर्षा का वितरण असामान्य होने पर अथवा सितम्बर माह में वर्षा का अंतराल अधिक होने पर सोयाबीन में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पानी/नमी की कमी का सोयाबीन की उत्पादकता पर सबसे विपरीत प्रभाव फलियों में दाने भरने की अवस्था में पड़ता है। अत: इस समय पानी/नमी की कमी नहीं होने देनी चाहिये। पौध अवस्था, फूलने के समय अथवा दाना भरने के समय वर्षा का अंतराल लंबा होने की स्थिति में उपलब्ध होने पर पानी की सिंचाई अवश्य करनी चाहिये। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित बीबीएफ सीड ड्रिल एवं फर्ब सीड ड्रिल द्वारा बोवनी करने पर सूखा एवं अधिक वर्षा से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है। इन उन्नत यंत्रों की उपलब्धता न होने पर कृषकों को सलाह है कि सूखे की स्थिति से निपटने हेतु सुविधानुसार सोयाबीन की 5,10 या 15 कतारों के बाद एक नाली बनाने की व्यवस्था करें जिससे नमी संचयन के साथ-साथ अधिक वर्षा के दौरान जल निकास भी सुलभ होगा।
समेकित रोग प्रबंधन : सोयाबीन की फसल में मुख्यत: निम्न बीमारियों का प्रकोप देखा गया है।
- चारकोल सडऩ
- गर्दनी सडऩ
- अंगमारी व फली झुलसन (एन्थ्रेक्नोज एवं पॉड ब्लाइट)
- पीला (यलो) मोजाइक
- गेरूआ
- पत्ती धब्बा एवं ब्लाइट
- बैक्टीरियल पश्चूल
समेकित रोग प्रबंधन के घटक
- 2-3 साल में एक बार ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई
- फसल चक्र अपनाये
- विभिन्न फसलों के साथ (मक्का, अरहर, ज्वार आदि) अंतरवर्तीय फसल प्रणाली.
- अनुशंसित प्रतिरोधी किस्मों की खेती
- उचित समय पर उपयुक्त गहराई पर बोवनी
- उचित बीज दर (60-80 कि.ग्रा./हे.) एवं उचित पौध संख्या
फफूंदनाशक एवं जीवाणु कल्चर के साथ बीजोपचार: बोवनी से पहले सोयाबीन के बीज को थाइरम एवं कार्बेन्डाजिम (2:1) 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से अथवा मिश्रित (1:1) उत्पाद कार्बोक्सिन 5 प्रतिशत थाइरम 37.5 प्रतिशत, (विटावैक्स पावर) 2-3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। इनके स्थान पर बीज उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी (8-10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज का भी उपयोग किया जा सकता है।
- समेकित पोषण प्रबंधन,
- खेत की नियमित निगरानी
- रोग ग्रसित पूर्व फसल के अवशेषों एवं पौधों का निष्कासन
उपयुक्त रसायन द्वारा छिड़काव: पीला मोजाइक बीमारी के प्रकोप की शुरूआती अवस्था में रोगवाहक कीट सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु फसल पर मिथाइल डेमेटॉन (मेटासिस्टॉक्स) या इथोफेनप्रॉक्स का 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिये। अंगमारी व फली झुलसन रोग की रोकथाम हेतु फसल पर जिनेब या मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करे। गेरुआ रोग का प्रकोप की शुरूआती अवस्था में ग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करना व फसल पर हेक्जाकोनाझोल (कन्टॉफ) या प्रोपीकोनाजोल (टिल्ट) 800 मि.ली. या ट्राइडिमेफोन (बेलेटॉन) 800 ग्राम या ऑक्सी-कार्बोक्सीन 800 ग्राम दवा का 800 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में भली प्रकार छिड़काव करना।
– पत्तियों पर लगने वाले रोगों (पत्ती धब्बा एवं ब्लाइट) के प्रबंधन हेतु फसल पर कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल के 0.05 प्रतिशत घोल (5 ग्राम/10 लीटर पानी में) का छिड़काव बोवनी के 35 व 50 दिन बाद करें। जिन क्षेत्रों में लगातार बेक्टीरियल पश्चूल रोग का प्रकोप होता है, वहां रोग प्रतिरोधी किस्म जैसे एनआरसी 37 की खेती करें। रोग के लक्षण दिखने पर कॉपर आक्सीक्लोराइड 1500 ग्राम स्ट्रेप्टोसायक्लिन 150 ग्राम को 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई : फसल की कटाई उपयुक्त समय पर करने से फलियों के चटकने पर दाने बिखरने से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। फलियों का रंग बदलने पर या पूर्णतया समाप्त होने पर यह मान लें कि फलियाँ परिपक्व हो चुकी हैं। इस अवस्था में (पकी हुई फलियों के दाने में नमी 14-16 प्रतिशत) सोयाबीन की कटाई करनी चाहिये। कटी हुई फसल को 2-3 दिन धूप में सुखा कर थ्रेशर से धीमी गति पर गहाई करनी चाहिये। थ्रेशर की गति में कमी लाने हेतु बड़ी पुली का उपयोग करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि गहाई के समय बीज का छिलका न उतरे एवं बीज में दरार न पड़ें।
भंडारण : गहाई के पश्चात बीज को 3 से 4 दिन तक धूप में अच्छी तरह सुखा कर (दानों में नमी का प्रतिशत 10 प्रतिशत) भंडारण करना चाहिये। भंडार गृह ठंडा, हवादार व कीट रहित होना चाहिये। बीज को बोरियों में भरकर 3-4 बोरियों से अधिक एक से ऊपर एक नहीं रखना चाहिये। सोयाबीन के बीज के बोरों भंडार गृह में ले जाते समय ऊंचाई से न पटकें। इससे बीज की अंकुरण क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भंडार गृह में पर्याप्त जगह होने पर बीज को बोरों को सीधे खड़ा करके रखने की व्यवस्था करें।
सोयाबीन के लिये अनुशंसित खरपतवारनाशक | |||
खरपतवारनाशक का प्रकार | रसायनिक नाम | प्रमुख व्यापारिक नाम | मात्रा/हेक्टे. |
बोबनी के पूर्व उपयोगी (पीपीआई) | फ्लूक्लोरोलीन | बासालिन | 2.22 ली. |
ट्राईफ्लूरेलीन | ट्रेफलान, त्रिनेत्र, तूफान, | 2.00 ली. | |
ट्राइलेक्स क्लीन | |||
बोवनी के तुरन्त बाद (पीई) | क्लोमोझान | कमाण्ड | 2.00 ली. |
पेण्डीमिथालीन | स्टॉम्प,पनीडा | 3.25 ली. | |
डायक्लोसुलम | स्ट्रांगआर्म, मार्क | 26 ग्राम | |
सल्फेक्ट्राजोन | ऑथोरिटी | 0.75 ली. | |
बोवनी के 10-12 दिन बाद सोयाबीन की खड़ी फसल में उपयोगी (पीओई) | क्लोरीम्यूरान इथाईल | क्लोबेन, क्यूरीन | 36 ग्राम |
बोवनी के 15-20 दिन बाद सोयाबीन की खड़ी फसल में उपयोगी (पीओई) | इमेजाथायपर | परस्यूट | 1.00 ली. |
क्विजालोफॉप इथाइल | टरगा सुपर | 1.00 ली. | |
क्विजालोफॉप पी | 1.00 ली. | ||
टेफूरील | |||
फेनाक्सीप्राप इथाइल | व्हिप सुपर | 1.00 ली | |
हेलाक्सीफाफ इथाइल | – | 1.00 ली. |
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