राज्य कृषि समाचार (State News)

बेमेतरा में अल्पवर्षा: कलेक्टर ने ग्रीष्मकालीन धान पर लगाई रोक, सब्जी-दलहन और फलदार फसल बोने की अपील की

30 अक्टूबर 2025, भोपाल: बेमेतरा में अल्पवर्षा: कलेक्टर ने ग्रीष्मकालीन धान पर लगाई रोक, सब्जी-दलहन और फलदार फसल बोने की अपील की – छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला प्रशासन और कृषि विभाग बेमेतरा द्वारा जिले के किसानों को गीष्मकालीन फसल धान न लेकर इसके स्थान पर मूंग, उड़द, चना, मक्का, सूरजमुखी, सब्जियाँ, तरबूज, खरबूजा जैसी फसलें लेने की अपील सार्थक साबित हो रही है। दरअसल बात यह है कि यहां के किसानों ने जिला प्रशासन की अपील पर ग्रीष्मकालीन धान न लेने का निर्णय लिया हैं। जिले के किसानों द्वारा कम पानी में उपजने वाली वैकल्पिक फसलें अपनाने का निर्णय जल संरक्षण और कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में एक अभिनव एवं सराहनीय पहल है। बेमेतरा का यह कदम न केवल जल संरक्षण बल्कि सतत कृषि विकास की दिशा में भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन रहा है।

जल संकट पर काबू पाने के लिए जरूरी फैसला

गौरतलब है कि ग्रीष्मकालीन धान की फसल को औसतन 100 से.मी. पानी की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति मुख्य रूप से भूमिगत जल से की जाती है। एक किलोग्राम धान उत्पादन के लिए लगभग 2500 से 3000 लीटर पानी की जरूरत होती है। वृहद क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन धान की खेती के कारण जिले के कई ग्रामों में पीने के पानी तक की किल्लत उत्पन्न हो जाती है। सैकड़ों हैंडपंप और ट्यूबवेल सूख गए, जिससे ग्रामीणों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। समूह जल प्रदाय योजनाएँ भी प्रभावित हुईं। इससे न केवल जल स्तर में गिरावट आई बल्कि बिजली की खपत बढ़ी, पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हुआ और भूमि की उपजाऊ शक्ति में भी कमी आई।

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान कटक (ओडिशा) ने भी यह अनुशंसा की है कि ग्रीष्मकालीन धान से भूजल का अत्यधिक दोहन होता है, जो दीर्घकाल में पर्यावरण और कृषि दोनों के लिए हानिकारक है। संस्थान ने सुझाव दिया है कि किसान ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर कम पानी वाली वैकल्पिक फसलें जैसे दालें, मक्का, तिलहन आदि की खेती करें।

80 फीसदी जन नागरिक कृषि पर निर्भर  

उल्लेखनीय है कि बेमेतरा एक कृषि प्रधान जिला है, जहाँ की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है। जिले का कुल खरीफ रकबा 2.25 लाख हेक्टेयर है, जिसमें लगभग 2.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है। बेमेतरा जिला वर्षा छाया क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 995 मि.मी. होती है। वर्ष 2024-25 में जिले में मात्र 600 मि.मी. वर्षा दर्ज की गई, जिससे जल संकट उत्पन्न हुआ। रबी मौसम में 1.73 लाख हेक्टेयर रकबे में से 26,680 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान की खेती की गई थी।

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बेमेतरा जिले की वर्तमान जनसंख्या लगभग 10.84 लाख है, जिसमें 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। जिले के चार विकासखण्डों के अंतर्गत 425 ग्राम पंचायतें आती हैं। वर्ष 2024-25 के जल संकट और ग्रीष्मकालीन धान से हुए नुकसान को देखते हुए, जिले की सभी 425 ग्राम पंचायतों ने भविष्य में ग्रीष्मकालीन धान की खेती नहीं करने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है।

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दलहनी-तिलहनी व अन्य फसलों से मिलेगा अधिक लाभ

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अनुसार ग्रीष्मकालीन धान से प्रति हेक्टेयर लगभग 40,000 रूपए की शुद्ध आय होती है, जबकि वैकल्पिक फसलों से इससे अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। दलहनी-तिलहनी व अन्य फसलों से प्रति हेक्टेयर जैसे- रागी 72,720, मक्का 1,14,000, सूरजमुखी 1,08,978, तिल 43,922, मूंग 80,216, मूंगफली 92,997 रूपए की आमदनी ले सकते है।

जिला प्रशासन द्वारा किसानों से अपील करते हुए कहा गया है कि ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई न करें। इसके स्थान पर मूंग, उड़द, चना, मक्का, सूरजमुखी, सब्जियाँ, तरबूज, खरबूजा जैसी फसलें लें। ये कम पानी में भी सफलतापूर्वक ली जा सकती हैं, जो अधिक लाभदायक हैं। जल संरक्षण हेतु ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई, मल्चिंग और फसल चक्र अपनाएँ। ग्रामीण जल स्रोतों जैसे कुएँ, तालाब, नाला, बंधान आदि के संरक्षण में सामूहिक भागीदारी निभाएँ। हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि भूजल का विवेकपूर्ण उपयोग करें, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी जल और कृषि की स्थिरता बनाए रख सकें।

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