State News (राज्य कृषि समाचार)

आईसीएआर-फ्यूसिकोंट तकनीक द्वारा केले में फ्यूजेरियम विल्ट का प्रबंधन

Share
लेखक: हरेन्द्र (हॉर्टिकल्चरिस्ट), ग्वालियर; प्रमिता देब (असिस्टेंट प्रोफेसर) जीडी गोयनका यूनिवर्सिटी सोहना, गुरूग्राम, हरियाणा

14 दिसम्बर 2023, भोपाल: आईसीएआर-फ्यूसिकोंट तकनीक द्वारा केले में फ्यूजेरियम विल्ट का प्रबंधन – केला भारत की एक महत्वपूर्ण फल वाली फसल है। भारत केले का सर्वाधिक उत्पादन करता है, केले का उत्पत्ति स्थान दक्षिण पूर्वी एशिया को माना जाता है। वानस्पतिक रूप से केले को मूसा सेपिएंटम अथवा मूसा बलबिसियाना के नामों से जाना जाता है तथा यह मूसेसी कुल का फल है, इसमें गुणसूत्रों की संख्या 22 से लेकर 44 तक होती है। केला कार्बोहाइड्रेट का एक उत्तम स्रोत है तथा इसे बेबी फूड के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह बच्चों में बहुत ही अधिक लोकप्रिय है। हमारे देश में केले की मुख्यत: खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार तथा नागालैंड आदि राज्यों में विशेष रूप से की जाती है। केले में फ्यूजेरियम विल्ट एक बहुत ही भयानक रोग माना जाता है जिस फसल में यह रोग लग जाता है वहां पर पूरी फसल का लगभग 50 प्रतिशत से भी अधिक भाग नष्ट हो जाता है यह रोग एक प्रकार की मृदा जनित फफूंदी फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरियम एफ स्पेशीज क्यूबेंस ट्रॉपिकल रेस- 4 द्वारा लगता है। इस रोग का सर्वप्रथम पता उत्तरप्रदेश के अयोध्या जनपद के एक सोहवाल स्थान पर लगाया गया था उसके बाद यह रोग बिहार के कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर, वैशाली और नौगछिया आदि जिलों में भी जी-9 प्रजाति में काफी देखा गया था वैसे तो यह रोग केले उत्पादन राज्यों में देखा गया है लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में यह एक बहुत ही भयानक बीमारी साबित हुई है। जी-9 के अतिरिक्त यह रोग केले की अन्य किस्म जैसे मंथन, रेड बनाना और ग्रॉस माइकल आदि में देखा गया है। यह रोग उन स्थानों पर जहां पर भूमि अम्लीय होती है तथा जलभराव की समस्या अधिक होती है वहां पर यह रोग मुख्यत: अधिक देखा गया है। सन् 2017 से पहले इस रोग का बचाव करना लगभग असंभव ही था तथा जहां पर यह रोग लग जाता था वहां पर पूरी फसल ही नष्ट हो जाती थी इसे देखते हुए केले उत्पादक राज्यों में किसानों ने केले की खेती बंद करना शुरू कर दिया था लेकिन 2017 के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के शोध संस्थानों केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ के निदेशक डॉ. एस. राजन एवं सेंट्रल सॉइल सैलिनिटी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रीजनल रिसर्च स्टेशन लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. टी. दामोदरन द्वारा एक नई तकनीक जिसे फ्यूसिकोंट के नाम से जाना जाता है, विकसित की इस तकनीक के द्वारा केले में फ्यूजेरियम विल्ट रोग को लगभग 95 प्रतिशत तक खत्म किया जा सकता हैं।

आईसीएआर-फ्यूसिकोंट तकनीक है क्या

आईसीएआर-फ्यूसिकोंट एक बायो मीडिया है जोकि ट्राइकोडरमा रीसेई सीएसआर टी – 3 और लिस्नीबेसिलस फ्यूसिफोर्मिस सीएसआर ए- 11 के संयोजन से बना है जोकि फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरियम एफ स्पेशीज क्यूबेंस ट्रॉपिकल रेस-4 पर बहुत ही प्रभावशाली है इसके प्रयोग से केले में फ्यूजेरियम विल्ट की समस्या लगभग 95 प्रतिशत तक खत्म हो जाती है। यह बायो मीडिया इस रोग के प्रति प्रतिरोधी होती है तथा यह केले में वनस्पतिक वृद्धि के साथ साथ फलत में भी सुधार करती है।

मात्रा तथा आपूर्ति आईसीएआर-फ्यूसिकोंट की 1 प्रतिशत मात्रा नर्सरी में जब केले के पौधे बहुत छोटे होते हैं अथवा जब उन्हें लैब से लाया जाता है जिन्हें टिशू कल्चर तकनीक के द्वारा तैयार करते हैं उस अवस्था में प्रयोग करें तथा दूसरी बार फसत्र वृद्धि के समय 2 प्रतिशत आईसीएआर-फ्यूसिकोंट की ड्रेंचिंग पौधों में अवश्य करें। इसके साथ-साथ प्रतिरोधी किस्में जैसे पूवन तथा बसराई आदि इस रोग के बचाव के लिए सही साबित हुई है। जहां तक इसे खरीदने की बात है तो इसकी आपूर्ति अभी किसानों के लिए पूरी तरह से पर्याप्त नहीं है फिर भी कुछ शोध केंद्रों जैसे सी आईएसएच लखनऊ तथा आईसीएआर दिल्ली के द्वारा इसकी आपूर्ति किसानों के लिए की जा रही है यह समस्या उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्य में विशेष रूप से फैली हुई है तथा आगामी दिनों में इसकी आपूर्ति व्यवसायिक रूप से किसानों को करा दी जाएगी इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली का केंद्र केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान कार्य कर रहा है।

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्राम)

Share
Advertisements