राज्य कृषि समाचार (State News)

गेहूं में खाद, सिंचाई एवं नींदा नियंत्रण

गतांक से आगे
फसल की प्रति इकाई पैदावार बहुत कुछ खाद एवं उर्वरक की मात्रा  पर निर्भर करती है। गेहूँ में हरी खाद, जैविक खाद एवं रसायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है। खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूँ की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है। अच्छी उपज लेने के लिए भूमि में कम से कम 35-40 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद 50 किलो ग्राम नीम की खली और 50 किलो अरंडी की खली आदि इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई से पहले इस मिश्रण को समान मात्रा में बिखेर लें  इसके बाद खेत में अच्छी तरह से जुताई कर खेत को तैयार करें इसके उपरांत बुवाई करें। खेत  में 10-15 टन प्रति हेक्टर की दर से सडी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट फैलाकर जुताई के समय बो आई पूर्व मिट्टी में मिला देना चाहिए। रसायनिक उर्वरकों में नाइट्रोजन, फास्फोरस, एवं पोटाश  मुख्य है। सिंचित गेहूँ में (बौनी किस्में) बोने के समय आधार मात्रा के रूप में 125 किलो नत्रजन, 50 किलो स्फुर व 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिये। देशी किस्मों में 60:30:30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक देना चाहिए। असिंचित गेहूँ की देशी किस्मों में आधार मात्रा के रूप में 40 किलो नत्रजन, 30 किलो स्फुर व 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर बोआई के समय हल की तली में देना चाहिये। बौनी किस्मों में 60:40:30 किलों के अनुपात में नत्रजन, स्फुर व पोटाश बोआई के समय देना लाभप्रद पाया गया है।

सिंचाई
भारत में लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्र में गेहूँ की खेती असिंचित दशा में की जाती है। परन्तु बौनी किस्मों से अधिकतम उपज के लिए सिंचाई आवश्यक है। गेहूँ की बौनी किस्मों को 30-35 हेक्टर से.मी. और देशी किस्मों  को 15-20 हेक्टर से.मी. पानी की कुल आवश्यकता होती है। उपलब्ध जल के अनुसार गेहूँ में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर करनी चाहिये। प्रथम सिंचाई में औसतन 5 सेमी. तथा बाद की सिंचाईयों में 7.5 सेमी. पानी देना चाहिए। सिंचाईयों की संख्या और पानी की मात्रा  मृदा के प्रकार, वायुमण्डल का तापक्रम तथा बोई गई किस्म पर निर्भर करती है। फसल अवधि की कुछ विशेष क्रान्तिक अवस्थाओं पर बौनी किस्मों में सिंचाई करना आवश्यक होता है। सिंचाई की ये क्रान्तिक अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं –

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  • पहली सिंचाई शीर्ष जड प्रवर्तन अवस्था पर अर्थात् बोने के 20 से 25 दिन पर सिंचाई करना चाहिये। लम्बी किस्मों में पहली सिंचाई सामान्यत: बोने के लगभग 30-35 दिन बाद की जाती है।
  • दूसरी सिंचाई दोजियां निकलने की अवस्था  अर्थात बोआई के लगभग 40-50 दिन बाद।
  • तीसरी सिंचाई सुशांत अवस्था अर्थात् बोआई के लगभग 60-70 दिन बाद।
  • चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था अर्थात् बोआई के 80-90 दिन बाद।
  • दूध बनने तथा शिथिल अवस्था अर्थात् बोने के 100-120 दिन बाद।

पर्याप्त सिंचाईयां उपलब्ध होने पर बौने  गेहूं में 4-6 सिंचाई देना श्रेयस्कर होता है । यदि मिट्टी काफी हल्की या बलुई है तङ्क्ष 2-3 अतिरिक्त सिंचाईयों की आवश्यकता होती है ।
असिंचित अवस्था  में मृदा नमी का प्रबन्धन
खेत की जुताई कम से कम करनी चाहिए तथा जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए। जुताई का कार्य प्रात: व सायंकाल में करने से वाष्पीकरण  द्वारा नमी का ह्रास कम होता है। खेत की मेड़बन्दी अच्छी प्रकार से कर लेनी चाहिए, जिससे वर्षा के पानी को खेत में ही संरक्षित किया जा सके। बुआई पंक्तियों में 5 सेमी. गहराई पर करना चाहिए। खाद व उर्वरकों की पूरी मात्रा, बोने के पहले कूड़ों में 10-12 सेमी. गहराई में दें। खरपतवारों पर समयानुसार नियंत्रण करना चाहिए।

कटाई-गहाई
जब गेहूँ के दाने पक कर सख्त हो जाय और उनमें नमी का अंश 20-25 प्रतिशत तक आ जाये, फसल की कटाई करनी चाहिये। कटाई हँसिये से की जाती है। बोनी किस्म के गेहूँ को पकने के बाद खेत में नहीं छोडऩा चाहिये, कटाई में देरी करने से, दाने झडऩे लगते है और पक्षियों  द्वारा नुकसान होने की संभावना रहती है। कटाई के पश्चात् फसल को 2-3 दिन खलिहान में सुखाकर मड़ाई  शक्ति चालित थ्रेशर से की जाती है। कम्बाइन हारवेस्टर का प्रयोग करने से कटाई, मड़ाई तथा ओसाई  एक साथ हो जाती है परन्तु कम्बाइन हारवेस्टर से कटाई करने के लिए, दानों  में 20 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए, क्योकि दानो  में ज्यादा नमी रहने पर मड़ाई या गहाई ठीक से नहीं होंगे।

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उपज एवं भंडारण
उन्नत सस्य तकनीक से खेती करने पर सिंचित अवस्था में गेहूँ की बौनी  किस्मों से लगभग 50-60 क्विंटल  दाना के अलावा 80-90 क्विंटल  भूसा/हेक्टेयर प्राप्त होता है। जबकि देशी लम्बी किस्मों से इसकी लगभग आधी उपज प्राप्त होती है। देशी  किस्मो से असिंचित अवस्था में 15-20 क्विंटल  प्रति/हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है। सुरक्षित भंडारण हेतु दानों में 10-12प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होना चाहिए।

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